गाजापट्टी में फौरी युद्ध विराम और फिलिस्तीन की आजादी का सवाल

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गाजापट्टी में फिलहाल युद्ध विराम हो गया है। यहूदी नस्लवादी इजरायली हुकूमत को मोटे तौर पर उन्हीं शर्तों पर समझौता करना पड़ा है जिनको वह पहले ठुकरा चुकी थी। गाजापट्टी में इजरायली बंधकों को क्रमशः छोड़ा जा रहा है और एक बंधक के बदले में 30 फिलिस्तीनी कैदियों को इजरायल रिहा कर रहा है। कुछ मामलों में एक बंधक के बदले 50 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया गया है। इतने बड़े नरसंहार और बर्बादी के बाद यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की हुकूमत न तो हमास और अन्य प्रतिरोधी संगठनों का सफाया कर पायी और न ही अपने बंधक छुड़ा पायी। आखिरकार बंधकों को छुड़ाने के लिए उसी ‘‘आतंकवादी’’ संगठन से समझौता करना पड़ा। इतना ही नहीं, उसे राफा सीमा पर फिलाडेल्फी गलियारा खोलना पड़ा और पूर्वी दिशा के गलियारे को भी फिलिस्तीनियों के लिए खोला गया। इन नाकों पर इजरायली सेना कब्जा जमाये बैठी है। उत्तरी गाजा को खण्डहर में तब्दील कर दिया गया था। वहां की आबादी को जबरन दक्षिणी गाजा में जाने के लिए मजबूर कर दिया गया था। जैसे ही युद्ध विराम हुआ और उत्तरी गाजा में जाने देने के लिए समझौते के मुताबिक इजरायली हुकूमत को मजबूर होना पड़ा, वैसे ही लाखों लोग पैदल ही दक्षिणी गाजा से अपने सामान सिर पर या हाथगाड़ी पर लादे हुए निकल पड़े। इनमें बच्चे, बूढ़े, महिलायें और बीमार सभी थे। इतनी तबाही और नरसंहार झेलने के बाद भी लोगों में अपनी जमीन पर जाने की खुशी और उत्साह का नजारा देखने लायक था। वे जानते हैं कि उनका घर मलबे में तब्दील हो चुका है। वहां पानी नहीं है। अस्पताल नष्ट कर दिये हैं। स्कूल, शिक्षण संस्थायें, धार्मिक स्थल सभी जमींदोज कर दिये गये हैं। फिर भी, अपना देश, अपना घर, अपने लोग सभी से जो भावनात्मक लगाव होता है, उसकी अभिव्यक्ति इन लाखों लोगों में, तमाम पीड़ा और अपने सगे-सम्बन्धियों को खोने के बावजूद, साफ-साफ देखी जा सकती है। 
    
इसके ठीक विपरीत, लेबनान की सीमा से सटे हुए इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों को उजाड़कर बसाई गयी यहूदी बस्तियों से पलायित लोग वापस फिर से अपने कब्जे किये गये घरों से वापस लौटने में आनाकानी कर रहे हैं। ये कब्जाकारी किसी दूसरे देश के नागरिक हैं। उनके लिए कब्जा की गयी जमीन और घर महज एक सम्पत्ति हैं। इस जमीन से उनका कोई आत्मिक लगाव नहीं है। वे किसी और देश के मूल नागरिक हैं। यहूदी होने के नाते वे इजरायल के भी नागरिक हैं। इस जमीन के लिए वे अपनी जिंदगी क्यों जोखिम में डालने लगे?
    
उत्तरी गाजा में फिलिस्तीनियों के बढ़ते काफिले को देखकर यहूदी नस्लवादियों में हताशा और गुस्सा दिख रहा है। वे कहां तो यह सपना देख रहे थे कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को खदेड़कर वहां यहूदी बस्तियां बसायेंगे, अब वह सपना दुःस्वप्न में बदलता दिख रहा है। नेतन्याहू ने इजरायली यहूदियों को जो यह झूठा सपना दिखाया था कि पश्चिमी किनारे की तरह गाजापट्टी में यहूदी बस्ती बसायेंगे, वह लोगों को धूल-धूसरित होता दिख रहा है। नेतन्याहू के विरुद्ध इससे लोगों में और भी ज्यादा गुस्सा बढ़ रहा है। वे छला हुआ महसूस कर रहे हैं। इससे बचने के लिए दक्षिणपंथी यहूदी नस्लवादी घोषित कर रहे हैं कि समझौते की मियाद (पहले 42 दिन) समाप्त होते ही वे फिर से पूरी ताकत के साथ गाजापट्टी में युद्ध छेड़ देंगे। खुद इजरायल के अंदर नेतन्याहू का विरोध बढ़ता जा रहा है। इस विरोध को मद्धिम करने के लिए उसने पश्चिम किनारे में फिलिस्तीनियों पर हमला कर दिया है। जेनिन शरणार्थी शिविर पर उसने सेना की मदद से कब्जाकारियों द्वारा हमला करा दिया। इसके जवाब में पश्चिमी किनारे में भी फिलिस्तीनी समूह इजरायली हमलावरों पर हमला कर रहे हैं। वहां भी हमास जैसे लड़ाकू तैयार और मजबूत होते जा रहे हैं। इनको कुचलने में न तो इजरायली समर्थ हो पा रहे हैं और न ही इनकी पिछलग्गू फिलिस्तीनी प्राधिकार की हुकूमत। 
    
