पूरे देश में एक समान मूल्यांकन पद्धति को लेकर ‘परख’ (प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा एवं समग्र विकास के लिए ज्ञान का विश्लेषण) संस्था पिछले दिनों में चर्चा का विषय बनी। यह राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की एक घटक संस्था है। ‘परख’ को एनईपी-2020 के क्रियान्वयन के तौर पर भी बनाया गया है।
कोविड लॉकडाउन के समय भाजपा सरकार ने एनईपी-2020 लागू की थी। कई लफ्फाजियां कीं लेकिन हकीकत यह है कि एनईपी-2020 शिक्षा के निजीकरण, भगवाकरण को ही तेजी से बढ़ाने के लिए है। इसका उद्देश्य शिक्षित इंसान बनाना नहीं बल्कि पूंजीपति के लिए उपयोगी मजदूर बनाना है।
‘परख’ भी इसका उदाहरण है। परख बनाने के लिए विदेशी संस्थाओं की भरपूर मदद ली गयी है। निश्चित ही इस मदद में हस्तक्षेप और फायदा छुपा हुआ है। देशों को कर्ज जाल में फंसाकर उन पर अपनी लुटेरी नीतियां थोपकर बर्बाद करने वाली संस्था विश्व बैंक ने भी परख में निवेश किया है। स्ट्रेंथनिंग टीचिंग लर्निग एंड रिजल्ट्स फार स्टेट्स प्रोग्राम (एसटीएआरएस) के तहत विश्व बैंक परख को पैसा देगा। इससे पहले भी भारत में शिक्षा के इन्हीं सुधारों को लेकर विश्व बैंक कई राज्यों के साथ पैसा देकर समझौता कर चुका है। 2021 में केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल आदि राज्यों के साथ 50 करोड़ डालर का समझौता किया गया था। इस समझौते में कहा गया था कि विश्व बैंक यह पैसा देश में नये जमाने के हिसाब की नौकरियों के लिए इंसान तैयार करने के लिए है।
‘परख’ के काम-काज के लिए भारत सरकार ने अमेरिका स्थित अमेरीकी संस्था एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विसेज (ईटीएस) से भी हाथ मिलाया है।
विश्व बैंक कोई परोपकारी संस्था नहीं है, न ही अमेरिका की अन्य संस्थाएं कोई परोपकारी हैं। इनकी नजर लम्बे समय से भारत के शिक्षा बाजार पर है। कई अमेरिकी निजी स्कूल-कालेज भारत में कारोबार करना चाहते हैं। कांग्रेस के जमाने में विदेशी विश्वविद्यालय विधेयक लाकर इनके लिए राह बनाई गयी। लेकिन एनईपी-2020 में भाजपा सरकार ने कई लेन का चौड़ा रास्ता बनाने की कसम खाई है। इसे वह कई तरह से पूरा कर रही है। ‘परख’ इसी दिशा में एक प्रयास है।
भारत एक संघीय राष्ट्र है। लेकिन भाजपा को यह शब्द नापंसद है। ‘एक देश, एक भाषा, एक विधान, एक कर प्रणाली, एक शिक्षण बोर्ड, एक परीक्षा आदि आदि के जरिये वह सब कुछ जबरदस्ती एक कर देना चाहती है। वह सारे अधिकारों को केन्द्र के हाथ में ला देना चाहती है। इस सब में वह हिन्दू राष्ट्र का छौंका लगाती है। लेकिन इस एकीकरण की चाहत भारत के एकाधिकारी पूंजीपति वर्ग और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की है।
‘परख’ के जरिये भी भाजपा सरकार विभिन्न राज्य बोर्डों, मूल्यांकन पद्धतियों को दरकिनार कर रही है। एक मूल्यांकन पद्धति, शोध और पढ़ाने के तरीकों को केन्द्रीय तौर पर निर्धारित करना चाहती है। यह सब कुछ छात्रों-शिक्षकों और शिक्षा की भलाई के लिए नहीं है। यह देशी-विदेशी पूंजी के हितों में ही किया जा रहा है।
हाल ही में परख द्वारा सरकार को कुछ सुधार सुझाये गये जो कि चर्चा का विषय बने। पहला 12 वीं की परीक्षा साल में दो बार करवाई जाये। दूसरा कक्षा 12 के अंतिम अंकों में कक्षा 9, 10 और 11 के अंकों के एक हिस्से को भी जोड़ा जाये। कक्षा 9 के प्रतिफल का 15 प्रतिशत, कक्षा 10 के प्रतिफल का 20 प्रतिशत, कक्षा 11 के प्रतिफल का 25 प्रतिशत और कक्षा 12 के 40 प्रतिशत को जोड़कर अंतिम अंक दिये जाएं।
छात्रों का मूल्यांकन दो तरह से किया जायेगा। पहला प्रोजेक्ट वर्क, ग्रुप डिस्कशन आदि के आधार पर और दूसरा वर्ष के अंत में परीक्षा के आधार पर।
भयानक असमानता से भरे भारतीय समाज में एक समान मूल्यांकन पद्धति सुनने में बेमानी है। देश में कहीं गांव-देहात, भारी पिछड़े इलाके और यहां चलने वाले खस्ताहाल स्कूल हैं तो कहीं चमचमाते आधुनिक शहर और आलीशान प्राइवेट स्कूल हैं। शहर, कस्बों तक में खस्ताहाल सरकारी स्कूल और यहां पढ़ने वाले गरीब बच्चे हैं तो वहीं जेब में पैसे के हिसाब से बुरे, अच्छे प्राइवेट स्कूल हैं।
देश में लड़की, लड़कों में शिक्षा की असमानता है। दलित, आदिवासियों और सवर्ण पृष्ठभूमि के बच्चों के बीच भारी असमानता है।
आज जरूरत इस असमानता को दूर कर देश के हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण, समान शिक्षा मुहैय्या कराने की है। इस असमानता को दूर करने में भारतीय शासकों की जरा भी रुचि नहीं है। बल्कि वे तो इस असमानता को बढ़ाने में ही लगे हुए हैं। भाजपा सरकार द्वारा लाई गई राष्ट्रीय मूल्यांकन पद्धति ‘परख’ शिक्षा में मौजूद असमानता को कम नहीं करेगी बल्कि यह असमानता को और बढ़ायेगी। पूंजीवादी व्यवस्था के कारण असमानता के शिकार छात्र इसके मूल्यांकन में सबसे नीचे होंगे। और साधन सम्पन्न परिवारों के छात्र मूल्यांकन के पायदान में ऊपर रहेंगे।
भारी असमानता में एक समान ‘परख’ बेमानी है
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