प्रदूषण, पराली, सरकार व न्यायपालिका

किसानों द्वारा पराली (धान की फसल का पुआल जो हारवेस्टर से कटाई के बाद खेतों में पड़ा रहता है) जलाने पर न्यायालय के आदेश के तहत सरकारों द्वारा कठोर कार्यवाही की जा रही है। कार्यवाही मुकदमा करने, जुर्माना लगाने आदि के रूप में हो रही है, इसके पश्चात भी किसानों द्वारा पराली जलाने पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि (नवम्बर के दूसरे सप्ताह में न्यायधीश संजय किशन कौल) पराली जलाने वाले किसानों पर केवल मुकदमा व जुर्माना ही पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा और ज्यादा आर्थिक बोझ किसानों पर लाद दिया जाना चाहिए जैसे- एम एस पी का लाभ न दिया जाये, किसी भी तरह की कृषि सब्सिडी से वंचित किया जाये आदि। सरकार व न्यायपालिका का कहना है कि पराली जलाने के कारण निकलने वाले धुंआ से वातावरण प्रदूषित हो रहा है, जिससे लोगों को कई बीमारियां व अन्य परेशानियां हो रही हैं। वातावरण जहरीला हो रहा है। विशेषकर देश की राजधानी दिल्ली सहित पूरे एन सी आर में। किसान है कि मान ही नहीं रहे हैं। पराली जलाना जारी रखे हुए हैं। सरकार न्यायालय के अलावा समाज के पढ़े-लिखे लोगों में भी यही धारणा है कि किसानों के पराली जलाने से ही वातावरण प्रदूषित हो रहा है जिससे कई बीमारियां हो रही हैं। कितने लोग असमय मौत के मुंह में चले जा रहे हैं। यदि पराली जलाना बंद हो जाये तो वातावरण बहुत ही जल्द स्वच्छ हो जाएगा। किन्तु क्या यही सच्चाई है? ऐसा नहीं है। यह बात सत्य है कि पराली के धुआं से वायु प्रदूषण होता है। किन्तु पराली जलाना तो मात्र कुछ दिन ही होता है तथा देश के कुछ ही हिस्से में। बाकी साल भर वायु प्रदूषण कैसे होता है। इस पर सरकार, न्यायपालिका व समाज के तथाकथित बुद्धिजीवियों का तर्क क्या होता है? कोई नहीं जान पाता। गूगल व नेट पर सर्च करने पर कुछ वास्तविक जानकारी इस संदर्भ में मिलती है। वायु प्रदूषण के 10 बड़े कारण हैं जिससे वायु प्रदूषण होता है उसका जिक्र है।
1. जीवाश्म ईंधन का जलना - अधिकांश वायु प्रदूषण जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण होता है जैसे पेट्रोलियम पदार्थों से चलने वाले मोटर ट्रक, कारें आदि तथा कोयला से चलने वाले बिजली संयंत्र आदि मुख्य कारण हैं। 
2. औद्योगिक उत्सर्जन - औद्योगिक गतिविधियां पूरा ग्रीन हाउस का कारण बनती हैं। ये वायु प्रदूषण के बड़े कारण हैं। 
3. इन्डोर वायु प्रदूषण - घरेलू कारणों से वायु प्रदूषण भी होता है जो छोटे-छोटे रूपों में बड़ा कारण होता है जो अधिकांश व्यवस्था जनित कारण होते हैं। 
4. जंगल की आग- देश/दुनिया में बड़े-बड़े जंगलों में लगने वाली आग कई महीनों तक नहीं बुझती जिससे वातावरण प्रदूषित होता है। 
5. माइक्रो क्षय प्रक्रिया
6. परिवहन- परिवहन में कारों का बड़ा योगदान है जिससे भारी मात्रा में प्रदूषण होता है।
क. कार्बन मोनो ऑक्साइड
ख. हाइड्रोकार्बन
ग. नाइट्रोजन ऑक्साइड
घ. पार्टिकुलैट मैटर (डच् 2ण्5 और  डच् 10)
7. कचरे को खुले में जलाना - आजकल कचरा में मुख्य रूप से मुनाफा केन्द्रित व बाजारू सामानों से ज्यादा कचरा होता है जो बिना जलाए समाप्त नहीं होता है। जिससे जलाने से वातावरण प्रदूषित होता है जैसे- नमकीन, चिप्स, कुरकुरे आदि आदि के पैकेट का कवर आदि। 
8. कृषि सम्बन्धित गतिविधियां
9. निर्माण व विध्वंस
10. रासायनिक व सिंथेटिक उत्पादों का उपयोग         