यही हाल लेबनान का है। वहां युद्ध-विराम के 60 दिन पूरे हो गये हैं। इजरायल ने अपनी सेना को हटाने से फिलहाल मना कर दिया है। उसने सीमा पर अपनी सेना की तैनाती की मियाद एक महीने और बढ़ाने की मांग की है। इन 60 दिनों के दौरान इजरायल लगातार समझौते का उल्लंघन करता रहा है। उसने सीमावर्ती दक्षिणी लेबनान पर लगातार हमले किये हैं। अमरीकी, फ्रांसीसी समझौताकारों और लेबनानी सरकार ने इजरायल को 20 दिन तक लेबनानी सीमा पर सेना की तैनाती की अवधि बढ़ाने की मंजूरी दे दी है। इसका हिजबुल्ला ने विरोध किया है। हिजबुल्ला के महासचिव ने कहा है कि 60 दिन की अवधि 26 जनवरी को समाप्त हो गयी है। इजरायल को तत्काल सीमा से अपनी सेना को हटा लेना चाहिए। यदि इजरायली सेना नहीं हटती तो हिजबुल्ला अपनी कार्रवाई को अपने हिसाब से अंजाम देगा। 
    
हिजबुल्ला तब तक फिलिस्तीनियों के समर्थन और सहयोग में कार्रवाई करता रहेगा, जब तक गाजापट्टी से इजरायली सेना हट नहीं जाती। हिजबुल्ला ने गाजापट्टी में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठनों द्वारा युद्ध विराम के समझौते का स्वागत किया है और कहा है कि यह प्रतिरोध संगठनों की जीत और इजरायली नस्लवादी यहूदी हुकूमत की हार है। 
    
ट्रम्प ने पहले यह कहा कि उनके शपथ ग्रहण करने से पहले हमास और इजरायल समझौता कर लें नहीं तो वे गाजापट्टी को नरक बना देंगे। कहा जाता है कि ट्रम्प के दबाव में आकर यहूदी नस्लवादी शासक समझौता करने के लिए मजबूर हुए। लेकिन समझौता होने के बाद ट्रम्प ने कहा कि गाजापट्टी तो मलबे का ढेर है, वह रहने लायक नहीं है। गाजापट्टी के फिलिस्तीनियों को मिश्र और जार्डन में बसने के लिए चले जाना चाहिए। उन्होंने मिश्र और जार्डन के शासकों से कहा कि उन्हें फिलिस्तीनियों को अपने यहां बसाने की जगह दे देनी चाहिए। ट्रम्प की इस बात का मिश्र और जार्डन के शासकों ने विरोध किया। अरब देशों के अधिकांश शासकों ने ट्रम्प की फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से निकालकर बाहर दूसरे देशों में बसाने की नीति को ‘नस्ली सफाये’ की संज्ञा दी है। स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की धारणा की यह विरोधी बात है। गाजापट्टी के प्रतिरोध संगठनों और फिलिस्तीनी प्राधिकार ने भी ट्रम्प की इस बात का विरोध किया है। गाजापट्टी के सभी प्रतिरोध संगठनों ने कहा है कि फिलिस्तीन से, गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को कोई भी ताकत बाहर नहीं कर सकती। 
    
ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 
    
इस मामले में ट्रम्प अपने पहले वाले राष्ट्रपति जो बाइडेन से दो कदम आगे ही है। उसने घोषणा की है कि इजरायल को वह 2000 पाउण्ड के बम देगा और अन्य हथियार व गोला बारूद देगा। इसके पहले वाले काल में वह पश्चिमी किनारे पर यहूदी नस्लवादी शासकों द्वारा यहूदी बस्ती बसाते जाने का समर्थन कर चुके हैं। दरअसल, ट्रम्प को पश्चिमी एशिया में अपनी कमजोर होती जाती स्थिति का भी अहसास है। वह पश्चिमी एशिया में युद्ध का विस्तार नहीं चाहते। लेकिन इजरायल के शासक चाहते हैं कि ईरान के विरुद्ध युद्ध शुरू कर दें। यदि इजरायल ईरान पर हमला कर देता है तो अमरीकी साम्राज्यवादियों को इजरायल के साथ युद्ध में खड़ा होना मजबूरी हो जायेगी। ट्रम्प इस संभावना से बचने के लिए ईरान के साथ अलग से कोई बातचीत चला रहे हैं। 
    
