लालकुंआ/ सेन्चुरी पेपर मिल में अगस्त 2024 से नवम्बर 2024 तक चली स्थायी श्रमिकों द्वारा त्रिवार्षिक समझौते को अपनी मांगों के अनुरूप कराने की मुहिम का समापन 11 दिसम्बर 2024 को हो गया। इस समझौते के हस्ताक्षरित होने के बाद पहलकदमी लिये हुए स्थायी श्रमिकों ने अंततः अपने आप को असहाय, छला हुआ महसूस किया।
सेन्चुरी मिल में त्रिवार्षिक समझौता (फरवरी 24-जनवरी27) 30 नवम्बर 24 को सम्पन्न हो चुका है। समझौते का जिला श्रम आयुक्त हल्द्वानी द्वारा पंजीकरण भी किया जा चुका है।
अगर हम इस बार के समझौते के घटनाक्रम पर गौर करें तो पाते हैं कि प्रबंधक वर्ग और यूनियनों (श्रम संगठनों) के समझौतापरस्त नेतृत्व की मिलीभगत से त्रिवार्षिक समझौता (फरवरी 24- जनवरी 27) बेहद नाटकीय ढंग से सम्पन्न होता है। समझौता हस्ताक्षरित होने से पूर्व प्रबंधक और श्रम संगठनों के बीच समझौते के संदर्भ में आखिरी वार्ता 16 नवम्बर 24 को आयोजित होती है जो बेनतीजा साबित होती है। 16 नवम्बर 24 तक सभी वार्ताओं के बेनतीजा रहने, समझौता न होने की असमंजस की स्थिति में और लम्बे इंतजार के बाद आखिर पहलकदमी लिए हुए श्रमिक 30 नवम्बर 24 को जिला श्रम कार्यालय हल्द्वानी एक ज्ञापन लेकर पहुंचते हैं। करीब 200-250 की संख्या का स्थायी श्रमिकों का प्रतिनिधि मण्डल (4 सदस्यों वाला) जिला श्रम आयुक्त कमल जोशी से त्रिवार्षिक समझौते के सम्बन्ध में मुलाकात करते हैं। अभी कारखाने में वार्ताओं का दौर जारी होता है। श्रमिक समझौता सम्पन्न होने में देरी की शिकायत करते हैं और वार्ताओं की समस्त प्रक्रिया की पारदर्शिता श्रम संगठनों द्वारा न होने की भी शिकायत करते हैं। इससे पूर्व पहलकदमी लिए हुए ये स्वतंत्र श्रमिक कई बैठकें यूनियनों के प्रतिनिधियों व मजदूरों की बुलाकर श्रमिकों की इच्छानुरूप समझौते का दबाव यूनियनों पर बना चुके थे।
श्रम आयुक्त श्रमिकों की सभी दलीलें सुनने के बाद आश्वासन देते हैं कि द्विपक्षीय (श्रम संगठन और प्रबंधक वर्ग) समझौता सम्पन्न होने के बाद अगर मजदूरों को कोई आपत्ति होती है तो वे व्यक्तिगत रूप से 1 माह से पहले सम्पन्न समझौते को पंजीकृत नहीं करेंगे। और उनकी उपस्थिति में त्रिपक्षीय वार्ता सम्पन्न होगी। इसी आश्वासन के बाद अधिकांश श्रमिक श्रम कार्यालय से बाहर चले जाते हैं।
फिर अचानक उसी शाम को सहायक श्रम आयुक्त अरविन्द कुमार सैनी की उपस्थिति में सेन्चुरी मिल में कार्यरत छः श्रम संगठनों और मिल के सेवायोजक पक्ष के बीच समझौता (फरवरी 24- जनवरी 27) हस्ताक्षरित हो जाता है।
उक्त घटना को श्रमिकों का दबाव मानें या श्रम विभाग की प्रबंधक वर्ग के साथ मिलीभगत कहें ये तो श्रमिक खुद तय करेंगे।
उक्त दिन जिला श्रम कार्यालय के बाहर कुछ श्रमिक रुके होते हैं तभी उनको जानकारी मिलती है कि कार्यरत छः श्रम संगठनों के पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी सदस्य पूरे लाव लश्कर के साथ श्रम कार्यालय में समझौता हस्ताक्षर करने पहुंचे हैं। पिछले 16 नवम्बर 24 के बाद समझौते से जुड़ी कोई भी औपचारिक खबर श्रमिकों के पास नहीं पहुंचती है। अचानक पिछले मात्र 15 दिन के अंतराल में समझौते के सभी बिन्दुओं पर सहमति भी बन जाती है जबकि बीते 10 माह में किसी भी बिन्दु पर यूनियनें और सेवायोजक पक्ष द्विपक्षीय माध्यम से एकमत नहीं हो पाते हैं। इन सारे निरुत्तरीय प्रश्नों के साथ सक्रिय श्रमिक साथी अपने आप को फिर छला महसूस करते हैं कि आखिर कैसे इन 15 दिनों में सभी बिन्दुओं पर सहमति बन गयी।
