मैक्सिको : आग लगने से 39 शरणार्थियों की मौत

28 मार्च को मैक्सिको की एक प्रवासी जेल में आग लगने से 39 शरणार्थियों मारे गये। इसके अलावा 29 लोग घायल भी हो गये जिनमें से कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है। ये सभी शरणार्थी संयुक्त राज्य अमेरिका में शरण लेना चाहते थे पर अमेरिकी शासक नये नियमों का हवाला देकर इन्हें शरण देने को तैयार नहीं थे। ये शरणार्थी ग्वाटेमाला व वेनेजुएला से थे और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका तक पहुंचने के लिए लम्बी यात्रायें की थीं।

आग की जांच करने वाले मैक्सिको के अटार्नी जनरल कार्यालय का मानना था कि आग अपने बढ़ते निर्वासन के विरोध में प्रवासियों ने ही लगायी होगी। मैक्सिको के राष्ट्रपति ओब्रेडोर ने भी आग के लिए प्रवासियों को ही दोषी ठहराया। पर तमाम मानवाधिकार वकीलों ने मैक्सिको की सरकार के दावों को गलत ठहराया है और कहा है कि प्रवासी जेल की व्यवस्था किस कदर बुरी होगी कि आग लगने पर बचाव किया ही नहीं जा सका।

संयुक्त राज्य अमेरिका की आव्रजन प्रणाली में फरवरी में एक नया नियम शामिल किया गया। इसके तहत यह प्रावधान किया गया कि अमेरिका में शरण को इच्छुक शरणार्थियों को पहले उन देशों में शरण के लिए आवेदन करना होगा जहां वे अमेरिका पहुंचने के रास्ते में गुजरे थे। इसके तहत मैक्सिको से अमेरिका में घुसने वाले शरणार्थियों को पहले मैक्सिको में शरण मांगनी होगी। अगर वे मैक्सिको में शरण मांगे बगैर अमेरिका में घुसेंगे तो उन्हें तत्काल निर्वासित कर दिया जायेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से संयुक्त राष्ट्र से लेकर तमाम नेताओं ने उक्त नियम रद्द करने की अपील की है पर बाइडेन इस मामले में पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। अब जबकि 39 लोग अमेरिका के शरणार्थी विरोधी रुख के चलते मारे जा चुके हैं तब फिर इनकी मौत की जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है।

इन मौतों के दोषी प्रथमतया अमेरिकी साम्राज्यवादी हैं जिन्होंने शरणार्थियों के देशों को तबाह कर वहां की आबादी को पलायन को मजबूर कर दिया। और फिर जब ये आबादी अमेरिका पहुंचने लगी तो उन्हें अपनी सीमा में घुसने से रोकने को तमाम नियम बना दिये। पर साथ ही मैक्सिको सरकार भी इन मौतों की दोषी है जिसने ऐसी जेलों में इन्हें ठूंस दिया जहां कभी भी ऐसी दुर्घटना हो सकती थी।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

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तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

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