पश्चिमी एशिया में टकराहट की अन्य कई जगहें और मुद्दे हैं, लेकिन इस समय फिलिस्तीन की आजादी का मुद्दा सबसे ज्वलंत और केन्द्र में आ गया है। फिलिस्तीन की आजादी का संघर्ष इतिहास का एक छूटा हुआ मुद्दा है। इसे काफी समय पहले ही हल हो जाना चाहिए था। लेकिन साम्राज्यवादियों द्वारा इजरायल को बसाने (फिलिस्तीनियों को उजाड़कर) और उसे मजबूत समर्थन और सहयोग करने के चलते यह मसला टलता गया और इजरायल फिलिस्तीनियों को उजाड़कर यहूदी बस्तियां बसाता गया व अपने इलाके का विस्तार करता गया। 
    
पिछले 75 वर्षों से फिलिस्तीनी अपनी आजादी के लिए लड़ रहे हैं। वे नकबा (महाविनाश) के शिकार हुए हैं। अपनी जमीन से उजड़कर शरणार्थी बनने पर विवश किये गये हैं। लेकिन अब यह संघर्ष एक निर्णायक मुकाम पर पहुंच गया है। पूरे फिलिस्तीन पर कब्जा करने की इजरायली शासकों की इच्छायें परवान नहीं चढ़ी हैं। इसका कारण भी स्पष्ट है कि जब किसी छोटे और कमजोर देश की मजदूर-मेहनतकश आबादी व्यापक तौर पर एकजुट होकर खड़ी हो जाती है तो वह एक बड़े और ताकतवर देश के आक्रमण, अन्याय व अत्याचार को परास्त कर सकती है। यही इस समय गाजापट्टी में हो रहा है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि युद्ध का फैसला एक या दो किस्म के नये आधुनिक हथियार नहीं करते बल्कि एकजुट, गोलबंद और संगठित अवाम करती है। 
    
फिलिस्तीन की आजादी का संग्राम इसे सिद्ध करेगा। मौजूदा युद्ध विराम के बाद यह संघर्ष और आगे बढ़ेगा और देर-सबेर साम्राज्यवादी और यहूदी नस्लवादी शासकों के मंसूबों को ध्वस्त करके स्वतंत्र फिलिस्तीन बनेगा।   

 

ट्रंप की क्लीन गाजा योजना 

धूर्त अमेरिकी साम्राज्यवादियों के नए प्रतिनिधि डोनाल्ड ट्रंप के सत्तासीन होते ही आक्रामक होने की ही ज्यादा संभावना थी। अब उन्होंने इस ओर कदम भी बढ़ा दिए हैं। अपनी फासीवादी प्रवृत्ति के अनुरूप उन्होंने गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में रह रहे अप्रवासी श्रमिकों को बाहर निकालने का फरमान सुनाया है। अमेरिकी पुलिस इन अप्रवासी श्रमिकों की तलाश में इधर-उधर छापे मार रही है। तो दूसरी तरफ नरसंहार झेलती फिलिस्तीनी जनता के लिए क्लीन गाजा की योजना पेश कर डाली है।
    
यह क्लीन गाजा की योजना, ट्रंप के हिसाब से फिलिस्तीनी जनता की तबाही-बर्बादी का नायाब समाधान है। गाजा पट्टी में रह रही 23 लाख की आबादी जिसमें से 50 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, एक लाख से ज्यादा घायल हैं और 19 लाख की आबादी शरणार्थियों की स्थिति में रहने को बाध्य कर दी गई थी। इस पीड़ित और नरसंहार को झेलती, तबाह-बर्बाद जनता के लिए क्लीन गाजा योजना के हिसाब से गाजा पट्टी छोड़कर जार्डन और मिश्र के किसी इलाके में बसना होगा और वहां ये शांतिपूर्ण जीवन गुजार सकते हैं। 
    
