बड़े भईया, तम्बाकू खिलाऊं? सुरती खाने वाले हर उस शख्स से जिसे रामपाल पसंद करता था, इसी प्रेम भाव से पूछता। जिसे भी सुरती खानी होती वह रामपाल के पास आता और उसे सुरती मिल जाती। सरल सहज स्वभाव का रामपाल नाथ संप्रदाय से है। शिव की पूजा करता है। मांसाहार से दूर रहता लेकिन शनिवार को किसी न किसी मजदूर को अपनी दारू पार्टी में जरूर शामिल कर लेता है। आम तौर पर मजदूरों को बड़े भैय्या के संबोधन से ही बुलाता है।
थोड़ा सा जीवन को सही तरीके से जीने की चाहत मजदूरों को शहरों की तरफ खींच लाती है। शहरों में मौजूद फैक्टरियां मजदूरों के लिए सिर्फ जीवन निर्वाह का साधन ही नहीं होती वरन् ताउम्र एक मुगालता एक गलतफहमी भरे सपने लिए भी होती हैं। सोमपाल को फैक्टरी से जुड़े हुए लगभग दस साल हो चुके हैं। जिस पुर्जे को घिसने का काम उसे मिला उस पर पीस रेट तय है। जिसका आधा हिस्सा हर महीने ठेकेदार अपनी जेब में डाल लेता है। क्योंकि पुर्जे का उत्पादन भारी मात्रा में होता है तो दिहाड़ी अच्छी बन जाती है जो औसत 20,000 रुपए मासिक तक हो जाती है। और उतना ही पैसा हर महीने बिना परिश्रम के ठेकेदार की जेब में चला जाता है। किराए में रहते हुए भी बचत करके रामपाल ने दो प्लाट खरीद लिए हैं। हालांकि अभी उस पर घर बनाने लायक पैसा नहीं जोड़ पाया है।
रोजाना की तरह फैक्टरी में काम चालू है। दोपहर का समय हो रहा है। 10 किलो वजनी लोहे के पुर्जे को रामपाल अपने दोनों हाथों से पकड़कर घिस रहा है। तभी अचानक ग्राइडिंग व्हील टूटकर रामपाल के हाथ से टकराता है। अर्ध बेहोशी की हालत में बाकी मजदूर रामपाल को उठाकर कंपनी गेट पर इकट्ठे हैं। और आनन-फानन में मैनेजर अपनी गाड़ी से हास्पिटल पहुंचाने का प्रबंध करवाता है। फैक्टरी में ठेकेदार के मजदूर को ईलाज के लिए निजी अस्पताल में ले जाने की परंपरा है। इस सारे घटनाक्रम के बीच मैनेजमेंट बाकी मजदूरों की डांट लगता है और उन्हें तुरंत काम जारी रखने का आदेश देता है, जिसका तुरंत पालन होता है।
प्रतिरोध करना जीवन का लक्षण है। किसी मधुमक्खी को यह नहीं सिखाना पड़ता कि संकट आने पर अपनी पूरी शक्ति के साथ विरोधी से भिड़ जाना होता है, उसे डंक मारना है। बिना इस बात की परवाह किए कि उस अंतिम और निर्णायक जंग में उसे सदा के लिए मिट जाना है। परन्तु मानव समाज में संघर्ष का रूप इस नैसर्गिक प्राकृतिक संघर्ष से भिन्न रूप लिये हुआ होता है। फैक्टरी के भीतर मजदूर, मैनेजर और ठेकेदारों के आगे एक याचना का रूप लिए हुए हैं। मैनेजर, ठेकेदारों के लिए यह मात्र घटना है, जिसका घटना स्वाभाविक है। उनके शब्दों में काम होगा तो दुर्घटना तो होगी ही। पीस रेट के मजदूर मौखिक आश्वासन पाकर ही आश्वस्त हो सकते हैं लेकिन मैनेजर इस मौखिक आश्वासन के लिए भी तैयार नहीं है।
95 प्रतिशत की गारंटी ले सकता हूं। लेकिन 100 प्रतिशत गारंटी नहीं है कि व्हील नहीं फटेगा। तुम कहते हो तो दूसरी कंपनी से व्हील मंगा लेंगे, लेकिन काम चलेगा तो दुर्घटना भी कभी न कभी तो होगी ही। देख लो तुम लोगों को क्या करना है। घटना को बीते 24 घंटे हो चुके हैं। आवेश, आवेग सब शिथिल पड़ चुका है। मैनेजर ने एक आम मजदूर को अपनी खुद की गाड़ी से हास्पिटल पहुंचाने में मदद की, इस बात का कसीदा ठेकेदार द्वारा इतना ज्यादा पढ़ा गया कि मैनेजर ने देवता का स्थान ले लिया है। और इन सब के बीच खुद के परिवार के भरण-पोषण का प्रश्न प्रत्येक विद्रोह, प्रत्येक जिरह, प्रत्येक याचना की भावना का हर बार की तरह दमन कर देता है। प्रत्येक दुर्घटना के पैदा होने के बाद जो विद्रोह की प्रबल भावना जन्म लेती है, अगले ही पल खुद को और अपने परिवार को जिंदा रखने का प्रश्न किसी भी भावना को परास्त कर देता है।