श्रमिकों को लगता है कि इन सभी श्रम संगठनों ने उनकी पीठ में छुरा भौंका है।
इस भारी असंतोष की स्थिति में एक अनियोजित घटना घटती है। घटना यह होती है कि कार्यालय में हस्ताक्षर होने के दौरान सेन्चुरी पल्प एण्ड पेपर मजदूर यूनियन के दो कार्यकारिणी सदस्य कार्यालय के बाहर जाते हैं जहां मुहिमरत श्रमिक रुके होते हैं। कार्यकारिणी सदस्यों का बाहर आना श्रमिकों को ठेंगा दिखाना, आग में घी डालना जैसा प्रतीत होता है। तभी श्रमिकों में 4 श्रमिक मजदूर यूनियन के दो कार्यकारिणी सदस्यों को पीट देते हैं।
असंतोष से भरे हुए श्रमिकों का गुस्सा इस मार-पिटाई के रूप में ही निकलना लाजिमी था क्योंकि और कोई रास्ता उन्हें नजर नहीं आया। फिर उसके बाद यूनियन और प्रबंधक की मिलीभगत से मार-पिटाई करने वाले गुड्डू यादव (सुरेश यादव) की मैनेजमेण्ट द्वारा अगले 1 महीने की नो एंट्री लगा दी जाती है। इस चाल से मैनेजमेण्ट बाजी अपने पक्ष में कर लेती है और मुहिमरत श्रमिकों को डराने, धमकाने का काम करती है। प्रबंधक वर्ग की इस कार्यवाही से मुहिमरत श्रमिक सहम जाते हैं और अपनी सक्रियता को कम कर लेते हैं।
इस समझौते के प्रकरण में अंदरखाने एक घटना और घटती है कि 16 नवम्बर 24 से 29 नवम्बर 24 तक प्रबंधक वर्ग अंदरखाने सभी संगठनों के मुख्य पदाधिकारियों को बुलाकर समझौता सम्पन्न कराने का प्रयास करती है। वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष कैलाश चन्द्र मल्कानी और सी पी पी श्रमिक संघ के पदाधिकारी मुकेश सिंह समझौते पर हस्ताक्षर करने से मना कर देते हैं। सभी साम-दाम-दण्ड-भेद लगाते हुए प्रबंधक वर्ग अन्य पदाधिकारियों से समझौते पर हस्ताक्षर करा लेती है।
वर्कर्स यूनियन में गुटबाजी होने की वजह से और समझौते में हस्ताक्षर न करने के विरोधस्वरूप प्रबंधक कई सारे आरोप लगाते हुए (मसलन आपने डी एम (जिलाधिकारी) को हमारे विरुद्ध ज्ञापन दिया। अपनी ड्यूटी के दौरान कारखाना विरोधी कृत्य किया) अध्यक्ष को तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया जो आज की तिथि तक जारी है।
मुहिमरत श्रमिकों के पास आखिरी रास्ता समझौता निरस्त कराने का बचता था उसी अनुरूप श्रमिक दबी आवाज में हस्ताक्षर अभियान चलाते हैं पर कुल हस्ताक्षर का आंकड़ा 300 ही बना पाते हैं।
11 दिसम्बर को मुहिमरत श्रमिक अपनी मुहिम का समापन इस घोषणा के साथ करते हैं कि इस वर्ष जो भी कमियां रह गयीं उसको दूर करते हुए हम अगले समझौते 2027 में दुगुनी ताकत के साथ उतरेंगे। इस समझौते में मजदूरों को मात्र 3800 रु. की वेतन वृद्धि हासिल हुई है। जबकि मजदूर कहीं ज्यादा की मांग कर रहे थे।
सेंचुरी मिल में मौजूद 6 यूनियनें संघर्ष का माद्दा काफी पहले ही खो चुकी हैं। ऐसे में नयी पहलकदमी ले रहे मजदूरों को आम मजदूरों से संघर्ष के मसले पर व्यापक एकजुटता बनानी होगी। तभी वे यूनियनों पर दबाव बना सकते हैं या नई संघर्षशील यूनियन बनाने की ओर बढ़ सकते हैं।
-लालकुंआ संवाददाता