छात्रों-युवाओं पर बढ़़ता फासीवादी हमला

A. गुजरात वि.वि. में विदेशी छात्रों पर हमला
    
भारत में सत्तासीन हिन्दू फासीवादी ताकतों के बढ़ते तांडव को आज देश के कालेज परिसरों में हर रोज देखा जा सकता है। संघी संगठन विद्यार्थी परिषद सत्ता की हनक में खुद को ही सत्ता का मालिक समझने लगा है। वह अधिकाधिक लंपट संगठन में बदलता गया है। हर लंपटता-गुंडई के वक्त ‘जय श्री राम’ का नारा उसका प्रिय शगल बन चुका है। आज छात्र-कर्मचारी ही नहीं शिक्षक भी उसकी गुंडई के शिकार बन रहे हैं। बी.एच.यू. की छात्रा के साथ भाजपा आई टी सेल के 3 लड़कों द्वारा बलात्कार का मामला हो या फिर जेएनयू छात्र संघ चुनाव में विद्यार्थी परिषद द्वारा विरोधी छात्रों पर हिंसक हमले हों, आज हर शिक्षण संस्थान में संघी लंपटों का आतंक कायम होता जा रहा है। 
    
गुजरात, अहमदाबाद में स्थित गुजरात विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों को हिन्दूवादी छात्रों द्वारा पीटा गया। विश्वविद्यालय में 300 छात्र हैं जिसमें से 75 छात्र विदेशी हैं। ये छात्र श्रीलंका, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, उजबेकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, सीरिया और अफ्रीकी देशों से हैं।
    
16 मार्च की रात ए ब्लाक में कुछ विदेशी छात्र रमजान के मौके पर नमाज अदा कर रहे थे। बी ब्लाक के 3 छात्र वहां आकर उनसे नमाज अदा करने को लेकर झगड़ा करने लगे। देखते ही देखते कई हिन्दूवादी छात्र भगवा कपड़े, पटका पहने वहां आ गये। वे भड़काऊ नारे लगाते हुए विदेशी छात्रों की जमकर पिटाई करने लगे जिसमें कई विदेशी छात्र घायल हो गये। दो छात्रों के अधिक चोट आने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इसके बाद यह दंगाई छात्रों का हुजूम विदेशी छात्रों के हॉस्टल में गया और वहां जमकर तोड़फोड़ करने लगा। जिसमें उनकी बाईक, लैपटाप, अलमारी व अन्य सामानों को तोड़फोड़ दिया गया। इसी पूरी घटना से विदेशी छात्रों के बीच डर का माहौल पैदा हो गया है। इस सारी गुंडई के वक्त पुलिस मूकदर्शक बन कर न केवल खड़ी देखती रही बल्कि लंपटों का सहयोग ही करती रही। 
    
घटना के बाद विदेश मंत्रालय ने गुजरात सरकार को अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने को कहा है। पिटाई की घटना में 25 लोगों के शामिल होने की बात कही जा रही है जिसमें से अब तक 5 को गिरफ्तार किया जा चुका है। मौजूदा मामला विदेशी छात्रों का है, इसलिए हो सकता है अपराधी हिन्दूवादी छात्रों पर कोई कार्यवाही हो जाये। भाजपा सरकार अपनी मंशा के विपरीत विदेशी दबाव, अंतर्राष्ट्रीय साख के चक्कर में कार्यवाही का दिखावा करने को मजबूर हो सकती है। वरना तो होता यह है कि हिन्दू फासीवादी अल्पसंख्यकों पर हमला करते हैं और फिर पुलिस अल्पसंख्यकों को ही मुकदमों से लाद देती है। दिल्ली दंगे और हल्द्वानी में बनभूलपुरा के ताजे मामले हमारे सामने हैं।
    
अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न और फिर उन्हीं पर दोषारोपण की नीति प्रशासन के खून में रच-बस गयी है। यह इस घटना में भी दिखा है। विश्वविद्यालय के कुलपति नीरजा गुप्ता ने मौजूदा घटना का दोष विदेशी छात्रों पर ही मढ़ दिया। उन्होंने कहा ‘वे विदेश से यहां पढ़ने आते हैं तो उन्हें देश की संस्कृति के प्रति संवेदनशील होना चाहिए’। यानी जो रमजान की नमाज पढ़ रहे थे वे संस्कृति के प्रति संवेदनशील नहीं थे और जो उन्हें इस बात के लिए पीटते हैं वो संस्कृति के रक्षक हैं।

B. छात्रों को बनाया जबरन चुनावी प्रचार का औजार
    
मुंबई के ठाकुर कालेज में भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान में उस समय थोड़ा रंग में भंग पड़ गया जब एक छात्र ने भरी सभा में कह दिया कि उन्हें यहां जबरन बैठाया गया है।
    
घटना कुछ यूं है कि ठाकुर कालेज प्रशासन ने नये वोटरों को वोट के महत्व समझाने के लिए या ज्यादा सही कहें तो भाजपा प्रत्याशी पीयूष गोयल के प्रचार के लिए एक सेमिनार किया। इस सेमिनार में पीयूष गोयल के बेटे ने वोट के महत्व को समझाया। तभी एक छात्र ने सवाल उठाया कि लोकतंत्र की बातें हो रही हैं लेकिन हमारे आई कार्ड जब्त कर हमें जबरदस्ती सेमिनार में शामिल करवाया जा रहा है। छात्र की इस बात को वहां बैठे छात्र-छात्राओं का भरपूर समर्थन मिला।
    
नेता जी के बेटे मौके की नजाकत समझ गये। और तुरंत ही पूरे मामले से खुद को अलग कर लिया और सारा दोष कालेज प्रशासन पर डाल दिया। कई मीडिया रिपोर्ट बता रही हैं कि यहां छात्रों की सालाना परीक्षा होने जा रही है। कालेज प्रशासन ने उनकी आईडी जब्त कर उन्हें कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मजबूर किया। कहा जा रहा है कि छात्र बीच सेमिनार से ना चले जाएं इसके लिए सेमिनार हाल के दरवाजे भी बंद कर दिये गये थे।
    
सरकारी योजनाओं, कार्यक्रमों में स्कूल-कालेजों के छात्रों का इस्तेमाल कोई नयी चीज नहीं है। लेकिन मोदी काल में यह नयी बुलंदियों पर पहुंच गया है। किसी खास व्यक्ति की छवि चमकाने के लिए स्कूलों-कालेजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। भाजपा अपने चुनावी प्रचार के लिए बेहद भौंडे तरीके से छात्रों को एक औजार बना रही है।
    
देश के भीतर आज जो हिन्दू फासीवादी संस्कृति आरएसएस फैला रहा है ये छात्र लंपट हमलावर इसके ही रक्षक हैं। पूरे देश सहित विश्वविद्यालयों में भी इस संस्कृति ने एक विभाजन पैदा कर दिया है। इस हिन्दू फासीवादी संस्कृति का ही परिणाम है कि कभी कोई सिपाही दिल्ली में नमाजियों को लातों से मारता दिखता है तो कभी हरियाणा में कुछ लम्पट मुसलमानों को नमाज पढ़ने से रोक देते हैं। मोनू मानेसर जैसे अपराधी इस संस्कृति के रक्षक बनकर उत्पात मचाते हैं। भाजपा सरकारें कभी अतिक्रमण तो कभी सबक सिखाने के अंदाज में अल्पसंख्यकों के घरों, सम्पत्ति को निशाना बनाती हैं।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।