जीवन की त्रासदी एक ही जगह पर रुके तो शायद तकलीफ कम हो सकती है, लेकिन अक्सर ही आम मेहनतकशों के जीवन में त्रासदियों का कभी अंत नहीं होता। रामपाल जैसे मजदूरों के जिंदा रहने की शर्त है सिर्फ और सिर्फ शारीरिक श्रम शक्ति। वे सिर्फ अपनी मेहनत बेचकर ही जीवित रह सकते हैं। रामपाल सिर्फ ग्राइडिंग करना जानता है लेकिन अब इस लायक नहीं बचा कि ग्राइडिंग कर सके। हाथ में डाली गई लोहे की राड मजबूत तो है मगर ग्राइडिंग के दौरान होने वाले कंपन को बर्दाश्त करने की सामर्थ्य राड के साथ जुड़ी हुई हड्डी में नहीं रह जाती। हालांकि ठेके के मजदूर को कंपनी की तरफ से किया जा सकता है। कुछ हल्का काम देकर आगे का जीवन सामान्य चलाया जा सकता है। दुर्घटना का उचित मुआवजा दिया जा सकता है। परन्तु रामपाल की अब ठेकेदार को कोई जरूरत नहीं रह जाती, और मैनेजमेंट का पहले से तैयार जवाब कि अपने ठेकेदार से बात करो। पुनः काम पर रख लेने के ठेकेदार के झूठे आश्वासन के सहारे रामपाल ने हास्पिटल से निकल कर तीन महीने तो काट लिए मगर अब फैक्टरी के दरवाजे उसके लिए बंद थे। और रामपाल को दूसरी फैक्टरी का सफर तय करना है।
फैक्टरी की कैंटीन में कुछ मजदूर चाय पी रहे हैं। अरे रामू! रामपाल के बारे में सुना? क्यों क्या हुआ? आश्चर्य में रामू ने मनोज से प्रश्न किया। मनोज जो कि रामपाल के पड़ोस में ही किराए पर रहता है, बताना चालू करता है। सीरियस हालत में अस्पताल में भर्ती है। बता रहे हैं कि काम करते-करते अचानक से चोट लगी तो वह चोट लगने की बात बोलकर गेट पास लेकर घर आ गया था। घर आकर जैसे ही उसने नहाया वैसे ही उसे खून की उल्टी शुरू हो गई। तुरंत अस्पताल लेकर गए तो पता चला कि फेफड़ा फट गया है। अभी सीरियस है।
इंसान किसी घटना से विचलित हो सकता है, अवसाद में पहुंच सकता है, क्रोधित हो सकता है, गहरे प्रेम में पड़ सकता है या फिर विद्रोही; कब कौन सी भावना मानव पर हावी हो जाए इसके बारे में कहना कठिन है। अक्सर कोई घटना आपको करुण बना देती है आप अतीत में चले जाते हैं जहां आपको मानवीय अक्स सजीव दिखता है। जीवित मानव दिखाई देता है, हंसता-बोलता, परिश्रम करता हुआ जीवित मनुष्य। उस परिश्रम की लूट पर टिका एक गलीच ठेकेदार दिखाई देता है जो प्रतिमाह 25,000 रुपए किसी मजदूर की दिहाड़ी का जब्त कर लेता है। एक मृत आत्मा को ढ़ोता हुआ उच्च शिक्षा प्राप्त तथाकथित सभ्य समाज में पला-बढ़ा एक सभ्य मैनेजर दिखाई देता है जिसकी मासिक आमदनी 2 लाख रुपए है लेकिन आम मनुष्यों के लिए उसके दिल में कोई संवेदन नहीं होता। और सबसे ऊपर सरलता, सौम्यता का लबादा ओढ़े, सैंकड़ों-हजारों रामपाल के ऊपर खड़ी फैक्टरी और उसका मालिक नजर आते हैं। घटनाएं बहुत तेजी से उभरकर पटल पर दिखाई देने लगती हैं।
अक्सर जब आपका मस्तिष्क अतीत की घटनाओं को जीवंत रूप में देख रहा होता है। जब आपका मन गहरी व्यथा लिए होता है। जब आप हर परिचित से इस विषय पर चर्चा करने की अधीरता लिए होते हैं। परन्तु जब आप बाकी लोगों की उदासीनता को देखकर दुखी होते हैं। आपके भीतर किसी कुशल समाचार को सुनने की अभिलाषा होती है और आप हर किसी जानने वाले से पूछते हैं, रामपाल की तबियत कैसी है? और सामने वाला बिना कुछ बोले एक संकेत का सहारा लेता है और आप अपने भीतर गहरे दुःख का अनुभव करते हैं। एक ऐसा संकेत जिसके बाद कोई भी प्रश्न बाकी नहीं रह जाता। -एक पाठक
कहानी रामपाल की
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को