लोकसभा चुनाव और मजदूर मेहनतकश अवाम

पिछले 4 जून 2024 को लोकसभा चुनाव की मतगणना समाप्त हुई नतीजतन छक्। गठबंधन को जिसमें भाजपा सहित छोटे-मोटे दल तथा क्षेत्रीय पार्टियां मिलकर 38 दल हैं वह 293 सीट प्राप्त करने में सफल हुई है वहीं 26 पार्टियों के गठबंधन वाले प्छक्प् गठबंधन को जिसमें कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी, आरजेडी शामिल हैं, को 237 सीट प्राप्त हुई हैं यानी कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ है, कुल मिलाकर एक बार फिर से मोदी सरकार सत्ता में वापसी कर रही है। अब सवाल यह है कि क्या इन चुनावों से आम मेहनतकश जनता के हालात सुधरेंगे या फिर ठीक वैसे ही रहेंगे जैसे 75 सालों से अभी तक रहे हैं। जहां एक तरफ 400 पार का नारा देते हुए भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव लड़ा और उसके नेताओं ने यह कहा कि हम संविधान बदल देंगे। सोशल मीडिया पर कुछ नेताओं का यह भी कहना था कि देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए मोदी को 420 सीट चाहिए। लेकिन वहीं प्छक्प् गठबंधन के नेता राहुल गांधी ने चुनाव में यह कहते हुए भागीदारी की, कि यह लड़ाई संविधान को और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है।
    
हालांकि लोगों का भरोसा किसी भी पार्टी पर नहीं है लेकिन सभी अपने मनपसंद नेताओं को चुन रहे हैं। अब सवाल यह है कि देश में संविधान को लागू हुए 74 साल हो चुके हैं और जब से संविधान लागू हुआ है तभी से लोकतंत्र भी भारत देश में लागू हुआ है और संविधान, कानून और लोकतंत्र के होते हुए भी हम अपनी आंखों के सामने यह देखते हैं कि किस तरह से लोकतंत्र की, कानून की तथा संविधान की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और सत्ता में बैठे हुए चाहे वह कांग्रेस पार्टी के लोग हों या फिर भारतीय जनता पार्टी या फिर अन्य किसी दल के नेता हों चुपचाप मौन होकर यह तमाशा देखते रहते हैं। आम मजदूर मेहनतकश जनता जो कि देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए सबसे ज्यादा योगदान देती है आज उसी का जीवन सबसे ज्यादा गर्त में जा रहा है। पूंजीपतियों के द्वारा खुली और नंगी तानाशाही फैक्टरी और कल कारखानों में की जा रही है। मजदूरों के जो श्रम अधिकार हैं चाहे वह न्यूनतम वेतन का अधिकार हो, चाहे वह वेतन वृद्धि का अधिकार हो, चाहे वह बोनस, पीएफ, ईएसआई, साप्ताहिक अवकाश (रविवार), म्स्, ब्स्, स्थाई काम पर स्थाई मजदूर का कानून हो, फैक्टरी में मजदूरों को लाने और ले जाने की बस सुविधा की बात हो, उनके रहने तथा फैक्टरी के अंदर खाने (कैंटीन) की व्यवस्था की बात हो, वेतन के साथ वेतन पर्ची तथा अन्य बहुत सारे श्रम अधिकार जो अंग्रेजों के समय में मजदूरों ने लड़कर हासिल किए थे, को लागू करने की बात हो इन सवालों पर सारी पार्टियों की सरकारें चुप्पी साध जाती हैं।
    
अगर मजदूर अपने हक अधिकारों के लिए लड़ते हैं, संघर्ष करते हैं तो यह पूंजीपति फैक्टरी से नट बोल्ट की तरह निकाल कर मजदूरों को बाहर कर देते हैं और जब मजदूर अपनी चुनी हुई सरकारों में अपील लेकर जाते हैं तो सरकारों द्वारा उन्हें बरगलाया जाता है।
    
और जब मजदूर सड़कों के संघर्ष पर उतरते हैं, अपने हक अधिकार को पाने के लिए, तब वही सरकार (जिसको हम चुनते हैं) की पुलिस, प्रशासन से लेकर आर्मी फोर्स तक बुला ली जाती है मजदूरों का दमन करने के लिए, उन पर लाठी-डंडे बरसाने के लिए। एक दबंग आदमी एक मजदूर को गरीब को पीटता है, तब वह गरीब आदमी दर-दर की ठोकरें खाता है न्याय पाने के लिए, लेकिन बदले में पुलिस प्रशासन भी उस पर ही लाठी डंडे बरसा कर उसे वापस भगा देता है। यह है इस देश और समाज की सच्चाई और यह तो सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण है। अब चूंकि भारत में हिंदू आबादी बहुसंख्यक है तब पिटने वाला और पीटने वाला ज्यादातर दोनों ही हिंदू होते हैं सरकार में बैठे हुए भी हिंदू ही होते हैं। प्रशासन में बैठे हुए लोग भी हिंदू ही होते हैं तब यहां पर भाजपा के नेताओं द्वारा यह कहा जाना कि हम देश को हिंदू राष्ट्र बनाएंगे वाली बात झूठी साबित होती है।
    
अब रही बात राहुल गांधी की जो यह कहते हैं कि हम तो लोकतंत्र को बचाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं तब सवाल यह पैदा होता है कि आज भी देश की मेहनतकश अवाम डर के साए में जी रही है।
    
