पश्चिम एशिया में इजरायल द्वारा युद्ध के दायरे का विस्तार

गाजापट्टी में जारी व्यापक नरसंहार

पश्चिम एशिया

गाजापट्टी में जारी व्यापक नरसंहार और विनाश के बावजूद इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध को कुचलने में अभी तक पूर्णतया नाकाम रही है। इस नाकामी की खीज के चलते उसने प्रतिरोध के नेताओं की हत्याओं का सिलसिला तेज कर दिया है। इसने ईरान के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में गए हमास के नेता इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या कर दी। 31 जुलाई की इस्माइल हानिया की हत्या के एक दिन पहले उसने लेबनान की राजधानी बेरूत के एक उपनगर में हिजबुल्ला के कमांडर फुआद शुक्र की हत्या कर दी थी। इस्माइल इजरायल के साथ युद्ध विराम संबंधी वार्ता में हमास की तरफ से मुख्य वार्ताकार थे। इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत के इस कुकृत्य का मकसद एक तरफ तो हमास के प्रतिरोध आंदोलन को नेतृत्व विहीन करना था और दूसरी तरफ किसी भी तरह के स्थाई युद्ध विराम की संभावना को समाप्त करना था। यह इसलिए भी कि इजरायल की नेतन्याहू हुकूमत गाजापट्टी में जारी युद्ध को अपनी राजनीतिक हार के बतौर देखती है।         

लेकिन इजरायल द्वारा हमास को नेतृत्व विहीन करने का सपना भी उस समय धराशायी हो गया जब हानिया के उत्तराधिकारी के बतौर याहिया सिनवार को हमास का नेता चुन लिया गया। 
    
गाजा में जारी नरसंहार और इस्माइल हानिया तथा हिजबुल्ला के वरिष्ठ कमांडर फुआद शुक्र की हत्या के बाद ईरान, हिजबुल्ला और यमन के हौथी और घनिष्ठ तालमेल के साथ जवाबी कार्रवाई करने की योजना बना रहे हैं। इसके पहले यमन ने इजरायल की राजधानी तेल अवीब में ड्रोन हमला किया था, जिसके जवाब में इजरायली नस्लवादी यहूदी हुकूमत ने यमन के होदेदाह बंदरगाह पर बमबारी की थी। 
    
ईरान में हमास के नेता इस्माइल हानिया की हत्या ने ईरान को इस युद्ध में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल होने के लिए उकसावे का कार्य किया है। इजरायल की हुकूमत शुरू से ही इस युद्ध को विस्तारित कर समूचे पश्चिम एशिया तक इसके दायरे को ले जाने की कोशिश करती रही है। उसके हर कुकृत्य को अमेरिकी साम्राज्यवादी बढ़ावा देते रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी इस कुतर्क के आधार पर कि इजराइल को अपनी आत्मरक्षा करने का अधिकार है, इजराइल की नरसंहार की कार्यवाहियों का न सिर्फ समर्थन करते रहे हैं, बल्कि वे उसे हर तरह से आधुनिक हथियारों से लैस करके, उसे गोला-बारूद मुहैय्या कराकर वे फिलिस्तीनियों के इस नरसंहार में भागीदार भी रहे हैं। 
    
अभी जुलाई माह के अंत में बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी साम्राज्यवादियों के यहां जाकर हमास को नष्ट करने के अपने इरादे की जोर-शोर से वकालत करते हुए उनका समर्थन हासिल कर लिया। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में लड़ रही शासक वर्ग की दोनों पार्टियों में इजराइल का समर्थन करने की होड़ लगी हुई है। एक तरफ अमेरिकी शासक वर्ग सभी पक्षों से धैर्य रखने की अपील करने की बात कर रहा है तो दूसरी तरफ वह इजरायल की नरसंहार करने की कार्रवाइयों को रोकने के लिए कोई व्यवहारिक कदम नहीं उठा रहा है। इसके विपरीत जाकर वह पश्चिम एशिया में इजरायल की रक्षा करने के लिए अपने युद्धपोतों को इस इलाके में तैनात कर रहा है। पहले से ही तैनात अमरीकी फ़ौजी अड्डों को और सैनिक भेज कर ईरान को यह धमकी दे रहा है कि यदि वह इजरायल के विरुद्ध युद्ध में उतरता है तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। 
    
