लोकसभा चुनाव में हुई बुरी गत से संघी मण्डली मानो घबरा गयी है। शीर्ष से लेकर नीचे तक के कारकून इस वक्त बौखलाये नजर आ रहे हैं। वे अपने से दूर होती जा रही जनता को फिर से अपने चंगुल में लाने के साम दाम दण्ड भेद हर तरकीब अपनाने में जुटे हैं। हिमाचल में राम का नारा लगाते संघी मस्जिद के अवैध निर्माण को गिराने के बहाने हुडदंग रच रहे हैं तो उत्तराखण्ड में पहाड़ी गांवों में सरेआम मुसलमानों-फेरीवालों को गांव में घुसने से रोकने वाले बोर्ड लगाये जा रहे हैं। उत्तराखण्ड में ही मुसलमानों द्वारा हिन्दू लड़कियों से छेड़छाड़ की सच्ची-झूठी घटनाओं को चुन कर वैमनस्य फैलाया जा रहा है। गौरक्षक इस कदर बेकाबू हो गये हैं कि वे न केवल मुसलमानों पर राह चलते गौमांस खाने का झूठा आरोप लगा हत्या कर दे रहे हैं बल्कि फरीदाबाद की तरह गौतस्करी के शक पर हिन्दुओं की जान लेने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। इन सारे शैतानी कर्मों में नारा राम का ही लग रहा है। यहां तक कि गणेश चतुर्थी को भी इन शैतानों ने राम के नारे के साथ मुसलमानों पर हमला बोलने का साधन बना डाला।
संघी मण्डली के इन सारे कुकर्मों में शासन-प्रशासन-पुलिस-न्यायालय सबका रुख मूक दर्शक या संघी मण्डली के समर्थक का बना हुआ है। संघी लम्पटों के बवाल के बाद पुलिस मुसलमानों को ही अधिक गिरफ्तार करने में जुटी नजर आती है। उन्हीं की दुकानें-मकान बुलडोजर से ढहाये जा रहे हैं। यह सारा हुडदंग रच कर संघ-भाजपा मण्डली महंगाई-बेकारी की मार झेल रही, किसी हद तक उससे नाराज आम जनता को ‘मुसलमान घुसपैठ, लव जिहाद, गौमांस आदि आदि’ का भय दिखा अपने पाले में वापस खींच लाना चाहती है।
सड़क पर तांडव करती गुण्डावाहिनी ही इस काम में नहीं जुटी है बल्कि केन्द्र से लेकर प्रदेश स्तर के संघ-भाजपा के मुखिया-मंत्री-मुख्यमंत्री सब इस काम में योजनाबद्ध ढंग से जुट गये हैं। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री कभी फर्जी लैण्ड जिहाद का भय दिखा अतिक्रमण हटाने के नाम पर मुसलमानों पर हमलावर हैं तो कभी बढ़ते अपराध का ठीकरा मुसलमानों-बाहरी लोगों के सिर फोड़ पूरे राज्य में लोगों के पुलिसिया सत्यापन का अभियान छेड़ मजदूरों-मेहनतकशों में सरकारी आतंक कायम कर रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री तो एनआरसी से बाहर रहे व न्यायाधिकरणों द्वारा ‘अवैध अप्रवासी’ घोषित लोगों की धरपकड़ के बहाने मुसलमानों पर हमलावर हैं। जगह-जगह मुसलमान घरों-दुकानों पर चलता बुलडोजर अब आम बात हो गयी है। यह बुलडोजर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को भी दरकिनार कर हर रोज शैतानी विध्वंस रच रहा है।
राम का नारा लगाती इस संघी वाहिनी के शैतानी हमलों, हत्याओं के साथ राज्य मशीनरी के इनके समर्थन में खड़े होने का ही परिणाम है कि मुसलमान समुदाय जो पहले ही दोयम दर्जे के नागरिक स्तर पर धकेल दिया गया है, आज बेहद आतंकित माहौल में जी रहा है। हिमाचल में शिमला व मंडी में अगर मुसलमान मस्जिद के अवैध निर्माण के हिस्से को खुद गिराने का प्रस्ताव करने लगते हैं तो यह उनके भीतर व्याप्त भय को ही दिखलाता है। उत्तराखण्ड में अगर मुसलमान दुकानदार औने-पौने भाव अपना कारोबार बेच पलायन को मजबूर हो जाते हैं तो यह उनके भय, उनमें व्याप्त आतंक को ही दिखलाता है।
लोकसभा चुनाव में उ.प्र. में बुरी गत का विश्लेषण संघी मण्डली यह कर रही है कि दलित मतदाताओं के इण्डिया गठबंधन के पक्ष में जाने से उनकी हार हुई है। अब इस दलित आबादी को लुभाने के लिए एक ओर वह जाति जनगणना-आरक्षण पर अपने सुर नरम करने में जुटी है। दूसरी ओर आरक्षण को दलितों से छीन मुसलमानों को देने का आरोप इण्डिया गठबंधन पर मढ़ झूठे प्रचार में जुटी है। साथ ही मुसलामानों के खिलाफ हिंसक घटनाओं में दलित युवाओं को आगे करने का प्रयास कर रही है। विहिप को सक्रिय कर उसके नेताओं को दलितों के घर भोज करने, उनमें हिन्दुत्व का प्रचार करने आदि सारी तिकड़में रची जा रही हैं।
लोकसभा चुनाव के वक्त संविधान की रक्षा की कसमें खाने वाले इंडिया गठबंधन के नेता व्यवहार में संघी वाहिनी के संविधान को लात लगा किये जा रहे कुकर्मों के वक्त खामोश बैठे हैं। यहां तक कि शिमला में मस्जिद ढहाने पर उतारू लम्पट वाहिनी पर लाठीचार्ज के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपने मुख्यमंत्री को फटकार लगा दिखा दिया है कि साम्प्रदायिक वैमनस्य के मसलों पर हिन्दू वोट खोने के भय से ये संघी लम्पटों के ही साथ खड़े हैं।
संघ-भाजपा की फासीवादी मण्डली सोचती है कि जगह-जगह साम्प्रदायिक वैमनस्य खड़ा कर फिर से बेकारी-महंगाई की मार झेल रही जनता को अपने नागपाश में समेट लेगी। वह यह भूल जाती है कि जनता अब धीरे-धीरे समझने लगी है कि इस नागपाश में लपेट कर ही अम्बानी-अडाणी सरीखे पूंजीपतियों के मुनाफे की खातिर ही उसे बेकारी-महंगाई-बदहाली के इस चरम तक संघी मण्डली ने पहुंचाया है।
वक्त की जरूरत है कि संघी मण्डली के जनविरोधी नागपाश, उसके साम्प्रदायिक वैमनस्य के एजेण्डे, उसके शैतानी कर्मों को अधिकाधिक जनता में उजागर कर मेहनतकश जनता को इनके चंगुल से बाहर निकाला जाए। देश को फासीवादी हिन्दू राष्ट्र की ओर ले जाने की इनकी तिकड़मों का मुंहतोड़ मुकाबला किया जाए।
नारा राम का कर्म शैतान का
राष्ट्रीय
आलेख
इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।
आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।