जिन्दा जलाने की राजनैतिक संस्कृति

फरवरी माह में दिल दहलाने वाली दो घटनायें सामने आयी हैं। एक घटना उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात की थी जिसमें अतिक्रमण को हटाने के नाम पर मां-बेटी को जिंदा जला दिया गया। दूसरी घटना हरियाणा की थी जिसमें दो मुस्लिम युवकों को जिंदा जला दिया गया।

इन दोनों घटनाओं को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है। भले ही पहली घटना में मारे जाने वाली स्त्रियां गरीब ब्राह्मण थीं अथवा दूसरी घटना में राजस्थान के मारे गये दोनों युवक मुस्लिम थे। दोनों घटनाओं में मारे जाने वाले शोषित-उत्पीड़ित थे और उनकी हत्या में शामिल लोग सत्तारूढ़ हिन्दू फासीवादी पार्टी भाजपा से संबंधित थे या उनको शासन-प्रशासन का खुला-छिपा समर्थन था।

इन दोनों घटनाओं को भारत के हालिया सामाजिक-राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा जाए तो ये घटना विशेष न होकर एक ही सामाजिक परिघटना का हिस्सा हैं। यह परिघटना है हिन्दू फासीवाद का दिनों दिन होता उभार और उसके दायरे का शासन-प्रशासन से लेकर आम जीवन में बढ़ता प्रसार।

अतिक्रमण हटाये जाने के नाम पर कई राज्यों में काबिज भाजपा सरकारें किसी भी हद तक गयी हैं। योगी आदित्यनाथ जैसे फासीवादी को तो नया नाम ‘बुलडोजर बाबा’ ही दे दिया गया है। योगी के बाद बुलडोजर एक के बाद दूसरे भाजपाई मुख्यमंत्री की पहचान बन गये हैं। ‘बुलडोजर संस्कृति’ वैसे हिन्दू फासीवादियों का अपना आविष्कार नहीं है। यह संस्कृति इन्होंने इजरायल से अपनायी है। इजरायली जियनवादी-फासीवादी शासक बुलडोजर का इस्तेमाल फिलीस्तीनियों के घर व बस्ती उजाड़ने के लिए दशकों से ही कर रहे हैं। वहां के एक प्रधानमंत्री अरेल शोरेन का नाम तो बुलडोजर ही पड़ गया था।

14 फरवरी 2023 को कानपुर देहात के रूरा के मंडौली गांव में ग्राम समाज की जमीन से अतिक्रमण हटाने के नाम पर मां-बेटी को झोंपड़ी में आग लगा कर जिंदा जला दिया गया। इस घटना के चश्मदीद कृष्ण कुमार दीक्षित जिनकी पत्नी व बेटी को जिंदा जला दिया गया था, ने स्वयं मीडिया के सामने आकर यह बताया था।

कानपुर देहात में कृष्ण कुमार दीक्षित यह बताने को मौजूद थे कि उनकी पत्नी व बेटी को कैसे जिंदा जलाया गया परन्तु जुनैद व नासिर के केस में कोई यह बतलाने वाला नहीं है कि वे कैसे जलाये गये। पहले उनकी हत्या की गयी फिर सबूत मिटाने के लिए उनकी लाश को जला दिया गया या फिर उन्हें कानपुर देहात की तरह सीधे आग के हवाले कर दिया गया।

इन हत्याकांडों में शामिल लोग उस धर्म के लोग थे जो अपने धर्म को दुनिया का सबसे ‘सहिष्णु धर्म’ घोषित करते हैं। सहिष्णुता का यह तमगा हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने अपने आपको स्वयं दिया हुआ है। आम हिन्दू इस ‘सहिष्णु’ वाली राजनैतिक शब्दावली का भले ही कभी प्रयोग न करता हो परन्तु भाजपा-राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ-विहिप इसका खूब प्रयोग करते हैं। और जब वे सहिष्णुता की बात करते हैं तो एक तरफ वे अपने आपको पीड़ित साबित करने के लिए ऐसा करते हैं तो दूसरी तरफ अपने लोगों को भड़काने व दूसरे धर्म के लोगों पर हमला करने के लिए उकसावे के रूप में करते हैं।

इतिहास की रोशनी में और साथ ही वर्तमान काल में देखें तो सहिष्णुता की सारी बातें हवा-हवाई हैं। सदियों से भारत में सती प्रथा की परम्परा रही है जिसमें ‘सहिष्णु हिन्दू’ एक औरत को जिंदा उसके पति की चिता में धकेल देते थे। महान हिन्दू परिवारों में दहेज हत्या की घटनाएं आज तक नहीं रुकी हैं। सम्पत्ति पर कब्जा करने के लिए किसी हिन्दू विधवा स्त्री की हत्या करने की घटनाएं आये दिन घटती हैं। तलाकशुदा मुस्लिम स्त्रियों की दुर्दशा पर आंसू बहाने व कानून बनाने वाले हिन्दू हृदय सम्राट मोदी की जुबान ऐसी घटनाओं पर कभी नहीं खुलती। न भाजपा-संघ हिन्दू समाज की इस जिंदा जलाने की संस्कृति की कभी निंदा करते हैं। असल में हिन्दू फासीवाद के प्रचार-प्रसार के लिए जिन्दा जलाने वाली संस्कृति को बढ़ावा ही दिया जाता है।

जुनैद-नासिर को जिंदा जलाने वाले न तो कानून की परवाह करते हैं और न ही अपने अपराध के लिए सजा से डरते हैं। असल में वे गौरक्षा के नाम पर हरियाणा पुलिस के साथ ही छापा मारकर सजा सुनाते फिरते हैं। हरियाणा सहित भाजपा शासित राज्यों में संघ-विहिप-बजरंग दल के लोग पुलिस-प्रशासन के अभिन्न अंग बन गये हैं। सरकारी अधिकारी या तो स्वयं इन्हीं के विचारों से ओत-प्रोत हैं या फिर वे शासन के दबाव में उन्हें वह सब कुछ करने देते हैं जो वे चाहते हैं। जुनैद-नासिर के हत्यारे लम्बे समय से छापा मार रहे थे। मोनू मानेसर द्वारा तो अपने कुकृत्यों का रात-दिन महिमामण्डन किया जाता रहा है और वह अपने गैर कानूनी कामों को सरेआम शासन-प्रशासन-न्यायालय की नाक के नीचे अंजाम देता रहा है।

जिन्दा जलाने वाली संस्कृति अनायास ही जर्मनी के फासीवाद की यादों को ताजा कर देती है। जर्मनी में हिटलर ने नस्ली श्रेष्ठता के नाम पर यहूदियों को हजारों की संख्या में गैस चैम्बर में डालकर मार डाला था। भारत के हिन्दू फासीवादी हिटलर की तर्ज पर धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों व आम स्त्रियों को आतंकित करते हैं। गौ हत्या, लव जिहाद आदि के नाम पर कितने ही लोगों की हत्या को अंजाम दिया जा चुका है।

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

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आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

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