उधमसिंह के शहीदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

उधमसिंह के शहीदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम

उधमसिंह

शहीद उधमसिंह सिंह हमारे देश के अविस्मरणीय क्रांतिकारी नायक हैं, जिन्होंने भारत से लंदन जाकर जलियांवाला बाग कांड के मुख्य आरोपी जनरल ओ’ ड्वायर को गोली से उड़ा दिया था। वे शहीद भगतसिंह को अपना आदर्श मानते थे और खुद ब्रिटिश खुफिया पुलिस के अनुसार वे बोल्शेविज्म के समर्थक थे। 31 जुलाई, 1940 को लंदन में ही गेटविले जेल में अंग्रेजों ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था। सांप्रदायिक ताकतों से घोर नफरत करने वाले उधमसिंह ने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो कि हमारे देश के तीनों प्रमुख धर्मों - हिंदू, मुस्लिम और सिख - को प्रदर्शित करता है। इस जीवट योद्धा के शहीदी दिवस पर देश के क्रांतिकारी-प्रगतिशील संगठन विभिन्न कार्यक्रम कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
    
इस बार शहीद उधमसिंह के बलिदान दिवस को सिडकुल (रुद्रपुर-पंतनगर) में न्यूनतम वेतन की मांग के साथ आंदोलन कर रहे मजदूर नेताओं पर प्रशासन द्वारा गुंडा एक्ट की कार्यवाही किये जाने के विरोध में और आंदोलनरत मजदूरों के साथ वर्गीय एकजुटता प्रदर्शित करते हुये मनाया गया। इस दौरान विभिन्न जगहों पर उधमसिंह नगर जिले के श्रमिक संयुक्त मोर्चा द्वारा जारी ज्ञापन भी प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रेषित किया गया। ज्ञापन में मजदूर नेताओं पर लगाये गये गुंडा एक्ट को निरस्त करने, धरना-प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकार पर हमले बंद करने, सिडकुल की विभिन्न कंपनियों के मजदूरों की समस्याओं के तत्काल निवारण, प्रदेश में बुल्डोजर चला नागरिकों को विस्थापित करने की कार्यवाही पर रोक, साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने पर रोक लगाने आदि मांगें की गयीं।
    
रुद्रपुर (उधमसिंह नगर) में श्रमिक संयुक्त मोर्चा के बैनर तले विभिन्न यूनियनों और मजदूर संगठनों के कार्यकर्ता साथ ही, सैकड़ों की संख्या में मजदूर जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर एकत्र हुए और एक जुलूस की शक्ल में शहीद उधमसिंह की मूर्ति की तरफ बढ़ने लगे। लेकिन पुलिस द्वारा जिलाधिकारी कार्यालय का मुख्य द्वार बंद कर उन्हें अंदर जाने से रोक दिया गया। जिला प्रशासन के इस रवैये के विरोध में मजदूरों ने कलेक्ट्रेट के मुख्य द्वार के बाहर ही शहीद उधमसिंह का फ्रेम युक्त फोटो रखकर और उस पर माल्यार्पण कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
    
हरिद्वार में संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा के नेतृत्व में शहीद उधमसिंह को श्रद्धांजलि अर्पित कर सभा की गई; तदुपरान्त जिला अधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन प्रेषित किया गया। सभा में सिडकुल (हरिद्वार) में सत्यम आटो, एवेरेडी, सी एंड एस इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड के मजदूरों की मांगों को भी जोर-शोर से उठाया गया एवं सिडकुल (हरिद्वार) में विभिन्न कंपनियों के मामलों को तत्काल संज्ञान में लेकर हल करने की मांग की गई। सभा एवं ज्ञापन की कार्यवाही में इंकलाबी मज़दूर केंद्र, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, फ़ूड्स श्रमिक यूनियन, सीमेंस वर्कर्स यूनियन, कर्मचारी संघ सत्यम आटो, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र इत्यादि संगठनों के कार्यकर्ताओं के अलावा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी भागीदारी की।
    
रामनगर (नैनीताल) में 31 जुलाई शहीद उधमसिंह के बलिदान दिवस को कौमी एकता दिवस के रूप में मनाया गया। इस हेतु विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता लखनपुर क्रांति चौक पर एकत्र हुये और उसके बाद संयुक्त संघर्ष समिति, रामनगर के नेतृत्व में जुलूस निकालते हुये भगतसिंह चौक पहुंचे। यहां हुई सभा में वक्ताओं ने शहीद उधमसिंह के क्रांतिकारी जीवन पर प्रकाश डालते हुये फिरकापरस्त ताकतों का पुरजोर विरोध किया और पूंजीवादी व्यवस्था के बरक्स समाजवाद का विकल्प प्रस्तुत किया। वक्ताओं ने उत्तराखंड में तत्काल न्यूनतम वेतन लागू किये जाने की मांग की एवं सिडकुल (रुद्रपुर-पंतनगर) में न्यूनतम वेतन की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे मजदूर नेताओं पर गुंडा एक्ट की कार्यवाही को राज्य में पुलिस राज कायम करने की कोशिश बताया। जुलूस और सभा में इंकलाबी मजदूर केंद्र, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, समाजवादी लोक मंच, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, महिला एकता मंच इत्यादि संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की।
    
इसके अलावा मानेसर (गुड़गांव) में प्रभातफेरी, जसपुर में श्रद्धांजलि सभा, कालाढूंगी (नैनीताल) में उधमसिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पंतनगर में श्रद्धांजलि सभा, अल्मोड़ा में स्थानीय गांधी पार्क में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी द्वारा धरना, हल्द्वानी में महाविद्यालय गेट पर सभा व बरेली में प्रभातफेरी निकाल शहीद उधम सिंह को याद किया गया।         -विशेष संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।