3 दिसम्बर से दक्षिण कोरिया में शुरू हुई राजनैतिक उठा पटक थमने का नाम नहीं ले रही है। एक के बाद एक नाटकीय घटनाक्रम घटित हो रहे हैं। इस बीच मजदूर-मेहनतकश जनता लगातार सड़कों पर उतर कर शासक वर्गीय दलों को मजबूर कर रही है कि तानाशाही की ओर बढ़ने के किसी भी इरादे को वे त्याग दें।
3 दिसम्बर की रात में तत्कालीन राष्ट्रपति यू सूक ये ओल ने अचानक मार्शल लॉ की घोषणा कर सबको हतप्रभ कर दिया था। मार्शल ला लगाये जाने के पीछे उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ उत्तर कोरिया के खतरे को कारण बताया था। इस मार्शल लॉ को रोकने के लिए अचानक लाखों की तादाद में जनता संसद भवन पर इकट्ठा हो गयी। इसके साथ ही सभी विपक्षी 192 सांसद भी संसद भवन जा पहुंचे और उन्होंने मार्शल लॉ के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति को मजबूर कर दिया कि वे मार्शल ला वापस लें व जनता से माफी मांगें। हालांकि राष्ट्रपति ने सेना को निर्देशित किया था कि सांसद संसद में मतदान न कर सकें व उन्हें बंधक बना ऐसा करने से रोका जाये पर भारी जनसैलाब की मौजूदगी में सेना मतदान नहीं रोक पायी।
इसके तत्काल बाद विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति पर महाभियोग की तैयारी शुरू कर दी। द. कोरिया में महाभियोग प्रस्ताव संसद से पारित होने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। यहां से पास होकर यह न्यायपालिका में जाता है जहां 6 जजों के सहमत होने पर यह पारित हो जाता है तब राष्ट्रपति को पद से हटा नये राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती है। वर्तमान में सत्ताधारी रुढ़िवादी पार्टी पीपुल्स पावर पार्टी के 300 सदस्यीय संसद में 108 सदस्य हैं। विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी समेत विपक्ष पर 192 सदस्य है। ऐसे में संसद से महाभियोग पारित होने के लिए जरूरी था कि कुछ सत्ता पक्ष के सदस्य महाभियोग के पक्ष में आयें।
पहला महाभियोग प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत न मिलने के चलते गिर गया। इस पर डेमोक्रेटिक पार्टी ने तब तक महाभियोग लाने की बात की जब तक वह पास न हो जाये। ट्रेड यूनियनों ने भी लगातार हड़ताल की घोषणा की। ऐसी स्थिति में बीच का रास्ता निकालने में प्रधानमंत्री हान डक-सू ने कोशिशें शुरू कीं। पहले उन्होंने राष्ट्रपति को दुबारा मार्शल ला न लगाने के लिए मनाया। फिर उनसे शांतिपूर्वक पद से हटने की मांग की। जनाक्रोश शांत करने के लिए उन्होंने घोषणा की कि राष्ट्रपति संसद के प्रमुख मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। पर चूंकि राष्ट्रपति पद से हटने को राजी नहीं हुए अतः प्रधानमंत्री ने यह घोषणा कर दी कि महाभियोग के अलावा राष्ट्रपति को हटाने का और कोई तरीका नहीं है। 14 दिसम्बर के दूसरे महाभियोग के वक्त करीब 12 सत्ताधारी दल के सदस्य महाभियोग के पक्ष में आ गये और 204 वोटों से महाभियोग संसद से पारित हो गया।
संसद से महाभियोग पारित होने पर कानून के अनुसार न्यायपालिका के निर्णय तक राष्ट्रपति निलंबित कर दिये गये और उनकी जगह हान कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गये। इस बीच हान की पार्टी में हान के खिलाफ असंतोष बढ़ गया। इस बीच चूंकि न्यायपालिका के शीर्ष के 9 पदों में से 3 पद रिक्त थे इसलिए संसद ने महाभियोग पारित कराने में सहूलियत के लिए 3 पद भरने व कुछ अन्य कामकाजी कानून पारित कर कार्यवाहक राष्ट्रपति को मंजूरी को भेजे। पर कार्यवाहक राष्ट्रपति ने इन नये कानूनों पर सहमति देने से मना कर दिया।
कार्यवाहक राष्ट्रपति की इस हरकत से जनता और विपक्ष के लिए यह स्पष्ट हो गया कि ये ये ओल पर महाभियोग को अंजाम तक नहीं पहुंचने देना चाहते। ऐसे में विपक्षी दलों ने कार्यवाहक राष्ट्रपति पर भी महाभियोग प्रस्ताव संसद में पेश कर उन्हें पद से हटा दिया है। अब वित्त मंत्री नये कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका निभायेंगे। वित्त मंत्री चोई सांग मोक ने देश को राजनैतिक उथल-पुथल से बाहर निकालने का वादा किया है। हालांकि विपक्ष को उन पर भी भरोसा नहीं है। इस बीच द.कोरिया की मजदूर यूनियनों ने जहां राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग संसद से पारित होने को जीत के तौर पर लिया है वहीं उन्होंने राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग अंजाम तक पहुंचाने की पहलकदमी छोड़ी नहीं है। वे अभी भी लगातार सड़कों पर उतर रहे हैं। हालांकि प्रदर्शनों में तादाद अब घटने लगी है। और लगातार हड़ताल का आह्वान भी वापस ले लिया गया है।
द.कोरिया के इस घटनाक्रम में उसके सहयोगी रहे अमेरिकी शासकों की प्रतिक्रिया दिखाती है कि वे राष्ट्रपति को बचाने के पक्षधर हैं। यद्यपि मार्शल ला का उन्होंने विरोध किया पर राष्ट्रपति की जापान-अमेरिका-द.कोरिया सैन्य सहयोग में भूमिका देख अमेरिकी साम्राज्यवादी उन्हें बचाना चाहते रहे हैं। इस सहयोग को वे चीन के खिलाफ अपनी सैन्य तैयारी का अहम हिस्सा मानते रहे हैं।
कुल मिलाकर द.कोरिया में राजनैतिक उठापटक थमती नजर नहीं आ रही है। जनता अपने ऊपर तानाशाही लादने के षड्यंत्र को तो रोक चुकी है पर इससे आगे की पहलकदमी को वह तैयार नहीं है। देर-सबेर पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ अपनी पहलकदमी मोड़कर ही वह अपना भविष्य सुरक्षित कर सकती है।