जम्मू-कश्मीर : ताजा आतंकी हमले

जम्मू कश्मीर में 9 जून के बाद से एक के बाद एक आतंकी हमले हुए। सबसे गंभीर हमले में 9 श्रद्धालु जो वैष्णों देवी जा रहे थे, मारे गये। कुछ जवानों व आतंकियों के भी मारे जाने की खबरें हैं। 
    
आतंकी हमलों के वक्त पूंजीवादी मीडिया व सेना की हमेशा की तरह इस बार भी यही कहानी सामने आई कि कुछ आतंकी पाकिस्तान से घुसपैठ कर गये और अब विभिन्न जगहों पर हमला कर रहे हैं और सेना उनसे मुठभेड़ कर रही है। कि शीघ्र ही आतंकवादियों को मार गिराया जायेगा। 
    
पाकिस्तान से घुसपैठ की बात बगैर किसी ठोस सबूत के चलाने से दरअसल सरकार व मीडिया का दोहरा फायदा होता है। पहला उन्हें पाकिस्तान को कोसने, उसके खिलाफ देश के भीतर भावनायें भड़काने में मदद मिलती है। परिणाम यह होता है कि जगह-जगह पाकिस्तान के पुतले फुंकने लगते हैं। जहां आतंकी हमलों को सरकार की सुरक्षा चूक के बतौर देख सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए था वहां सरकार की वाहवाही कर पड़ोसी देश को विलेन बना अंधराष्ट्रवादी माहौल बना दिया जाता है। 
    
दूसरा फायदा यह होता है कि सरकार इस वास्तविकता को छुपा ले जाती है कि हो सकता है कि कश्मीर के युवा ही आतंक की ओर बढ रहे हों। अगर ऐसा न भी हो तो घुसपैठ किये आतंकी बगैर स्थानीय समर्थन के इतनी व्यापक कार्यवाही नहीं कर सकते हैं। यानी कश्मीर घाटी में आतंक की इन हरकतों के प्रति समर्थन मौजूद है। सरकार इस सच्चाई को बाकी देश से छिपाना चाहती रही है। एक तो इसलिए कि सरकार कश्मीर पर धारा-370 को खत्म कर बोले गये हमले को आतंक के खात्मे की झूठी कहानी से जोड़ना चाहती है। दूसरा वह यह सच्चाई सामने नहीं लाना चाहती कि कश्मीरी अवाम पर उसके हमले-दमन के चलते आतंकवाद खत्म नहीं हो रहा है। 
    
दरअसल संघी सरकार आतंकवाद को एक कानूनी व्यवस्था की समस्या मान उससे डण्डे से निपटना चाहती है। वह यह भूल जाती है कि कश्मीर में आतंकवाद का एक राजनैतिक पक्ष भी है। यह कश्मीरी राष्ट्रीयता के मुक्ति संघर्ष से जुड़ा है। ऐसे में इस राजनैतिक प्रश्न को हल किये बगैर आतंकवाद से नहीं निपटा जा सकता। हां कानून-व्यवस्था का मामला मान दमन से इसे जितना हल सरकार करना चाहेगी, स्थितियां उतनी ही विस्फोटक होती जायेंगी। जैसा कि इस वक्त कश्मीर घाटी में हो रहा है। जब घाटी का हर नागरिक ही अपने ऊपर सत्ता के हमलों से गुस्से से भरा है। यह गुस्सा भाजपा-संघ को भी पता है इसीलिए लोकसभा चुनावों में वह कश्मीर में एक भी प्रत्याशी खड़ा करने की हिम्मत नहीं कर पायी। 
    
निश्चय ही आतंकियों की गतिविधियों व उनके द्वारा निर्दोष लोगों की हत्या की निन्दा की जानी चाहिए। पर साथ ही आतंक के बढ़ते स्वरूप के लिए भाजपा-संघ की किसी कौम की अस्मिता को जबरन कुचलने की नीति को भी दोषी माना जाना चाहिए। आतंक की राह पर कश्मीरी युवाओं को खुद सरकारों का दमन पहले भी ढकेलता रहा है और वर्तमान सरकार भी यही कहीं अधिक तेजी से कर रही है। ऐसे में घुसपैठ और पाकिस्तान को कोस कर मोदी-शाह वर्तमान आतंकी हमलों की जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। उन पर सवाल खड़े किये ही जाने चाहिए। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।