उपरोक्त कारणों से वायु प्रदूषण ज्यादा होता है। किन्तु इन बिन्दुओं पर चर्चा व बहस समाज में नहीं होता और न ही तथाकथित बुद्धिजीवी इसकी चर्चा ही करते हैं। जो लोग पराली जलाने को प्रदूषण के लिए बड़ा कारण मानते हैं, वे या तो भोले हैं या नासमझ। हां, पराली क्या किसी भी चीज को जलाने से कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है जो वातावरण को प्रदूषित करती है। तो केवल पराली ही क्यों? गांव-गांव, शहर-शहर में हो रहे यज्ञों-कथा प्रवचन में होने वाले हवन आदि से भी वातावरण प्रदूषित होता है। अमेरिका से निकलने वाली मशहूर पत्रिका ‘‘मंथली रिव्यू’’ में बहुत पहले एक लेख छपा था जिसमें एक छोटे से शहर को आधार बनाकर पूरी दुनिया में विज्ञापन के कारण कितना प्रदूषण होता है, उसका जिक्र था। शहरों में वाल पेंटिंग, होर्डिंग, अखबारों, पत्रिकाओं में विज्ञापन, शहरों में बड़े-बड़े बोर्ड व होर्डिंग में दिन-रात जलते बल्ब व बिजली, टी.वी. आदि पर आने वाले विज्ञापन आदि आदि माध्यमों से अपने मालों का विज्ञापन कम्पनियां वहां तक करती हैं जहां इंसान का सामान्यतया पहुंचना मुश्किल होता है। उपरोक्त तरीके के विज्ञापनों में लगने वाला कागज, पेंट, स्याही, बिजली तथा इनके उत्पादन से होने वाला प्रदूषण आदि को जोड़कर एक शहर से प्रांत और प्रांत दर प्रांत से देश तब जाकर दुनिया के स्तर पर होने वाले विज्ञापन से उस लेख के अनुसार लगभग 30 प्रतिशत प्रदूषण होता है। यदि केवल विज्ञापन को रोक दिया जाए तो 30 प्रतिशत प्रदूषण कम हो जाएगा। 
    
तब केवल पराली पर इतनी हाय तौबा क्यों? पराली कृषि से जुड़ा मुद्दा है जो लोगों के जिन्दा रहने के लिए आवश्यक है। 
    
बहुत सारे प्रदूषण मुनाफे के लिए होने वाले उत्पादन से होते हैं जिसको आसानी से रोका जा सकता है। जबकि खेती करना जरूरी है। इसके अलावा पराली की समस्या पर सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसी कोई तकनीक या अन्य तरीका खोजे जिससे पराली को न जलाना पड़े। क्योंकि जो अभी तक सुझाव आ रहे हैं वह व्यवहारतः सही नहीं है। जैसे पराली को पानी लगाकर सड़ाना। एक तो पानी लगाने का किसानों पर बोझ दूसरा मौसम ठंडा होने के कारण खेत की नमी जल्दी नहीं जाती। जिससे रबी की बुआई पिछड़ने लगती है। इसलिए यह सुझाव ठीक नहीं है। इसलिए फिलहाल किसानों के लिए पराली को जलाने के अलावा अभी कोई ठीक तरीका नहीं आया है। जबकि पराली से कई गुना ज्यादा प्रदूषण अन्य कारणों (जिससे मुनाफा कुछ पूंजीपतियों के लिए होता है) से होता है किन्तु जनता को नहीं बताया जाता है। 
    
जिस दिन जनता समझेगी उसी दिन से मुनाफा आधारित व्यवस्था के खिलाफ खड़ी होगी और इसकी जगह पर मानव केन्द्रित व्यवस्था लाएगी (क्रांति करके)। 
        -लालू तिवारी (बलिया)

आलेख

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