फरीदाबाद/ फरीदाबाद जन संघर्ष समिति के घटक संगठन इंकलाबी मजदूर केन्द्र व अन्य सामाजिक संगठनों द्वारा 10 सितम्बर 2024 को आर्यन मिश्रा की हत्या की सीबीआई जांच, अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा व पीड़ित परिवार को मुआवजा आदि मांगों को लेकर डीसी को ज्ञापन सौंपा।
19 वर्षीय छात्र आर्यन मिश्रा की गौरक्षकों द्वारा हत्या के मामले में शहर के प्रबुद्ध जनों, सामाजिक संगठनों, ट्रेड यूनियन संगठनों, के प्रतिनिधियों की 6 सितम्बर 2024 को फरीदाबाद जन संघर्ष समिति मंच के तहत एक बैठक हुई।
इससे पहले संघर्ष समिति का एक प्रतिनिधि मंडल पीड़ित परिवार से मिलने एवं दुख व्यक्त करने 5 सितंबर 2024 को उनके घर गया था।
आर्यन मिश्रा के पिता सदानंद मिश्रा ने बताया कि उनके पुत्र की हत्या में शहर में अपराधिक कृत्यों में संलिप्त अन्य अपराधियों का भी हाथ है। उनका कहना है कि मेरे बेटे को गौ तस्कर समझा कर नहीं मारा गया बल्कि उसकी हत्या योजना बनाकर करवाई गई है। जिसकी निष्पक्षता से जांच होनी चाहिए।
बैठक में आर्यन मिश्रा की हत्या और शहर में बढ़ते अपराधों पर सभी प्रतिनिधियों ने चिंता व्यक्त की और कड़े शब्दों में प्रशासन की आलोचना की गई।
बैठक में फरीदाबाद जन संघर्ष समिति के तहत जन संगठनों, सामाजिक संगठनों के प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे। -फरीदाबाद संवाददाता
आर्यन मिश्रा हत्याकाण्ड की सीबीआई जांच की मांग
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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।
आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।