जाति समस्या पर सेमिनार

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बदायूं/ दिनांक 27 अप्रैल 2025 को क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन और जनहित सत्याग्रह मोर्चा द्वारा जाति के सवाल पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का विषय जाति उन्मूलन का प्रश्न और हमारे कार्यभार था। सेमिनार में जाति व्यवस्था : एक दृष्टिकोण नाम से एक पेपर भी प्रस्तुत किया गया। सबसे पहले सेमिनार पेपर को पढ़ा गया उसके बाद सेमिनार पेपर पर विभिन्न कोणों से चर्चा की गई। भारत में जाति व्यवस्था के उद्भव, विकास और वर्तमान स्थिति पर विस्तार से बात हुई तथा देश के अंदर भिन्न-भिन्न कालों में पैदा हुए दलित आंदोलन और राजनीतिक संगठनों पर भी बात की गई।
    
कार्यक्रम में वक्ताओं ने देश में जाति की आज स्थितियों और दलितों/पिछड़ां की पार्टियों/संगठनों और उनकी भूमिका पर भी बात की। इसके अलावा वर्ण/जाति के सवाल पर भारत की क्रांतिकारी धारा और क्रांतिकारी मजदूर आंदोलन की अवस्थितियों पर चर्चा की गई।
    
अंत में वक्ताओं ने आज के दौर में जातीय भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाओं पर संयुक्त प्रतिक्रिया देने पर सहमति व्यक्त की। तथा इसके खिलाफ एकजुट संघर्ष तथा उन्मूलन के संघर्ष को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। जब से देश में हिंदू फासीवादी पार्टी भाजपा की सरकार है तब से जातिगत उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं। फासीवादी लंपट गिरोह दलितों की शादी में घोड़ी चढ़ने, मूंछें रखने, जय भीम बोलने, अंबेडकर की प्रतिमा लगाने, घड़े से पानी पीने जैसे मामलों को तूल देकर दलितों पर हमले कर रहे हैं। जरा-जरा सी बात पर जिंदा जला देने जैसी घटनाएं प्रकाश में आई हैं। दलित महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार और यौन हिंसा की घटनाएं भी पिछले दिनों में बढ़ी हैं। ब्राह्मणवादी मूल्यों और सवर्ण मानसिकता से लैस लोगों द्वारा दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों पर हमले हो रहे हैं।
    
वक्ताओं ने कहा कि बढ़ता हिंदू फासीवादी आंदोलन जहां एक ओर अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों पर हमलावर है वहीं दूसरी ओर यह दलितों, अदिवादियों, पिछड़ों और महिलाओं पर भी तरह-तरह से हमले कर रहा है। यह देश को पुरातनपंथी, सामंती मूल्यों की ओर धकेल रहा है। यह पुराने मूल्यों को प्रासंगिक बनाए रखते हुए आज की समस्याओं से ध्यान बंटाना चाहता है। जिससे वर्तमान एकाधिकारी पूंजीवादी व्यवस्था की लूट चलती रहे। आज संकटग्रस्त पूंजीवाद अपने मुनाफे को बनाए रखने के लिए मजदूरों-मेहनतकशों के हक-अधिकारों को रौंद रहा है। उनको अधिकारविहीनता की स्थिति में धकेल रहा हैं। मेहनतकश वर्ग इसके खिलाफ उठ खड़ा ना हो। इसलिए पुरानी सामंती मूल्य-मान्यताओं को पाल-पोस रहा है। इसलिए आज जरूरत है कि इन फासीवादी शासकों की हर जनविरोधी नीति और कदम का विरोध किया जाए। जातीय उत्पीड़न, सांप्रदायिक हिंसा, महिला उत्पीड़न, फासीवादी हमलों, मजदूर-किसान विरोधी हमलों का डटकर विरोध किया जाए तथा इनकी जनविरोधी नीतियों का भंडाफोड़ किया जाए।
    
कार्यक्रम में क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, जनहित सत्याग्रह मोर्चा, बामसेफ, एस सी/एस टी शिक्षक सभा, बहुजन आंदोलन से जुड़े अन्य साथी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन चरन सिंह यादव ने किया। अध्यक्षता वरिष्ठ रामप्रकाश, पूर्व प्रवक्ता ने की। सेमिनार पेपर पर बात सतीश ने रखी। कार्यक्रम को डा. क्रांति कुमार, सुनील कुमार, तेजेंद्र यादव, डा. हरीश दिनकर, ललित कुमार, कमलेंद्र, रविंद्र कुमार ज्ञानी, राजवीर सिंह तरंग, फैसल, डा. मुन्ना लाल आदि ने संबोधित किया। कार्यक्रम का समापन मोर्चा के अध्यक्ष प्रेमपाल सिंह के वक्तव्य के साथ हुआ। अंत में एक क्रांतिकारी गीत प्रगतिशील सांस्कृतिक मंच के कृष्णपाल और हरगोविंद ने प्रस्तुत किया। -बदायू संवाददाता
 

आलेख

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

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अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।