किसान आंदोलन फिर खड़ा करने की नई कोशिश

30 अप्रैल को संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली में अपनी बैठक की। इस बैठक में आगामी 6 माह के लिए संघर्ष की रूपरेखा तैयार कर किसान आंदोलन फिर से खड़ा करने का संकल्प लिया गया। बैठक में ज्यादातर प्रमुख संगठनों ने हिस्सा लिया। जोगेन्द्र सिंह उग्राहां (अध्यक्ष बी के यू- एकता उग्राहां), अशोक ढवले (अध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान सभा) व तेजिंदर सिंह विर्क (अध्यक्ष, तराई किसान संगठन) ने बैठक की अध्यक्षता की।         

इस बैठक में 3 प्रस्ताव पारित किये गये। एक प्रस्ताव महिला पहलवानों के संघर्ष के समर्थन में, दूसरा प्रस्ताव सतपाल मलिक के उत्पीड़न के खिलाफ व तीसरा प्रस्ताव किसान आंदोलन का समर्थन करने के चलते डाक-तार विभाग की सरकारी यूनियनों की मान्यता खत्म करने के विरोध में था। 
    

बैठक में अगले 6 माह की संघर्ष की रूपरेखा मोटे तौर पर इस तरह तय की गयी। 

1. 26 से 31 मई - किसान आंदोलन की सभी महत्वपूर्ण मांगों (लाभकारी एम एस पी कानून, ऋण मुक्ति, किसान-खेत मजदूरों की पेंशन, सर्वसमावेशी फसल बीमा योजना, हत्यारे मंत्री अजय मिश्र टेनी की गिरफ्तारी, मुआवजा, फर्जी मुकदमों की वापसी आदि) को लेकर सभी राज्यों में विरोध प्रदर्शन किया जायेगा। साथ ही इन प्रदर्शनों में किसानों के स्थानीय मुद्दों को भी जगह दी जायेगी। 

2. मई-जून-जुलाई- इन तीन माह में किसानों व खेत मजदूरों की एकजुटता बढ़ाने के लिए हर राज्य में एस के एम के जिला व राज्य स्तरीय सम्मेलन किये जायेंगे। 

3. 1-15 अगस्त- किसानों-मजदूरों के हित कारपोरेट घरानों को बेचने के खिलाफ जगह-जगह जन प्रदर्शन। 

4. सितम्बर से मध्य नवम्बर- पूरे देश में एस के एम के नेतृत्व में अखिल भारतीय यात्राओं का आयोजन। चुनावी राज्यों म.प्र., तेलंगाना, छत्तीसगढ़, राजस्थान में विशेष जोर। 

5. 3 अक्टूबर- लखीमपुर खीरी घटना की याद में अखिल भारतीय शहीद दिवस मनाया जायेगा। 

6. 26-28 नवम्बर- किसान आंदोलन के शुरूआती दिन की याद में सभी राज्यों की राजधानियों में 3 दिन का दिन-रात का धरना। 
    

उक्त कार्यक्रमों के जरिये संयुक्त किसान मोर्चा किसान संघर्ष को फिर से खड़ा करने की तैयारी कर रहा है।     -एक पाठक, दिल्ली

आलेख

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ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

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