महान अक्टूबर क्रांति की वर्षगांठ पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

1917 में रूस में हुई महान अक्टूबर क्रांति एक युग परिवर्तनकारी घटना थी जिसने इतिहास में पहली बार किसी देश की शोषित-उत्पीड़ित जनता-मजदूर वर्ग के हाथों में शासन सत्ता की कमान सौंप दी थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में सम्पन्न हुई इस समाजवादी क्रांति ने बीसवीं सदी की दुनिया की राजनीति को उलट-पुलट कर दुनिया के मजदूरों-मेहनतकशों के समक्ष जिस मजदूर राज समाजवाद का ठोस लक्ष्य प्रस्तुत किया था वह आज भी दुनिया के पूंजीपतियों को डराता है और मजदूर-मेहनतकश जनता में क्रांतिकारी भावना का संचार करता है। प्रतिवर्ष 7 नवम्बर को दुनिया के क्रांतिकारी संगठन और वर्ग सचेत मजदूर विभिन्न कार्यक्रम कर इस महान क्रांति की वर्षगांठ मनाते हैं और मजदूर राज समाजवाद कायम करने हेतु क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
    
इस बार 7 नवम्बर के दिन दिल्ली की शाहबाद डेरी में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा सभा और जुलूस का आयोजन किया गया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि पहले विश्व युद्ध के दौरान जब लुटेरे साम्राज्यवादी देश दुनिया को युद्ध की आग में जला रहे थे तब रूस के मजदूर वर्ग ने अपने लुटेरे शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर क्रांति को अंजाम दिया था।
        
औद्योगिक शहर फरीदाबाद में महान अक्टूबर क्रांति की वर्षगांठ के अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा सेक्टर 4 एवं मजदूर बस्ती पटेल नगर में नुक्कड़ सभायें करते हुये जुलूस निकाला गया और मजदूरों को सोवियत समाजवाद की उपलब्धियों के बारे में बताया गया।
    
हरियाणा के ही गुड़गांव में 7 नवंबर को बेलसोनिका यूनियन द्वारा लघु सचिवालय पर चलाए जा रहे प्रतिरोध धरने पर महान अक्टूबर क्रांति पर एक परिचर्चा आयोजित की गई। जिसमें वक्ताओं ने अक्टूबर क्रांति के महत्व पर विस्तार से बातचीत की। वक्ताओं ने कहा कि आज मजदूरों को उनके कानूनी व ट्रेड यूनियन अधिकारों के साथ-साथ इस पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे के लिए भी एकजुट करना होगा। जब तक मजदूरों की खरीद-फरोख्त की यह व्यवस्था कायम है तब तक मजदूरों-मेहनतकशों की मुक्ति संभव नहीं है।
    
उत्तराखंड के हरिद्वार में इस अवसर पर संयुक्त संघर्षशील ट्रेड यूनियन मोर्चा के विभिन्न घटक संगठनों और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र व क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वारा राजा बिस्कुट कंपनी गेट पर जारी मजदूरों के धरने पर एक सभा का आयोजन किया गया।
    
सभा में वक्ताओं ने कहा कि आज हम एक ऐसे समय में महान अक्टूबर क्रांति की वर्षगांठ मना रहे हैं जबकि पिछले डेढ़ साल से भी अधिक समय से रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध रुकने का नाम नहीं ले रहा है और अब इजराइल व फिलिस्तीन के बीच जंग छिड़ चुकी है। रोज कितने ही निर्दोष नागरिक, महिलायें-बच्चे बमों, राकेटों और मिसाइल हमलों में मारे जा रहे हैं। इन युद्धों के लिये अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे खून के प्यासे साम्राज्यवादी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। हमें इन अन्यायपूर्ण युद्धों का डटकर विरोध करना होगा; शांति की आवश्यक शर्त है कि हमें क्रांति को संगठित करना होगा।
    
इससे पूर्व हरिद्वार में ही 2 नवम्बर से 7 नवम्बर तक एक अभियान के तहत मजदूर बस्तियों- रावली महदूद, सलेमपुर, रोशनाबाद, सुभाष नगर एवं बी एच ई एल इत्यादि में मजदूरों के मध्य महान अक्टूबर क्रांति पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी एवं क्रांतिकारी-प्रगतिशील साहित्य का बुक स्टाल लगाया गया।
    
रामनगर में 6 नवम्बर को महान अक्टूबर क्रांति की 106 वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर एक पोस्टर प्रदर्शनी लगाई गई। इंकलाबी मजदूर केंद्र,  प्रगतिशील महिला एकता केंद्र एवं परिवर्तनकामी छात्र संगठन द्वारा शहीद पार्क पर लगाई गई इस प्रदर्शनी में 1917 में रूस में हुई समाजवादी क्रांति एवं उसकी उपलब्धियों को पोस्टरों के माध्यम से दर्शाया गया।
    
रुद्रपुर में 7 नवम्बर के दिन इंकलाबी मजदूर केन्द्र द्वारा सिडकुल ढाल पर नुक्कड़ सभा की गई जिसमें मजदूरों को अक्टूबर क्रान्ति की महान उपलब्धियों के बारे में बताया गया। साथ ही मजदूरों का आह्वान किया गया कि अक्टूबर क्रान्ति की तरह अपने देश में भी क्रान्ति कर मजदूर राज समाजवाद की स्थापना के लिए एकजुट हों।
    
पंतनगर में इस अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र एवं ठेका मजदूर कल्याण समिति द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया। सभा में वक्ताओं ने कहा कि सोवियत समाजवाद ने सभी वयस्क पुरुषों के साथ सभी वयस्क महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार प्रदान किया, जो कि उस समय अग्रणी पूंजीवादी देशों में भी महिलाओं को हासिल नहीं था।
    
उत्तर प्रदेश के बरेली में 7 नवम्बर को महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति की वर्षगांठ के अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा परसाखेड़ा औद्योगिक इलाके में जुलूस निकाला गया। 
    
जबकि उत्तर प्रदेश के ही बलिया में इंकलाबी मजदूर केंद्र द्वारा मजदूर बस्तियों में बैठक कर महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति के दुनिया पर पड़ने वाले असर के बारे में मजदूरों को बताया गया।
    
उक्त कार्यक्रमों से पूर्व इंकलाबी मजदूर केंद्र की दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश की इकाईयों द्वारा ‘‘पूंजीवाद के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा’’ शीर्षक से केंद्रीय स्तर पर जारी पर्चे का मजदूर-मेहनतकश जनता में व्यापक वितरण किया गया।       -विशेष संवाददाता

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।