दिल्ली से गुजरात तक : आग से मरते मजदूर-मेहनतकश

दिल्ली के बवाना औद्योगिक क्षेत्र, नरेला औद्योगिक क्षेत्र व हरियाणा के कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में मई महीने में लगातार आग लगने की घटनाएं होती रहीं और कथित लोकतंत्र का पर्व जारी रहा। ये औद्योगिक इलाके बिल्कुल आस-पास हैं। बवाना व नरेला औद्योगिक क्षेत्र में छोटे पैमाने की कंपनियां हैं। इन औद्योगिक इलाकों में श्रम कानून नहीं लागू होते हैं। लाखों मजदूर गुलामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। यहां न्यूनतम वेतन कम मिलता है। हालात दयनीय हैं। मजदूरों को ईएसआई-पीएफ नहीं मिलता है न ही बोनस मिलता है और डबल ओवर टाइम का तो नामोनिशां तक नहीं है। जहां एक हेल्पर को 12 घंटे का वेतन 35,000 रु. मिलना चाहिए, वहां एक हेल्पर से 11,000-12,000 रुपए में काम करवाया जाता है। यहां ज्यादातर मजदूर उ.प्र.-बिहार से आते हैं। मजदूरों में एकजुटता का अहसास कम होने के कारण वे संगठित नहीं हो पा रहे हैं। बवाना व नरेला औद्योगिक क्षेत्र में यूनियनें नहीं हैं और ज्यादातर मजदूर असंगठित मजदूर के तौर पर काम करते हैं।
    
कुंडली औद्योगिक क्षेत्र, नरेला औद्योगिक क्षेत्र से लगता हुआ क्षेत्र है। यहां भी श्रम कानूनों की यही स्थिति है। 
    
12 मई 2024 को बवाना औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर 1 के ए ब्लाक में थ्-281 प्लाट में आग लगी। केमिकल में आग लगने के कारण एक जोरदार धमाका हुआ जिससे दरवाजा उखड़ कर दूर जा गिरा। इसमें चार मजदूर गंभीर रूप से घायल हुए जिसमें से तीन मजदूर झुलस गए थे जिनकी हालत गंभीर थी। इन झुलसे हुए तीन मजदूरों में से एक मजदूर मस्तराम (20 साल) को होश नहीं आया और उसने 5-6 दिन बाद दम तोड़ दिया। हालांकि आस-पास के लोग ज्यादा मौतें होने की बात कह रहे थे लेकिन उसके कोई सबूत नहीं मिले। ज्यादातर मजदूर उ.प्र. के भदोही इलाके के रहने वाले थे। 
    
15 मई 2024 को रात 11ः00 के करीब कुंडली गांव स्थित दहिया कालोनी में स्थित श्री गणेश  कथा फैक्टरी में बायलर फटने के कारण एक बड़ा हादसा हुआ जिसमें पांच मजदूरों की मृत्यु हो गई और 40 से 50 मजदूर घायल हो गए जिसमें से कुछ कंपनी के अंदर घायल हुए और कुछ कंपनी के बगल में स्थित मकान में सो रहे मजदूर दीवार गिरने से उसके नीचे दब गए और काफी मजदूरों को गंभीर चोटें आई। 
    
17 मई 2024 को बवाना औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर 1 के व् ब्लाक के प्लाट नंबर 252 में जूता फैक्टरी में आग लग गई। यहां किसी मजदूर के हताहत होने की खबर नहीं है। 
    
मई महीने में ही नरेला के भंवरगढ़ औद्योगिक क्षेत्र की एक प्लास्टिक दाना फैक्टरी में आग लग गई और इस फैक्टरी में आग बुझाने में चार-पांच दिन का समय लगा। 
       
इसके बाद दिल्ली के विवेक विहार इलाके में एक चाइल्ड केयर सेंटर में आग लगने से सात आठ नवजात बच्चों की मृत्यु हो गई। कई अन्य जगह भी आग लगने की सूचनाएं मिलीं।
    
राजकोट (गुजरात) के गेम जोन में लगी आग से 30 से अधिक लोग मारे गये। उच्च न्यायालय तक को इसे ‘मानव निर्मित आपदा’ की संज्ञा देनी पड़ी। गौरतलब है कि यह गेम जोन नगर निगम के अधिकारियों की आंखों के सामने बगैर फायर विभाग की स्वीकृति लिये चल रहा था। यहां तक कि नगर आयुक्त द्वारा इसका उद्घाटन किया गया था। कोर्ट की फटकार के बाद सरकार ने नगर आयुक्त व पुलिस आयुक्त को पद से हटा व कुछ अधिकारियों को निलम्बित कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया। कार्यवाही का नाटक पूरा कर अगली आग का इंतजार शुरू हो गया है। चूंकि यहां मारे गये लोग मध्य वर्ग के थे इसलिए कोर्ट से लेकर सरकार तक कुछ दिखावटी कार्यवाही-मुआवजे को मजबूर होते। अगर ये फैक्टरियों के मजदूर होते तो खबर भी बाहर नहीं आ पाती। 
    
हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इस लोकतंत्र का आम चुनाव जारी है। इस आम चुनाव के बीच में ये सब घटनाएं हुईं। ज्यादातर  मीडिया ने फैक्टरियों में आग-विस्फोट की खबरों को जगह नहीं दी। और न ही घायल व मृत मजदूरों के लिए कोई मुआवजे की घोषणा हुई। इस कथित लोकतंत्र की राज्य मशीनरी चुनाव के ढकोसले में व्यस्त थी। थाने और अस्पताल के चक्कर लगाने पर कोई भी सूचना देने को तैयार नहीं था। भारत की राज्य मशीनरी लगातार तानाशाह प्रवृत्ति की तरफ आगे बढ़ रही है। आम नागरिकों को सूचना तक नहीं दी जाती हैं और पूंजीपति वर्ग पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। अगर किसी घटना में कोई पूंजीपति मर जाता है तो दर्जनों मजदूरों को आजीवन कारावास सुना दिया जाता है। यह सबने मारुति मानेसर के घटनाक्रम में देखा होगा। 
    
पूंजीपति वर्ग की तानाशाही जारी है। मजदूर वर्ग गुलामी की अवस्था में जी रहा है फिर भी उसको लोकतंत्र का पर्व मनाने के लिए बरगलाया जा रहा है। देश में बड़ी एकाधिकारी पूंजी लगातार देश के संसाधनों पर कब्जा करती जा रही है और सारे श्रम कानूनों को ताक पर रखकर काम कर रही है। जिसके कारण आग लगने की घटनाएं व औद्योगिक दुर्घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। बवाना और नरेला औद्योगिक क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था नदारद है। मजदूर बेमौत मारे जा रहे हैं, पूंजीवादी लोकतंत्र मजदूरों की हर रोज हत्यायें कर रहा है फिर भी लोकतंत्र का पर्व जारी है।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।