भारत का चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा

चीन भारत का अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत का कुल व्यापार वर्ष 2021-22 में 1035 अरब डालर का हुआ। इसमें चीन के साथ 115.83 अरब डालर का व्यापार हुआ। यह कुल व्यापार का 11.19 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर रहा जबकि अमेरिका के साथ व्यापार 11.54 प्रतिशत अर्थात् 119.48 अरब डालर के साथ प्रथम स्थान पर रहा। 
    

चीन की व्यापार में भारत के साथ साझेदारी 1998-99 में 18वें, वर्ष 1999-2000 में 16वें, 2000-2001 में 12वें और 2001-2002 में 10वें स्थान पर थी। वर्ष 2002-03 से लगातार आगे बढ़ता हुआ वर्ष 2011-12 में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। अगले वर्ष 2012-13 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने प्रथम व्यापारिक साझेदार बन कर चीन को दूसरे नम्बर पर ढकेल दिया। इसके बाद वर्ष 2013-14 से लगातार चीन भारत के साथ अपने व्यापार को बढ़ाता हुआ 2017-18 तक सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा। अगले दो वर्ष 2018-19 और 2019-2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका पुनः प्रथम व्यापारिक साझेदार रहा लेकिन वर्ष 2020-21 में चीन पुनः भारत का प्रथम व्यापारिक साझेदार बन गया। 
    

यद्यपि हाल के वर्षों में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार बन गये हैं लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी इन दोनों अर्थव्यवस्था वाले देशों से व्यापार में बड़ा फर्क है। अमेरिका के साथ भारत का व्यापार वर्ष 2021-22 में 32.85 अरब डालर के फायदे में रहा जबकि चीन के साथ भारत को 73.31 अरब डालर का व्यापार घाटा हुआ जो किसी भी देश से भारत के व्यापार घाटे से ज्यादा है। वर्ष 2020-21 में चीन के साथ व्यापार घाटा 44.02 अरब डालर का हुआ था। 
    

वर्ष 2021-22 में ऊपर के भारत के 10 व्यापारिक साझेदारों में अमेरिका और चीन के अलावा आठ देश यूएई, सउदी अरब, इराक, सिंगापुर, हांगकांग, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया हैं। 
    

पिछले 21 सालों में चीन के साथ व्यापार घाटा 1 अरब डालर से बढ़ता हुआ 73 अरब डालर तक पहुंच गया है। इस सदी की शुरूआत से ही चीन से आयात बहुत तेज गति से बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2001-02 में 2 अरब डालर से आगे बढ़ता हुआ 2021-22 में 94.57 अरब डालर तक पहुंच गया जबकि भारत से चीन को निर्यात 1 अरब डालर से धीरे-धीरे रेंगता हुआ 21 सालों में 21 अरब डालर तक पहुंचा है। 
    

इस वित्तीय वर्ष में भी चीन के साथ व्यापार घाटा और ज्यादा बढ़ने की संभावना है। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2022-23 के सात महीने (अप्रैल से अक्टूबर तक) में व्यापार घाटा 51 अरब डालर तक पहुंच गया है जबकि पिछले वर्ष 2021-22 के अप्रैल से अक्टूबर तक व्यापार घाटा 37 अरब डालर का हुआ था। वर्ष 2021-22 में भारत का कुल व्यापार घाटा (191 अरब डालर) का 38 प्रतिशत अकेले चीन से व्यापार में हुआ। 
    

व्यापार के आंकड़े बताते हैं कि चीन के साथ गलवान घाटी में झड़प के बाद चीन से आयात  तेजी से बढ़ा है। जून 2020 में चीन से आयात नीचे गिर कर 3.32 अरब डालर रहा, वह कोविड-19 के कारण लॉकडाउन का समय था। लेकिन जैसे ही लॉकडाउन खुला वैसे ही आयात तेजी से बढ़ता गया। जुलाई 2020 में नयी ऊंचाई 10.24 अरब डालर तक पहुंच गया। 
    

