आईएमटी मानेसर में मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न

आईएमटी मानेसर में मजदूरों के हालात बहुत बुरे हैं। ज्यादातर कंपनियों में सौ प्रतिशत अस्थाई मजदूर कार्य कर रहे हैं। ज्यादातर कंपनियों में सिंगल ओवरटाइम दिया जा रहा है। ज्यादातर कंपनियों में बोनस नहीं दिया जा रहा है। ज्यादातर कंपनियों में कैंटीन की व्यवस्था नहीं है। ज्यादातर कंपनियों में स्थाई काम पर ठेका मजदूरों को रखा जा रहा है। समान काम के लिए समान वेतन का कानून नदारद दिखाई दे रहा है। मजदूरों को मालिकों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। काम के नाम पर, पेशाब के लिए जाने पर, घर पर कोई काम होने पर छुट्टी जाने पर सैलरी ना देकर और अन्य तरीकों से मजदूरों को प्रताड़ित किया जा रहा है जिसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं।
    

केडीएस कंपोनेंट प्लाट नंबर 106 सेक्टर 7 आईएमटी मानेसर में कंपनी के मालिक भगत सिंह और उसके बेटे दिनेश की तानाशाही जोरों पर है। कोई मजदूर पेशाब करने जाता है तो उसको कंपनी का मालिक भगत सिंह पूछता है कहां गए थे। मजदूर जवाब देता है कि मैं पेशाब करने गया था तो इस बात पर मालिक मजदूर को थप्पड़ मार देता है। मजदूर इसका जवाब नहीं देकर कंपनी छोड़कर जाने की बात कहता है लेकिन मालिक का बेटा दिनेश उस मजदूर को गेट पर पकड़ कर उसकी पिटाई करता है। इसी कंपनी में शिवकुमार और रवि चौहान दो मजदूरों की सैलरी नहीं दी जाती है जिसके कारण उनको श्रम विभाग में शिकायत लगानी पड़ती है। जेएमडी ऑटो प्लाट नंबर 81 सेक्टर 4 आईएमटी मानेसर में कार्य करने वाले मजदूर राहुल कुमार और रवि शंकर को भी तनख्वाह नहीं दी जाती है। मजदूरों से लगातार चक्कर लगवाए जाते हैं। आज-कल करके मजदूरों को भ्रमित किया जाता है।
    

आज ज्यादातर कंपनियों में मजदूरों को 8 सरकारी छुट्टियों के अलावा कोई छुट्टी नहीं दी जाती है। काफी बार तो इन आठ छुट्टियों में भी काम करवाया जाता है। ज्यादातर कंपनियों में मजदूर परेशान होकर 8-15 दिन की सैलरी छोड़ देते हैं क्योंकि मजदूरों से इतने चक्कर लगवाए जाते हैं कि मजदूर परेशान होकर कोई रास्ता न मिलने पर अपनी सैलरी छोड़कर घर चले जाते हैं या दूसरी कंपनी में कार्य करने लग जाते हैं।
    

आज श्रम विभाग के अधिकारी भी खुले तौर पर कहने लगे हैं कि सरकार नहीं चाहती कि कंपनियों में श्रम कानून लागू हों। आज जरूरत बनती है कि सभी मजदूर, वर्ग के आधार पर एकजुट हों और अपनी वर्गीय एकता के दम पर पूंजीपति वर्ग को चुनौती पेश करते हुए अपने हक-अधिकारों के लिए संघर्ष तेज करें।
    

मजदूरों को अपने क्रांतिकारी संगठन बनाने होंगे और अपने ऐतिहासिक कार्यभार को जानते हुए, मजदूर राज की तरफ आगे बढ़ना होगा।
    

आज देश को अगर बराबरी से चलाया जाए तो हर परिवार के हिस्से 60-70 हजार रुपए महीना आ सकता है लेकिन हम देखते हैं कि इस पूंजीवादी समाज में कोई करोड़ों हर दिन कमा रहा है और कोई दाने-दाने को मोहताज है। कोई सुबह से शाम तक कूड़ा बीन कर अपना और अपने बच्चों का पेट भर रहा है तो कोई 12-14 घंटे काम करके अपने बच्चों का जीवन यापन कर रहा है। हम देख रहे हैं कि अमीरी और गरीबी के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। आजादी के 75 साल के बाद भी भारत के अंदर आर्थिक बराबरी की बात करना भी बेमानी है। बिना आर्थिक बराबरी के ना तो सामाजिक बराबरी आ सकती है और ना ही राजनैतिक बराबरी। इस तरह हम देखते हैं कि हमारे देश का लोकतंत्र एक ढकोसले के अलावा कुछ भी नहीं है या यह कहें कि हमारे देश में पूंजीवादी जनतंत्र है जो जितना बड़ा पूंजीपति होगा उसके लिए उतना ही ज्यादा जनतंत्र है और एकाधिकारी पूंजी के लिए देश की सरकार भी गुलामी करती है यानी हमारे देश में एकाधिकारी पूंजी का राज चल रहा है।
    

हमारे देश के दलित, किसान और मजदूर भ्रमित हैं कि हमारे देश में लोकतंत्र है।
    

आओ हम अपना भ्रम तोड़ते हुए एक वास्तविक लोकतंत्र यानी समाजवादी समाज के लिए संघर्ष को तेज करें। यह समाजवादी समाज भगत सिंह जैसे तमाम क्रांतिकारियों का भी लक्ष्य था।             -एक पाठक, मानेसर

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।