आज से सौ से भी अधिक साल पहले 1917 में रूस में हुई समाजवादी क्रांति एक महान ऐतिहासिक घटना थी। इस क्रांति के परिणामस्वरूप इतिहास में पहली बार किसी देश की सत्ता वहां के मजदूर वर्ग के हाथों में आ गई थी। दुनिया के सभी देशों में वर्ग सचेत मजदूर प्रति वर्ष 7 नवम्बर (नये कैलेंडर के हिसाब से) को इस महान क्रांति की वर्षगांठ मनाते हैं। इस दिन पर वे इस क्रांति द्वारा जन्मे सोवियत समाजवाद की महान उपलब्धियों को याद करते हैं और पूंजीवाद के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष को जोर-शोर से आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
इस अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक सभा एवं गुड़गांव में एक परिचर्चा का आयोजन कर मजदूरों को अक्टूबर क्रांति और सोवियत समाजवाद की उपलब्धियों से परिचित कराया गया। वक्ताओं ने कहा कि इस क्रांति के बाद मजदूरों की सोवियतों ने फैक्टरियों को अपने नियंत्रण में ले लिया था; जबकि क्रांतिकारी सरकार ने तत्काल जमींदारों से जमीनें छीनकर उन्हें गरीब किसानों में बांटने का आदेश जारी कर दिया था।
फरीदाबाद में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा ‘‘लाइफ इज ब्यूटीफुल’’ फिल्म का प्रदर्शन कर उस पर चर्चा की गई। गौरतलब है कि दूसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी यह एक बेहद संवेदनशील फिल्म है जिसमें नाजीवादी हिटलर द्वारा उस समय किये गये यहूदियों के अमानवीय उत्पीड़न और नरसंहार; साथ ही, एक यहूदी पिता की जिंदादिली और अंततः मानवद्रोही हिटलर की हार को दर्शाया गया है।
हरिद्वार में संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा एवं इससे जुड़े संगठनों व यूनियनों- इंकलाबी मजदूर केंद्र, फ़ूड्स श्रमिक यूनियन, सीमेंस वर्कर्स यूनियन और भेल मजदूर ट्रेड यूनियन द्वारा औद्योगिक क्षेत्र- सिडकुल एवं मजदूर बस्तियों में नुक्कड़ सभायें की गयीं।
इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि अक्टूबर क्रांति के बाद क्रांतिकारी सरकार ने सभी बालिग पुरुषों की तरह सभी बालिग महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार प्रदान कर दिया था। इतना ही नहीं वहां सभी महिलाओं को बड़े पैमाने के उत्पादक श्रम से जोड़ा गया; और वे बिना किसी चिंता के अपना रोजगार कर सकें इसके लिये उनके छोटे बच्चों के पालन-पोषण हेतु शिशुशालाओं की स्थापना की गई; साथ ही, सामूहिक भोजनालयों और कपड़ा धोने के सामूहिक संस्थान स्थापित कर महिलाओं को घरेलू श्रम की बेड़ियों से आजाद कर दिया गया।
काशीपुर में इस मौके पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के प्रतिनिधियों ने भी भागीदारी की। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि महान अक्टूबर क्रांति और सोवियत समाजवाद ने गुलाम देशों में चल रहे आजादी के आंदोलनों को अपना भौतिक और नैतिक समर्थन दिया; परिणामस्वरूप इन साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों को अभूतपूर्व आवेग मिला।
रामनगर में इस मौके पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, महिला एकता मंच और समाजवादी लोक मंच के प्रतिनिधियों ने भी भागीदारी की।
विचार गोष्ठी में सबसे पहले मर्चूला (अल्मोड़ा) में हुई बस दुर्घटना में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये दो मिनट का मौन रखा गया; तत्पश्चात वक्ताओं ने कहा कि समाजवादी खेमे की समाप्ति के बाद से विश्व पूंजीवाद दुनिया की मजदूर-मेहनतकश जनता पर एक बार फिर हमलावर है। आज पूरी दुनिया में दक्षिणपंथी, फासीवादी-नाजीवादी ताकतें बढ़त पर हैं। खुद हमारे देश में पिछले 10 वर्षों से हिंदू फासीवादी केंद्र की सत्ता पर विराजमान हैं।
रुद्रपुर में इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा संघर्षरत डाल्फिन कंपनी के धरना स्थल पर सभा की गई। सभा में वक्ताओं ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हितों के मद्देनजर घोर मजदूर विरोधी चार लेबर कोड्स पारित किये गये हैं। ये लेबर कोड्स आजाद भारत में मजदूरों पर किया गया सबसे बड़ा हमला हैं। इनके तहत मजदूरों के ट्रेड यूनियन अधिकारों पर भारी हमले किये गये हैं। ये लेबर कोड्स मजदूरों की गुलामी के नये दस्तावेज हैं जिनका मजदूरों को हर संभव प्रतिरोध करना होगा।
सभा में डाल्फिन मजदूरों के अलावा क्रालोस, इंटरार्क मजदूर संगठन पंतनगर, आटोलाइन इम्प्लाइज यूनियन, हैंकल मजदूर संघ इत्यादि के मजदूरों ने भागीदारी की।
लालकुआं में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा सेंचुरी पेपर मिल में मजदूरों के बीच अक्टूबर क्रांति के संदेश को पहुंचाया गया।
बरेली में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा परसाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में जुलूस निकाला गया और नुक्कड़ सभा की गयी।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मऊ एवं बलिया में इंकलाबी मजदूर केंद्र व ग्रामीण मजदूर यूनियन द्वारा विभिन्न मजदूर बस्तियों में बैठकें कर मजदूरों को उनके ऐतिहासिक कार्यभार समाजवाद से परिचित कराया गया। -विशेष संवाददाता
महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
राष्ट्रीय
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को