यूनियन का ‘‘जे’’ फार्म के रजिस्ट्रेशन को लेकर संघर्ष जारी

पंतनगर/ बजाज मोटर कर्मकार यूनियन, पन्तनगर उधम सिंह नगर, उत्तराखंड के नियमित चुनाव दिनांक 26 जून 2022 को आहूजा धर्मशाला में हुए जिसमें तमाम पदाधिकारियों का निर्विरोध चुनाव हुआ। जिसमें कि 2019 से ही चले आ रहे पदाधिकारियों का पुनः चुनाव किया गया। इनमें से 3 पदाधिकारियों को प्रबंधन द्वारा 2019 में साजिशन बर्खास्त कर दिया गया था (कार्य बहाली को लेकर कम्पनी गेट पर धरना-प्रदर्शन भी किया गया जिस कारण यह निलम्बन व निष्कासन की संख्या आगे बढ़ने से रोक लगाने में कामयाबी मिली)। इसको लेकर लेबर कोर्ट, काशीपुर में मामला चल रहा था। काशीपुर लेबर कोर्ट ने 7 फरवरी 2022 को प्रबंधन के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने जांच कार्यवाही को आधार बनाते हुए फैसला दिया जिसमें मजदूरों द्वारा एक भी तारीख में भागीदारी नहीं की गई और मजदूरों का पक्ष नहीं सुना गया। मजदूरों का घरेलू जांच कार्यवाही के प्रति शुरुआत से ही अविश्वास था। क्योंकि मज़दूरों का मानना था कि जांच कार्यवाही कंपनी के अंदर होनी चाहिए थी जो कि वकील के द्वारा अपने आफिस पर की गई। इस पर मजदूरों को आपत्ति थी। कोर्ट के आदेश के बाद मजदूरों के बीच काफी निराशा हुई। यूनियन द्वारा काशीपुर कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट नैनीताल में मामला दायर किया गया है। वहां पर सुनवाई जारी है। कोर्ट में विवाद कायम होने और ट्रेड यूनियन एक्ट की धाराओं में रिटायर या छंटनी हुए मजदूरों को भी यूनियन में रहने के अधिकार के तहत यूनियन के चुनाव में उक्त मजदूरों को प्रतिनिधि बनाया गया जिस पर 28 अगस्त 2022 को चुनाव प्रक्रिया की श्रम विभाग द्वारा जांच भी पूरी करवा ली गई।

13 जुलाई 2022 को प्रबंधन द्वारा नोटिस बोर्ड पर एक सूचना लगाई जिसमें यूनियन के चुनाव को अवैधानिक बता कर यूनियन का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का दबाव बनाया गया। उसके जवाब में यूनियन द्वारा लिखित स्पष्टीकरण दिया गया। उसमें स्पष्ट तौर पर यह कहा गया कि लेबर कोर्ट के फैसले के खिलाफ यूनियन हाईकोर्ट में गई है और हाईकोर्ट में मामला चल रहा है। इसलिए मालिक-मजदूर का संबंध कायम है।

यूनियन द्वारा 3 फरवरी 2023 को उपरजिस्ट्रार ट्रेडयूनियन को पत्र लिखकर जे फार्म दर्ज करने हेतु अनुरोध किया गया। जिस पर कार्यालय द्वारा 8 फरवरी 2023 को पत्र जारी कर 13 फरवरी 2023 को कार्यालय में उपस्थित होकर काशीपुर कोर्ट के आदेश को रोकने के लिए कोई आदेश हो तो प्रस्तुत करने को कहा गया। इसके जवाब में यूनियन द्वारा उपस्थित होकर हाई कोर्ट नैनीताल में इस संबंध में चल रही कार्यवाही के बारे में अवगत करा कर सम्बन्धित कागजात अधिकारी को उपलब्ध कराए। परन्तु उसके उपरांत भी श्रम विभाग द्वारा जे फार्म दर्ज करने की कार्यवाही नहीं की गयी।

जिससे परेशान होकर यूनियन द्वारा श्रम विभाग के खिलाफ श्रम भवन में 27 फरवरी 2023 को एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया गया। श्रम विभाग में उस दिन श्रम विभाग के अधिकारियों के द्वारा बताया गया कि हमने जांच कर जांच रिपोर्ट अग्रसारित कर दी है और उसकी कापी आपको भी भेज दी है। जो कापी भेजी गई थी, वह लगभग 10-15 दिन के बाद प्राप्त हुई। जिसमें तमाम सारी चीजों का हवाला देते हुए, श्रम विभाग द्वारा चुनाव कार्यवाही को निरस्त करते हुए दाखिल दफ्तर कर दिया गया है।

यूनियन जब से बनी तब से ही वह कानूनी कार्रवाई और श्रम विभाग के अधिकारियों के साथ मिल जुलकर अपना काम निकालने की प्रवृत्ति पर काम करती थी। संघर्ष का पक्ष काफी कमजोर था। निलंबन-निष्कासन के दौरान कंपनी गेट पर धरना-प्रदर्शन करना सही था परंतु ठीक समझौता किये बिना ही धरना-प्रदर्शन खत्म कर दिया गया। घरेलू जांच कार्यवाही के दौरान जांच कार्यवाही में शामिल ना होना, मजदूरों के बीच में संघर्ष की भावना को मजबूत करने हेतु योजनाएं लेने में कमी, कम्पनी के अंदर काम कर रहे मजदूरों के प्रतिनिधियों का खुलकर सामने ना आ पाना आदि कमियों को यूनियन को दूर करना होगा। यूनियन अब एक्टू से सम्बद्ध हो गई है। केवल कानूनी कार्यवाही करने से आगे बढ़ कर अपनी एकता ठेका मजदूरों से कायम कर मजबूत बनानी होगी।

वर्तमान दौर में जिस प्रकार श्रम कानूनों में बदलाव कर पूंजीपतियों के पक्ष पोषण करने वाली 4 श्रम संहिताएं बना दी गई हैं। उनमें मजदूरों के हक-अधिकारों की और ज्यादा कटौती की गई है। इसके चलते मजदूरों के पास कानूनी हक-अधिकार काफी कम हो गए हैं। ऐसे में संघर्ष ही एकमात्र रास्ता बनता है। अपनी एकता और वो भी व्यापक एकता के दम पर संघर्षों को आगे बढ़ा कर ही मजदूर अपने अधिकारों को सुरक्षित रख सकते हैं। -पंतनगर संवाददाता

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी। 

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।