जन विश्वास विधेयक : पूंजी की लूट को और छूट

27 जुलाई को भारी हंगामे के बीच लोकसभा ने जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक 2023 पारित कर दिया। हंगामा मणिपुर के मुद्दे पर हो रहा था पर सरकार विधेयक पारित कराने के लिए हंगामे का इस्तेमाल कर रही थी। इस तरह बगैर चर्चा के विधेयक लोकसभा से पारित हो गया। 
    
यह विधेयक 42 केन्द्रीय कानूनों में कुल 183 प्रावधानों को अपराध मुक्त कर देगा। इस हेतु कुछ प्रावधानों में कारावास व जुर्माना दोनों खत्म करने का आश्वासन किया गया है तो कुछ में कारावास समाप्त कर जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। कुछ में कारावास-जुर्माने को आर्थिक दण्ड में बदल दिया गया है। 
    
सरकार का तर्क है कि इस विधेयक के कानून बनने पर प्रावधान अधिक तर्क संगत हो जायेंगे। साथ ही कहा जा रहा है कि इस कानून के बाद नागरिक, व्यवसायी व सरकारी कर्मचारी मामूली, तकनीकी, प्रक्रिया संदर्भी कमियों के लिए कारावास के भय के बगैर काम करेंगे। साथ ही इस विधेयक को कारोबार की सरलता के एक उपाय के बतौर पेश किया जा रहा है। 
    
जिन 42 कानूनों के प्रावधानों को सजा के मामले में हल्का बनाया जा रहा है उनमें कृषि उपज (ग्रेडिग और मार्किंग) अधिनियम 1937, समुद्री उत्पाद, निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम 1972, कानूनी माप विज्ञान अधिनियम 2000, वायु (प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण) अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधि. 1986, खाद्य निगम अधि. 1964, खाद्य सुरक्षा और मानक अधि., औषधि व प्रसाधन सामग्री अधि. 1940, फार्मेसी अधि. 1948, प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधि. 1867, भारतीय डाकघर अधि. 1898, पेटेण्ट अधिनियम 1970, रेलवे अधिनियम 1989, सांख्यिकी संग्रहण अधि. 2008, मोटर वाहन अधि. 1988 आदि प्रमुख हैं। 
    
इन 42 कानूनों के तहत वर्णित विभिन्न प्रावधानों को अपराधमुक्त करने से क्या होगा। सरकार की इस विधेयक के जरिये योजना यही है कि अब कोई प्रावधान तोड़ने में जेल का भय कर्मचारियों, पूंजीपतियों को न रोके कि अब महज कुछ जुर्माना, कुछ अर्थदण्ड के जरिये गलत व आपराधिक कार्यवाही करने के बाद भी जेल जाने से पैसे वाले बच जायेंगे। 
    
यानी डाकघर का कोई कर्मचारी अब किसी व्यक्ति की डाक को खोल कर पढ़ ले या फिर उसे किसी तीसरे व्यक्ति को दे दे तो पहले इस हेतु 2 वर्ष की कैद व जुर्माने का प्रावधान था। अब नये विधेयक के तहत कोई कर्मचारी दफ्तर में लोगों की डाक पढ़ उसे आगे सप्लाई कर भी जुर्माने या सजा दोनों दण्डों से मुक्त रहेगा। यानी लोगों की निजता के उल्लंघन पर सम्बन्धित कर्मचारी पर कोई कार्यवाही नहीं होगी। 
    
इसी तरह खाद्य सुरक्षा के मानकों में लापरवाही, पेटेण्ट कानून लागू करने में लापरवाही, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने, कृषि उपज की ग्रेडिंग-मार्किंग में लापरवाही, कापीराइट उल्लंघन आदि मामलों में लापरवाही पर अब जेल नहीं भेजा जायेगा, बस जुर्माना भर व्यक्ति मुक्त हो जायेगा। 
    
मजदूरों व कारखाने से जुड़े प्रावधानों संदर्भी कानूनों के उल्लंघन पर मालिक को अब जेल जाने का भय नहीं सतायेगा। अब वह मनमाने तरीके से कानून तोड़ेगा व जुर्माने के कुछ टुकड़े फेंक मनमानी लूट को अंजाम देगा। 
    
स्पष्ट है इस विधेयक का लक्ष्य सरकारी कर्मचारियों, अफसरों के साथ लुटेरे पूंजीपतियों के हितों को साधना है। इसका परिणाम बढ़ते भ्रष्टाचार, सांठ-गांठ के रूप में सामने आयेगा। पूंजी की भक्ति में लीन मोदी सरकार पूंजीपतियों को इस कानून के तहत खुला निमंत्रण दे रही है कि आओ कानून तोड़ो, कुछ जुर्माना अदा करो व मुनाफा बढ़ाओ। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

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आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।