घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियां उड़ाएगा

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पिछले साल आम चुनाव थे तो भर-भर के भारत रत्न बांटे गये थे। एक महाशय जो कि जिन्दा हैं उन्हें भी भारत रत्न दिया गया। क्यों दिया गया ये तो न तो देने वाले को और न मिलने वाले को समझ में आया होगा। बहुत सोचा होगा तो उसके सामने उन मरे हुए लोगों की रूहें आ गयी होंगी जो उसके फैलाये गये नफरती भाषण और दंगे फैलाने के लिए की गयी रथयात्राओं में मारे गये होंगे। खैर! ये महाशय कभी खुद भारत रत्न बांटना चाहते थे पर इनकी ख्वाहिश अधूरी रह गयी। अंत में इनके पास और कोई चारा नहीं था तो इन्होंने भारत रत्न को ग्रहण कर उसे सम्मान प्रदान कर दिया। इस बार किसी को भारत रत्न के काबिल नहीं समझा गया वैसे मांग तो बाल ठाकरे के लिए भी हो रही थी। 
    
इस बार जिन सात लोगों को पदम विभूषण मिला उनमें एक जापानी भी है। वैसे ये साहब पिछले साल जापान में मर गये पर अब ये याद आ रहे हैं। हिन्दुस्तान में इनके कारनामों से हजारों मजदूर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इनका नाम है ओसामु सुजुकी। मारुति सुजुकी के मजदूर जब गुड़गांव में अपनी नौकरी की मांग को लेकर लड़ रहे हैं तब एक मरे हुए जापानी को पदम विभूषण दिया जा रहा है। शायद यह सोचा गया होगा कि मरा हुआ हाथी सवा लाख का होता है। 
    
पदम भूषण 19 लोगों को मिला। जिनमें से एक साध्वी ऋतम्भरा है जिन्होंने न जाने कौन से सामाजिक कार्य किये हैं। लोग तो जानते हैं कि ये जब भाषण देती थी तब वे आग लगा देती थी। एक साहब ए.सूर्य प्रकाश हैं। इन्हें साहित्य और शिक्षा में उसी तरह काम करने के लिए सम्मानित किया गया जिस तरह के काम साध्वी जी करती थीं। सुशील कुमार मोदी को भी पदम भूषण मिला है तो राम बहादुर राय को भी। न जाने क्यों?
    
ऐसे लोगों को जब पुरुस्कार मिले हों तो कईयों को मोदी जी की यह बात समझ में नहीं आ रही है कि ‘‘प्रत्येक पुरूस्कार विजेता कड़ी, मेहनत, जुनून और नवाचार का पर्याय है’’। खैर! कमल है तो कमाल है। 
    
यह बात तो ठीक है कि घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियां उड़ायेगी पर दुम ही नहीं होगी तो घोड़ा कैसे मक्खियां उड़ायेगा। सौभाग्य की बात है कि हमारे घोड़े के पास ऐसी दुम है जो बढ़ती जा रही है और ऐसी मक्खियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है जिन्हें घोड़ा अपनी दुम से उड़ा रहा है। नहीं तो ज्यादातर मक्खियां उड़ना ही भूल गयी थीं बस वे तो घोड़े के पिछवाड़े में चिपकी रहती थीं। घोड़े और मक्खी का हर वक्त का साथ होता है। जहां भी घोड़ा होगा वहां मक्खियां हांगी। घोड़े को दुम शायद मिली ही इसलिए है कि वह मक्खियां उड़ा सके या उन्हें उड़ना सिखा सके। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। 

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ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है। 

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आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं? 

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सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।