सुनो! संघियो, मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं -मृगया शोभनम्

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सुनो!
संघियो, सुनो !
मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं,
तुम्हारी हर बात झूठी है
तुम्हारी धर्म की व्याख्या झूठी है,
तुम्हारा इतिहास का बखान झूठा है,
तुम्हारा वर्तमान झूठा है,
तुम्हारी भविष्य की योजनाएं झूठी हैं।

सुनो ! संघियो, सुनो !
मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं,
आज तुम जो इतराये फिरते हो,
पूरे हिंदोस्तां को रौंदे फिरते हो,
मुंह में राम बगल में छुरी रखते हो,
ये सब ज्यादा दिन न चल पायेगा,
अंत कंस का हुआ, तुम्हारा भी हो जायेगा।

सुनो ! संघियो, सुनो !
मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं,
तुम सच को झूठ बनाने में माहिर हो,
तुम झूठ को सच बनाने की कला जानते हो,
तुम लोगों के होश उड़ाना जानते हो,
तुम जानते हो घर कैसे जलाते हैं,
तुम्हें पता है, कैसे भावनाएं भड़कानी हैं,
तुम्हें मालूम है, कैसे बस्तियां जलानी हैं,
ये सब ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा,
अंत रावण का हुआ, तुम्हारा भी हो जायेगा।

सुनो ! संघियो, सुनो !
मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं,
तुम राष्ट्र के नाम पर मेहनतकशों को धोखा देते हो,
तुम धर्म के नाम पर धर्म का धंधा करते हो,
तुम हिन्दू के नाम पर चुनावी बिसात बिछाते हो,
तुम समझते हो जो चाहे वह तुम कर लोगे
पूरा देश, तुम्हारी ‘हां’ में ‘हां’, ‘ना’ में ‘ना’ कहेगा
ये सब ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा
अंत मुसोलिनी का हुआ तुम्हारा भी हो जायेगा।

सुनो ! संघियो, सुनो !
मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं,
मुझे बताओ तुम्हारे सौ साल का इतिहास क्या है
क्या तुमने जाति व्यवस्था का अंत किया,
क्या तुमने नारियों की मुक्ति के लिए किया!
क्या तुमने मजूरों को न्याय दिलाया,
क्या तुमने किसानों की पीड़ा को हरा,
तुमने क्या किया? जब किया दंगा किया,
फसाद किया, भाई को भाई से लड़ाया,
ये सब ज्यादा दिन नहीं चल पायेगा,
अंत तोजो का हुआ तुम्हारी भी हो जायेगा

सुनो ! संघियो, सुनो !
मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं,
जो अपने हक की बात करे वो तुम्हें ‘वोक’ लगता है
जो भारत की विविधता की बात करें
वो तुम्हें ‘कल्चरल मार्किस्ट’ लगता है,
जो तुम्हारी काले षड्यंत्र खोले
वो तुम्हें ‘डीप स्टेट’ लगता है,
तुम क्या चाहते हो पूरा देश चुप लगा जाये,
हम कोई कठपुतली नहीं, तुम्हारे इशारों पे नाचे जायें,
ये सब ज्यादा दिन नहीं चल पायेगी,
अंत हिटलर का हुआ, तुम्हारा भी हो जायेगा

सुनो ! संघियो, सुनो !
मैं तुम्हारे मुंह पर कहती हूं, 
इतिहास में सिर्फ अंत ही नहीं होता
आरम्भ भी होता है, नई शुरूवात भी होती है
इतिहास का निरर्थक गान नहीं,
इतिहास का निर्माण भी होता है
अब सिर्फ यही और यही होगा
इंकलाब का बिगुल बजेगा, हर ओर उजाला होगा

(साभार : ‘यह वक्त नहीं चुप रहने का’ कविता संग्रह से)

आलेख

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।