इतना ही नहीं, वह शुरू से ही ईरान के विरुद्ध व्यापक लामबंदी करने के लिए पश्चिम एशिया के देशों में बार-बार अपने सैनिक और राजनीतिक प्रतिनिधियों के दौरे आयोजित कर रहा है। अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया और इराक में हमले आयोजित करके ईरान को घेरने की कोशिश में इजरायल के साथ घनिष्ठता से जुड़कर कार्य कर रहे हैं। वह जार्डन, साइप्रस और अन्य इलाकों में परमाणु हथियारों की तैनाती करने के जरिए ईरान के विरुद्ध घेरेबंदी को बढ़ा रहा है। अभी जार्डन के अंदर नाटो का कार्यालय स्थापित करके अमरीकी साम्राज्यवादी नाटो को भी पश्चिम एशिया के मामले में सक्रिय कर चुके हैं। जार्डन की हुकूमत ने इजराइल को अपने हवाई क्षेत्र से उड़ानें भरने की स्वीकृति दे दी है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी जहां यह दिखावा कर रहे हैं कि वे गाजा में शांति बहाली के लिए फिर से शांति वार्ता को शुरू कर रहे हैं, वे मिश्र और कतर के माध्यम से दोनों पक्षों इजराइल और हमास को साथ बैठाकर शांति वार्ता की तैयारी कर रहे हैं वहीं वे हमास के नए नेता याहया सिनवार की हत्या कराने के इजरायली हुकूमत के ऐलान पर चुप्पी साधे हुए हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियों का यह दोगलापन कोई नहीं बात नहीं है। वे सिर्फ इस बात से डरे हुए हैं कि इस युद्ध के पश्चिम एशिया तक विस्तार से अमरीकी चुनाव में विपरीत असर पड़ सकता है। अमरीका की व्यापक मजदूर-मेहनतकश आबादी इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार के विरोध में खड़ी है। अमरीका के कई बड़े शहरों में लाखों की तादाद में इजरायल के विरोध में और फिलिस्तीनियों के समर्थन में लाखों लोगों ने प्रदर्शन किए हैं। अभी हाल ही में डेमोक्रेटिक पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस की एक सभा में जब लोग फिलिस्तीनियों के पक्ष में नारे लगाने लगे तो कमला हैरिस ने धमकी दी कि यदि आप लोग ऐसे ही नारे लगाते रहे तो इससे ट्रंप की वापसी हो जाएगी। 
    

यदि पश्चिम एशिया में युद्ध का विस्तार हो जाता है तो इस समूचे इलाके में तैनात अमरीकी फौजी अड्डे भी हमले का निशाना बन सकते हैं। यह डर अमरीकी साम्राज्यवादियों को सता रहा है। अमरीकी साम्राज्यवादी इससे भी चिंतित हैं कि लेबनान में करीब 80,000 अमरीकी लोग मौजूद हैं, लेबनान में युद्ध के विस्तार से उन्हें कैसे सुरक्षित अमरीका लाया जाए। पश्चिम एशिया के विभिन्न देशों में अमरीकी पूंजी लगी हुई है, युद्ध की स्थिति में उसकी पूंजी के हितों को खतरा पैदा हो सकता है। इसी तरह, ईरान ने यदि होरमुज जलडमरूमध्य का रास्ता रोक दिया तो इससे मालवाहक जहाजों का रास्ता रुक जाएगा, इससे भी अमरीकी साम्राज्यवादी डरे हुए हैं। 
    
इसलिए वे फिलहाल समूचे पश्चिम एशिया में युद्ध के विस्तार को नहीं चाहते। लेकिन इजराइल अमरीकी साम्राज्यवादियों को इसमें घसीटने में सफल होता दिख रहा है। चूंकि अमरीकी साम्राज्यवादियों को इस इलाके में अपने प्रभाव को, अपनी पूंजी के हितों को बरकरार रखने की हर संभव कोशिश करनी है तो उन्हें यहां युद्ध में उतरना ही पड़ेगा। और वे इसकी हर तरीके से तैयारी कर रहे हैं। 
    
इराक और सीरिया में इजरायली-अमरीकी हमलों से प्रतिरोध की धुरी द्वारा तालमेल करके हमलों में तेजी आई है। सीरिया में अमरीकी ठिकानों पर हमले तेज हुए हैं। इराक के उत्तरी हिस्सों में अमरीकी अड्डे को हमले का निशाना बनाया गया है। ईरान की हुकूमत ने कहा है कि हानिया की हत्या का परिणाम इजराइल को भुगतना पड़ेगा। यह जवाब इजरायल के लिए पीड़ादायी होगा। 
    
