26 मार्च - 8 घंटे की सामूहिक भूख हड़ताल

यह सामूहिक भूख हड़ताल मजदूर विरोधी 4 लेबर कोड रद्द करने, ठेका प्रथा खत्म करने, खुली-छिपी छंटनी करना बंद करने, तीन बर्खास्त मजदूर साथियों को काम पर वापस लेने, तीन निलंबित यूनियन प्रतिनिधियों को तत्काल काम पर वापस लेने तथा बाउंसरों और असामाजिक तत्वों को फैक्टरी परिसर से बाहर करने, की मांगों को लेकर थी।

जब प्रबंधन यूनियन को कमजोर और तोड़ने में सफल नहीं हुआ तो इस बार उसने यूनियन पदाधिकारियों पर ही हमला बोल दिया। उसने यूनियन के तीन पदाधिकारियों प्रधान महासचिव और संगठन सचिव को 17 मार्च को अगले आदेश तक निलंबित कर दिया। बेलसोनिका प्रबंधन ने तीन यूनियन पदाधिकारियों को निलंबित किया तो प्रबंधन ने फैक्टरी परिसर के अंदर पुलिस को बुलाया। प्रबंधन ने दिनांक 20 मार्च 2023 से फैक्टरी के अंदर बाउंसर तथा पुलिस बल को तैनात कर रखा है तथा डर-भय का माहौल बना रखा है। फैक्टरी में एक तरह से जेल जैसा माहौल बना दिया है जिसकी यूनियन ने घोर निंदा की। श्रमिक व श्रमिक यूनियन प्रबंधन के हमलों के खिलाफ अपनी एकजुटता बनाकर लड़ाई लड़ रही है।

पदाधिकारियों ने कहा कि प्रबंधन, मजदूरों द्वारा बनाए गए उत्पादन को असली और मजदूरों को फर्जी बता रहा है, यह दोहरा मापदंड बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हम न सिर्फ अपने निकाले गए साथियों को वापस कंपनी में लाएंगे बल्कि लंबे समय से ठेकेदारी के तहत काम करने वाले अपने सारे मजदूर साथियों को स्थाई करने तक लड़ाई लड़ेंगे।

सामूहिक भूख हड़ताल में बेलसोनिका यूनियन के मजदूरों के परिवार की महिलाएं भी शामिल हुईं। सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यह सिर्फ बेलसोनिका मजदूरों की ही लड़ाई नहीं है बल्कि उनके परिवारों की भी लड़ाई है क्योंकि एक मजदूर के साथ उसके माता-पिता, पत्नी-बच्चे सभी जुड़े हुए हैं और यदि किसी मजदूर के साथ कोई कारवाई की जाती है तो उसका पूरा परिवार प्रभावित होता है इसलिए हम सभी इस लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे और जरूरत पड़ी तो बड़ी संख्या में सड़कों में उतर कर संघर्ष करेंगे। सामूहिक भूख हड़ताल में प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र और इंकलाबी मजदूर केंद्र, श्रमिक संग्राम कमेटी के सदस्य-कार्यकर्ता शामिल हुए और सभा को सम्बोधित किया।

सभा में वर्गीय एकता का उदहारण देकर इंट्रार्क फैक्टरी, उत्तराखण्ड के मजदूर साथी की सड़क दुर्घटना में हुई शहादत पर दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई।

सभा को मारुति सुजुकी के निकाले गए मजदूर साथी, मजदूर सहयोग केन्द्र और गुड़गांव-मानेसर की कई यूनियन के मजदूरों ने सम्बोधित किया और संघर्ष का समर्थन किया।

भूख हड़ताल में इंकलाबी मजदूर केंद्र के कार्यकर्ताओं ने जोशीले क्रान्तिकारी गीतों के साथ हौंसला बढ़ाया।

सभा के अंत में तहसीलदार के माध्यम से उपायुक्त, गुड़गांव को अपनी मांगों के संदर्भ में एक ज्ञापन सौंपा और इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई कर समाधान निकालने का निवेदन किया और मांगें पूरी न होने पर आन्दोलन को व्यापक करने का संकल्प लिया। -गुड़गांव संवाददाता

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।