आज खाने को है अगर कल नहीं करेंगे तो क्या खायेंगे, मजदूर-मेहनतकश इस डर के साए में हर दिन जीता है कि कहीं अपने हक अधिकारों के लिए लड़े तो निकाल कर बाहर न कर दिए जाएं। अब सबसे बड़ा सवाल यहीं पर पैदा होता है, कि जहां डर है वहां लोकतंत्र है ही नहीं अब जब लोकतंत्र है ही नहीं तब किस लोकतंत्र को बचाने की बात राहुल गांधी करते हैं या फिर किस तरह के हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं यह बीजेपी वाले जबकि शोषण के शिकार और शासक दोनों ही हिंदू हैं।
    
और सबसे खास बात यह है कि देश की जो सबसे बड़ी पार्टियां हैं भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी; इन दोनों के नेता भी ज्यादातर हिंदू ही हैं अर्थात भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा आम जनता को लगातार गुमराह किया जा रहा है कभी हिंदू राष्ट्र के नाम पर तो कभी हिंदुत्व के गर्व के नाम पर तो कभी लोकतंत्र को बचाने के नाम पर। यह दोनों ही लुटेरे पूंजीपतियों की सेवा करते हैं। जो पूंजीपति आम मेहनतकश जनता की मेहनत को लूटकर इन पार्टियों को चलाने के लिए झोला भर-भर कर पैसे भेज देते हैं ताकि पूंजीपतियों की आरामगाह हमेशा बनी रहे और इन पूंजीपतियों की चाटुकार पार्टियां उनकी सेवा में रहें। आम मेहनतकश जनता को इस तरह से उलझा दिया गया है कि हम यह तक नहीं सोच पाते हैं कि यह जो करोड़ों रुपया चुनाव प्रचार में पानी की तरह बहा दिया जाता है वह आता कहां से है जबकि इन्हें चंदा मजदूर-मेहनतकश नहीं करता और उनके नेता खुद आजीविका चलाने के लिए कोई मेहनत का काम नहीं करते। असल में यह चंदा वह डकैत देते हैं जो मजदूरों की मेहनत पर डाका डालते हैं। 
    
अब कुछ लोगों का सवाल यह पैदा हो सकता है कि पूंजीपतियों के पास पैसा है इसलिए वह देते हैं अब सवाल यहां पर यह पैदा होता है कि उनके पास यह पैसा आया कहां से क्योंकि धन सिर्फ और सिर्फ दो जगह पैदा होता है पहला खेतों में, जिसे किसान अनाज के रूप उगाते हैं और दूसरा फैक्टरी में, जिसे मजदूर अपनी मेहनत से सुई से लेकर हवाई जहाज तक के रूप में पैदा करते हैं और यही दोनों वर्ग मजदूर और किसान लगातार बद से बदतर हालात की ओर चलते चले जा रहे हैं और कहीं मेहनत नहीं करने वाले नेता और पूंजीपति जो कि हम पर शासन कर रहे हैं, लगातार मालामाल और मालामाल होते चले जा रहे हैं ऐसे में सवाल बनता है कि हम खुद से सवाल पूछे।
    
हमारे देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह जो कि मजदूर, किसान, छात्र, नौजवानों के नेता रहे हैं, उन्हें जानने और समझने की कोशिश इस देश के किसानों, मजदूरों, नौजवानों, छात्रों आदि को करनी चाहिए। आज आजादी के 76 साल बाद भी देश की सरकारें अवाम को इस लायक नहीं बना पाई हैं कि वह खुद अपने लिए एक शौचालय का निर्माण कर सकें। खुद के बल पर जिंदा रह सकें। आज शौचालय को देश का विकास बताया जा रहा है 5 किलो राशन को देकर सरकारें अपना सीना फुला रही हैं
    
मैं उन सरकारों से कहना चाहूंगा अरे जाहिलों आज देश को आजाद हुए 76 साल हो गए और देश की आवाम को 5 किलो राशन लेने के लिए लाइन में लगना पड़ रहा है, एक शौचालय बनाने के लिए सरकार पर निर्भर रहना पड़ रहा है। यह देश के लिए गर्व की नहीं बल्कि शर्म की बात है और अंत में एक बात मैं अपने सभी मजदूर, किसान, छात्र, नौजवान साथियों से कहना चाहूंगा कि भगत सिंह ने कहा था-
    
जब तक देश का मजदूर, किसान, छात्र, नौजवान क्रांतिकारी विचारों के साथ राजनीति में हिस्सेदारी नहीं करेगा तब तक न तो देश का भला हो सकेगा और न ही देश की जनता का इसलिए आज सख्त जरूरत है शहीदे आजम भगत सिंह के उन विचारों को जानने की जो उन्होंने आज से लगभग 92 साल पहले कहे थे। आज भगत सिंह की बातें इसलिए भी बहुत ज्यादा प्रासंगिक हैं क्योंकि भगत सिंह ने जो बातें अपनी डायरी में लिखी हैं, अपने भाषणों में कहीं हैं, उससे रत्ती भर इधर-उधर देश के हालात नहीं मिलते। भगत सिंह ने कहा था-
    
देश से गोरे अंग्रेज तो चले जाएंगे लेकिन उनकी जगह काले अंग्रेज ले लेंगे और ठीक उसी तरह से जनता का शोषण करेंगे जैसे आज गोरे अंग्रेज कर रहे हैं इसलिए इन गोरे अंग्रेजों से आजादी पाने के साथ देश के काले अंग्रेजों से भी सावधान रहने की जरूरत है। इंकलाब जिन्दाबाद दुनिया के मजदूरों एक हो। 
        -दीपक आजाद, इमके
 

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को