ट्रंप का यह रुख कोई नया नहीं है। शपथ ग्रहण होने से पहले ही, जब अभी इजरायल-हमास के बीच युद्धविराम समझौता नहीं हुआ था उससे पहले ही ट्रंप ने हमास को धमकी दी थी कि युद्धविराम कर लें अन्यथा गाजा नरक बन जाएगा। गाजा को इजरायली शासक पहले ही तबाह-बर्बाद कर चुके हैं। इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं, पूरी अवरचना ध्वस्त हो चुकी हैं, यह लाखों टन मलबे में बदल चुकी हैं। बमों, रासायनिक चीजों के चलते पानी और वातावरण काफी खराब स्थिति में है। मलबे में 10 हजार शवों के दबे होने के चलते भी बीमारी फैलने का खतरा है।                   
    
ट्रंप की क्लीन गाजा योजना इस तबाही-बर्बादी की आड़ लेकर पेश की गई है। ट्रंप ने कहा गाजा अब नरक बन चुका है, वहां रहने लायक स्थिति नहीं है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि गाजा में इजरायली शासकों ने लगभग 19 अरब डालर की अवरचना और इमारतों को ध्वस्त कर दिया है। गाजा के पुनर्निर्माण के लिए न्यूनतम 21 साल लगने और लगभग 37 अरब डालर से ज्यादा लागत अनुमानित है। जाहिर है इस पुनर्निर्माण की आड़ में भी बड़े खेल होंगे।
    
ट्रंप का यह बयान और क्लीन गाजा इजरायली शासकों की ही नीति और पसंदगी के हिसाब से हैं। यह अमेरिकी साम्राज्यवादियों की पश्चिमी एशिया को किसी भी तरह अपने प्रभाव में बनाए रखने की नीति से पैदा होती है।
    
क्लीन गाजा योजना फिलिस्तीनी जनता के लिए कहीं से भी सुकूनदायक नहीं है। यह फिलिस्तीनी जनता को उसी की जमीन से उजाड़कर दूसरे देशों में शरणार्थियों की स्थिति में धकेल देने की योजना है। यह योजना इजरायली शासकों के बृहत्तर इजरायल की योजना को आगे बढ़ाती है। इजरायली शासक यही चाहते हैं कि वेस्ट बैंक और गाजा से फिलिस्तीनी जनता को खदेड़कर मिश्र के सिनाई या अन्य जगह घेट्टो के रूप में रहने को विवश कर दिया जाये। समग्र फिलिस्तीन फिर समग्र इजरायल बन जाएगा। इजरायली शासकों का जियनवादी एजेंडा इस रूप में एक हद तक पूरा हो जाएगा।
    
फिलहाल ट्रंप की क्लीन गाजा योजना का दो जगहों से विरोध है। पहला विरोध फिलिस्तीनी जनता का और इसकी आकांक्षा को स्वर देते संगठनों का है जो अलग फिलिस्तीनी राष्ट्र की आकांक्षा लिए हुए इसके लिए कई दशकों से संघर्षरत हैं। इस जायज और न्यायपूर्ण संघर्ष में अकूत कुर्बानियां जनता ने दी हैं और बेपनाह दुख-दर्द झेला है जो अभी भी जारी है। 
    
दूसरा विरोध मिश्र और जार्डन के शासकों का है और अरब लीग का है। जार्डन के शासक ने कहा है जार्डन जार्डनवासियों के लिए है। फिलिस्तीन फिलिस्तीनियों के लिए। अरब लीग, मिश्र और जार्डन के शासकों का विरोध दरअसल अपनी सौदेबाजी के लिए ही है। वास्तव में इन्हें फिलिस्तीनी जनता से कोई सरोकार नहीं है। अरब लीग में शामिल देशों के शासकों की रब्त-जब्त जहां इजरायली शासकों से हैं वहीं ये अमेरिकी शासकों से भी संबंध बनाए हुए हैं। 
    
अरब लीग के देशों और मिश्र तथा जार्डन एक तरफ इजरायल से तो दूसरी तरफ अमेरिकी शासकों से आर्थिक, सैन्य, व्यापारिक संबंध में हैं। ऐसे में क्लीन गाजा की योजना में इनके सहमत होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये सौदेबाजी ही कर सकते हैं। भले ही अभी ये विरोध कर रहे हों। 
    
आज भले ही दुनिया में आम तौर पर ही अमेरिकी, रूसी या अन्य साम्राज्यवादी शासक वर्ग और अन्य देशों के शासक पूंजीपति हर जगह जनवादी आंदोलनों को कुचलने में सफल रहे हों मगर फिर से देर सबेर जनता अपने क्रांतिकारी संघर्षों से इन्हें पीछे हटने के लिए बाध्य कर देगी। फिलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध और मुक्ति संघर्ष फिर से उठ खड़ा होगा। 
 

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