‘‘परिपक्वता’’ का अभाव

करीब पांच महीने पहले ही बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक और अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। अब मायावती ने आनंद को जब तक ये ‘‘परिपक्व नहीं हो जाते’’ तब तक के लिए राष्ट्रीय समन्वयक के पद से हटा दिया और अपने उत्तराधिकार से वंचित कर दिया। आकाश आनंद का सूरज उगने से पहले ही डूब गया। 
    
बेचारे आकाश आनंद ने क्या अपरिपक्वता दिखलायी थी। बेचारे ने उ.प्र. के सीतापुर में एक रैली में ज्यादा ही सच बोल दिया। भाजपा की तुलना तालिबान से की और मोदी सरकार को ‘‘‘आतंकवादी सरकार’’ कह दिया। एक बार उसने उसे ‘‘देशद्रोहियों की सरकार’’ भी कह दिया था। 
    
बेचारे आकाश आनंद को नहीं पता था कि राजनीति में सच एकदम खुल्लम खुल्ला नहीं बोला जाता है। ‘‘आतंकवादी सरकार’’ ने उसे मार्च में ल्$ की सुरक्षा दी थी और उसकी बुआ को तो सुरक्षा के साथ-साथ हर तरह से अभयदान दिया हुआ है। उनके और उनके खानदान के पास अरबों की सम्पत्ति है परन्तु मोदी सरकार ने विपक्ष के हर नेता के पास आई डी, ई डी, सी बी आई भेजी परन्तु मायावती हर तरह से महफूज रहीं। मायावती परिपक्व नेता हैं और जानती हैं सत्ता कैसे हासिल की जाती है और सत्ता हाथ में न हो तो भी कैसे सत्ता में रहने का सुख लिया जाता है। कैसे अपने जीते जी ही अपनी प्रतिमा बनवायी जाती है और कैसे उस पर पुष्प वर्षा की जाती है। परिपक्वता इसे कहते हैं। 
    
‘‘अपरिपक्व’’ आनंद को देखो क्या कह रहा है। ‘‘यह सरकार एक बुलडोजर सरकार और गद्दारों की सरकार है। जो पार्टी अपने युवाओं को भूखा रखती और बुजुर्गों को गुलाम बनाती है वह आतंकवादी सरकार है। तालिबान अफगानिस्तान में ऐसी ही सरकार चलाता है’’। 
    
अच्छा हुआ मायावती ने अपने भतीजे को आप सजा दे दी कहीं मोदी-शाह की खोपड़ी सनक जाती तो फिर बेचारे का क्या होता। परिपक्व मायावती ने अपने छौने को अपने आंचल में छुपा लिया तो ठीक ही किया। अब जब वह परिपक्व हो जायेगा तब आंचल से बाहर आयेगा। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।