हरिद्वार/ दिनांक 26 जनवरी 2025 को ‘बढ़ते फासीवादी हमले तथा ट्रेड यूनियन के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर हरिद्वार में ट्रेड यूनियनों की कार्यशाला इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा आयोजित की गई। इस कार्यशाला में हरिद्वार, रुद्रपुर, लालकुंआ, फरीदाबाद, गुड़गांव औद्योगिक क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों के अलावा ग्रामीण मजदूर यूनियन मऊ, ऑटो वर्कर्स यूनियन बरेली, दिल्ली के ठेका मजदूर व प्रगतिशील भोजनमाता यूनियन ने भागीदारी की। इस कार्यशाला में लगभग एक दर्जन यूनियनों ने भागीदारी की।
कार्यशाला में आई विभिन्न फैक्टरी यूनियनों के नेताओं ने अपनी बात रखते हुए बताया कि फैक्टरी प्रबंधन लगातार स्थाई मजदूरों की छंटनी कर रहा है तथा उनके स्थान पर ठेके, नीम ट्रेनी, प्रशिक्षण के नाम पर तथा स्कीम मजदूरों को भर्ती किया जा रहा है। बड़े उद्योगों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी फैक्टरियों में मजदूरों को न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। फैक्टरियों में बुनियादी श्रम कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है। फैक्टरी यूनियनों के नेतृत्व ने अपने वक्तव्य में बताया कि मोदी सरकार ने 44 केन्द्रीय श्रम कानूनों को खत्म कर 4 लेबर कोड्स लाकर मजदूर वर्ग पर बहुत बड़ा हमला बोला है। जबकि लेबर कोड्स आधिकारिक तौर पर लागू भी नहीं हुए हैं लेकिन पूंजीपति वर्ग ने इन लेबर कोड्स को व्यवहार में लागू करना शुरू भी कर दिया है। वक्ताओं ने अपनी बातों में बताया कि मजदूर वर्ग पर जो लेबर कोड्स से लेकर, किसानों पर नई कृषि विपणन नीति के तहत सुनियोजित हमला बोला गया है यह फासीवादी हमला है।
रुद्रपुर से आए मजदूरों ने बताया कि मजदूरों के विरोध प्रदर्शन से लेकर, यूनियन बनाने जैसे बुनियादी अधिकारों पर मोदी सरकार द्वारा रोक लगा दी गई है। डाल्फिन फैक्टरी के मजदूर बनियादी श्रम कानूनों को लागू करने तथा अपनी यूनियन बनाने की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन शासन-प्रशासन व श्रम विभाग ने बुनियादी श्रम कानूनों की उल्लघंना करने वाले डाल्फिन फैक्टरी के मालिक पर कानूनी कार्यवाही के बजाय मजदूरों व उनका नेतृत्व करने वाले लोगों पर ही मुकदमे लगा कर आंदोलन का दमन किया। मजदूरों पर यह फासीवादी हमला ही है जो बुनियादी श्रम कानूनों को लागू करवाने की बजाय सरकार मजदूर आंदोलन का ही दमन कर रही है। इंटरार्क (पंतनगर व किच्छा) व बेलसोनिका गुड़गांव में यूनियन व प्रबंधन के मध्य हुए त्रिपक्षीय समझौतों को लागू करवाने की बजाय श्रम विभाग व शासन-प्रशासन फैक्टरी मालिकों के साथ नंगे तौर पर खड़ा होकर मजदूरों पर ही कार्यवाही कर रहा है।
कार्यशाला में बात रखते हुए इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कैलाश ने मजदूर वर्ग पर हो रहे फासीवादी हमले तथा फासीवाद के आसन्न खतरों को रेखांकित करते हुए अपनी बात में कहा कि वर्तमान में हो रहे मजदूर आंदोलनों का दमन मोदी सरकार फासीवादी तौर-तरीकों से कर रही है। पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था में मौजूद सामूहिक उत्पादन तथा निजी मालिकाने व उत्पादन नियोजित तथा वितरण में अराजकता ये दो मुख्य अतंरविरोध हैं। ये अतंरविरोध पूंजीवादी व्यवस्था में हल नहीं हो सकते। ये अंतरविरोध पूंजीवादी संकट को लगातार बढ़ा रहे हैं तथा एकाधिकारी पूंजी के मुनाफे को लगातार बढ़ा रहे हैं। अपने आर्थिक सकंट से निपटने के लिए तथा मजदूर वर्ग को और ज्यादा निचोड़ने के लिए एकाधिकारी पूंजी व बीजेपी-आर.एस.एस. का गठजोड़ कायम हुआ है। यह गठजोड़ भारत में हिन्दू फासीवाद के खतरे के रूप में आगे बढ़ रहा है। ट्रेड यूनियनों को राजनीतिक व अपनी वैचारिक जमीन को मजबूत करते हुए वर्गीय तौर पर मजदूरों को संगठित करना होगा।
मजदूरों ने इस महत्वपूर्ण बात की ओर ध्यान दिलवाया कि आज मजदूरों के पास कोई क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन सेंटर नहीं है। वर्तमान में जो भी केन्द्रीय ट्रेड यूनियन सेंटर है वह मजदूरों की लड़ाई लड़ने में अक्षम हो चुके हैं। वे अपने क्रांतिकारी कार्यभार को छोड़ चुके हैं। इसलिए मजदूरों का तात्कालिक कार्यभार है कि वह अपने क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन सेंटर का निर्माण कर इस संघर्ष को निर्णायक संघर्ष की ओर लेकर जाएं।
कार्यशाला में आई विभिन्न ट्रेड यूनियनों के वक्ताओं ने अपनी बातों में कहा कि अब ऐसी यूनियनों को एक प्लेटफोर्म पर आना होगा और अपने आर्थिक संघर्ष के साथ साथ अन्य फैक्टरियों के मजदूरों के आंदोलनों, किसानों, छात्रों, दबे-कुचले व अल्पसंख्यकों के ऊपर हो रहे हमलों के खिलाफ अपनी एकजुटता को प्रदर्शित कर व्यवहारिक कार्यवाहियां करनी होंगी। मजदूरों को वर्ग के बतौर संगठित करने के अपने कठिन कार्यभार को हाथ में लेकर आगे बढ़ना होगा।
-हरिद्वार संवाददाता