औसत प्रति माह चीन से आयात वर्ष 2020-21 में 5.43 अरब डालर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 7.89 अरब डालर हो गया। वर्ष 2022-23 के सात माह (अप्रैल से अक्टूबर) में प्रतिमाह औसत आयात 8.61 अरब डालर पहुंच गया। जून 2020 के बाद चीन से आयात में पहली बार अक्टूबर 2022 में थोड़ी गिरावट आयी। अक्टूबर 2022 में 7.85 अरब डालर का आयात हुआ जबकि पिछले साल अक्टूबर 2021 में 8.69 अरब डालर का आयात हुआ था। 
    

भारत में वर्ष 2021-22 में सम्पूर्ण आयात 613.05 अरब डालर था इसमें 94.57 अरब डालर अर्थात् 15.42 प्रतिशत अकेले चीन से आयात हुआ है। मुख्य सामान जिसे चीन से भारत ने खरीदा है वेे हैं विद्युत मशीनें, उपकरण एवं उसके पुर्जे, साउण्ड रिकार्डर एवं रिप्रोड्यूशर, टेलीविजन, पिक्चर ट्यूब, न्यूक्लियर रियेक्टर, बायलर, मशीनरी, यांत्रिक सामान, पुर्जे, कार्बनिक रसायन, प्लास्टिक एवं प्लास्टिक के सामान और उर्वरक। सामानों के हिसाब से देखें तो पर्सनल कम्प्यूटर (लैपटाप, पामटाप आदि) 5.34 अरब डालर, इंटीग्रेटेड डिजिटल सर्किट 4 अरब डालर, लीथियम आयन 1.1 अरब डालर, सोलर सेल 3 अरब डालर और यूरिया 1.4 अरब डालर का 2021-22 में चीन से खरीदा गया। 
    

चीन से अकार्बनिक रसायन का आयात जो दवाओं के लिए फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट का है, महत्वपूर्ण है। वर्ष 2003 के बाद दवा कम्पनियों का विकास तेजी से हुआ और वे ज्यादातर चीनी मध्यवर्ती फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट पर आश्रित होती चली गयीं। 
    

यह भारत की औद्योगिक नीति के फेल होने का सबसे बड़ा कलंक है। क्योंकि यह सभी जानते हैं कि दवा कम्पनियों का प्रोडक्ट पेटेंट को अस्वीकार करने और केवल प्रोसेस पेटेंट स्वीकार करने से बहुत तेजी से विकास हुआ था क्योंकि पहले बहुराष्ट्रीय कम्पनियां पहली बार नयी दवा बाजार में लाकर कई साल तक भारी मुनाफा काट रही थीं। उसके स्थान पर भारतीय कम्पनियां सस्ते में उस दवा की जेनरिक अर्थात् उसी फार्मूले की दवा दूसरे तरीके से बना लेती थीं। विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनने के बाद सभी उद्योग पेटेंट के अंदर आ जाने के कारण पहले दवा कम्पनियों के विकास में जो फायदे मिले थे उनका क्षरण हो गया। 
    

भारत से चीन को निर्यात वर्ष 2021-22 में कुल 21.25 अरब डालर का हुआ। यह भारत से कुल निर्यात 422 अरब डालर का मात्र 5 प्रतिशत है। चीन को भारत से खनिज, स्लैग और ऐश 2.5 अरब डालर, आर्गेनिक केमिकल 2.38 अरब डालर, खनिज तेल, डिस्टिलेट, बिटुमिनस वस्तुएं, खनिज मोम 1.87 अरब डालर, लोहा और स्टील 1.4 अरब डालर, एलुमिनियम एवं उसके सामान 1.2 अरब डालर, रुई 1.25 अरब डालर, लाइट नेप्था 1.37 अरब डालर के मुख्य रूप से वर्ष 2021-22 में निर्यात हुए। 
    

इस तरह से चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बहुत ज्यादा है। यह बढ़ता हुआ व्यापार घाटा भारत में औद्योगिक विकास के रास्ते की कमजोरी को दिखाता है। यह भारत के मैनुफेक्चरिंग उद्योग को हतोत्साहित करेगा एवं चालू खाता घाटा (सीएडी) को बढ़ायेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को भुगतान असंतुलन की ओर ढकेलेगा। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।