मसखरे लड़के और योगी सरकार

लखनऊ में महिला के साथ बदतमीजी

लखनऊ

पिछले दिनों बारिश के कारण लखनऊ शहर के ठीक बीचों बीच, प्रसिद्ध ताज होटल के अंडरपास में पानी भर गया। पानी के भरने पर कुछ 20-22 साल के नौजवान आते-जाते लोगों पर पानी उछालने लगे, उन्हें जबरदस्ती भिगोने लगे। बारिश में उनकी यह मस्ती धीरे-धीरे बदतमीजी में बदलने लगी। उसी समय इन नौजवानों ने एक बाइक सवार पुरुष की बाईक को जबरदस्ती पीछे खींचा और पीछे बैठी महिला के साथ बदसलूकी की। बारिश के कारण जल भराव होने से आने-जाने वाले लोग किस परेशानी में हैं और उनकी इस बदतमीजी का समाज में क्या असर पड़ेगा, इस बात से इन मसखरे लड़कों को जरा भी सरोकार नहीं था। यह उनकी असंवेदनशीलता को दिखाता है। यह घटना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आधिकारिक बंगले से दो किलोमीटर की दूरी पर घटी।
    
जब बाईक सवार पुरुष और महिला के साथ बदतमीजी का वीडियो वायरल हुआ और सरकार की चारों तरफ थू-थू हुई तब योगी सरकार हरकत में आई। लेकिन हिन्दू फासीवादी विचारों से भरा दिमाग क्या करता। क्योंकि यह दिमाग न तो जनवाद और न महिलाओं के साथ अभद्रता के कारणों को समझता है। यह दिमाग तो हिन्दू-मुसलमान को जानता है। इसी नजरिये से वह सारे अपराधों को देखता है। 
    
इस घटना में बहुत से नौजवान शामिल थे लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो लड़कों (एक मुसलमान और एक यादव) का नाम लेकर इस घटना में भी साम्प्रदायिकता और जातिवाद का तड़का लगाने और कठोर कानून लागू करने की बात कही। वास्तविकता यह है कि इस घटना में शामिल बहुत सारे हिन्दू नाम भी सामने आए। लेकिन जिस तरह से दो नामों को विधानसभा के पटल पर रखकर इस घटना के बारे में बताया गया उसमें अपराध को खत्म करने की नहीं नफरत की बू ही ज्यादा थी। साफ है ऐसे समय में भी योगी अपने फासीवादी, राजनीतिक हितों को ही सर्वोपरि रख रहे थे। यह व्यवहार अपने आप में योगी सरकार की इस मामले में असंवेदनशीलता को ही दिखाता है।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।