
यह कहावत अमित शाह के बेहद ‘लायक’ पुत्र जय शाह पर एकदम सटीक बैठती है। इस कहावत में आपको ‘किस्मत’ की जगह पर ‘‘बाप’’ पढ़ना पड़ेगा। और बाप भी ऐसा-वैसा नहीं बल्कि अमित शाह जैसा बाप।
जय शाह ‘किस्मत’ की वजह से पहले बीसीसीआई के सचिव बने। सचिव बनते ही जय शाह की दौलत को पांव लग गए। अब उन पर ‘किस्मत’ की और मेहरबानी हुई, और वे इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) के अध्यक्ष बन गए। ‘किस्मत’ का ऐसा दबदबा रहा कि अध्यक्ष पद के लिए उनके सामने कोई खड़ा तक नहीं हो पाया। अध्यक्ष बनते ही जय शाह ने कहा ‘‘मैं बहुत खुश हूं’’। ‘किस्मत मेहरबान रहेगी (रही) तो महाशय आप ऐसे ही खुश रहेंगे।
जय शाह की खुशी से आप समझ सकते हैं कि परिवारवाद को रात-दिन गाली देने वालों को भी असली खुशी परिवार की मेहरबानी से ही मिलती है। वैसे सबको पता है कि ‘किस्मत’ की वजह से जय शाह पहले बीसीसीआई के सचिव और अब आईसीसी के अध्यक्ष बने हैं अन्यथा उनका क्रिकेट से उतना ही लेना-देना है जितना आजादी की लड़ाई से हिंदुत्ववादियों का था। क्रिकेट के खेल में यदि इतना पैसा ना होता तो बाप कभी अपने बेटे को उस तरफ मुंह भी न करने देता।