ईरान इजरायल पर सैनिक कार्यवाही से पहले कूटनीतिक तौर पर अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने अभियान को तेज करता जा रहा है। रूस और चीन ने इजरायल द्वारा तेहरान में इस्माइल हानिया की हत्या के विरोध में ईरान का खुलकर समर्थन किया है। रूस राजनीतिक तौर पर समर्थन करने के साथ ही ईरान को एस-400 हवाई रक्षा प्रणाली मुहैय्या करा चुका है। अमरीकी-इजरायली आक्रामक धुरी के विरोध में रूस-चीन-ईरान की एक धुरी बन गई है। अभी कुछ समय पहले उत्तरी कोरिया ने भी ईरान के समर्थन में आने की घोषणा की है। 
    
कुल मिलाकर पश्चिम एशिया में युद्ध की तैयारियां बढ़ती जा रही हैं। 
    
इजरायली हुकूमत जैसे-जैसे फिलिस्तीनियों पर अत्याचार और नरसंहार तेज करती जा रही है, वैसे-वैसे वह दुनिया भर में और ज्यादा अलग-थलग पड़ती जा रही है। अभी हाल ही में फिलिस्तीनी महिला कैदियों पर सामूहिक बलात्कार करने और कैदियों के साथ गंदा काम करने के वीडियो जब सामने आए, तब दुनिया भर में इजरायली हुकूमत के विरुद्ध जनता में व्यापक गुस्सा देखा गया। वीडियो में दिखाई गई दरिंदगी का इजराइली अधिकारियों ने जब समर्थन किया तो इससे इजरायली हुकूमत और सामाजिक व्यवस्था का चरम पतनशील चरित्र उजागर हो गया।
    
इजरायली सत्ता द्वारा फिलिस्तीनियों के विरुद्ध ऐसी कुत्सित और घृणित कार्यवाहियों को जायज ठहराने ने न सिर्फ फिलिस्तीन में बल्कि पश्चिम एशिया सहित दुनिया भर में इजरायली हुकूमत के प्रति व्यापक तौर पर घृणा और गुस्से को बढ़ाया है। 
    
इससे अमरीकी साम्राज्यवादी भी इस क्षेत्र में अपने हितों को लेकर चिंतित हो गए हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी इस क्षेत्र के विभिन्न देशों में मौजूद प्रतिरोध की धुरी द्वारा किए जाने वाले हमलों की बढ़ोत्तरी से चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि उनके सैनिक ठिकानों और उनकी अन्य संपत्तियों पर हमले तेज हो सकते हैं। 
    
पिछले समय जब अल अक्सा फ्लड की कार्यवाही शुरू हुई थी, तब इस क्षेत्र के 12 देशों में अमरीकी साम्राज्यवादियों के 45,000 के आस-पास सैनिक तैनात थे। यह सैनिक उनसे अलग हैं जो इस क्षेत्र के कई जलमार्गों में स्थाई रूप से तैनात नौसेना के सैनिक हैं। 
    
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि यदि ईरान युद्ध में शामिल हो जाए तो होरमुज जलडमरूमध्य के बंद होने का खतरा बढ़ सकता है। यह जलडमरूमध्य मालवाहक जहाजों का एक महत्वपूर्ण रास्ता है। इस रास्ते से दुनिया का लगभग 30 प्रतिशत तेल होकर गुजरता है। 
    
यह फारस की खाड़ी को हिंद महासागर से, उत्तर में ईरान से और दक्षिण में संयुक्त अरब अमीरात और ओमान से जोड़ता है। चूंकि यह उथला है इसलिए यहां बारूदी सुरंगों के जरिए गुजरने वाले जहाजों को उड़ाए जाने का खतरा मौजूद है। यह ईरानी भूमि के नजदीक है। 
    
यदि होरमुज जलडमरूमध्य बंद हो जाए तो इसका प्रभाव वैश्विक ऊर्जा की कीमतों पर पड़ेगा। 
    
यहां इस बात पर गौर करना होगा कि यमन के हौथी लडाकुओं को तमाम प्रयासों के बावजूद अमरीकी साम्राज्यवादी इजराइल से आने-जाने वाले जहाजों को निशाना बनाने से नहीं रोक सके हैं। वे लगातार इजराइल जाने वाले मालवाहक जहाज पर हमला करते रहे हैं। दरअसल, यमन के हौथी विद्रोहियों ने मालवाहक जहाजों के लिए लाल सागर का रास्ता तकरीबन बंद कर दिया है। यमन के हौथी लडाकुओं की तुलना में ईरान की ताकत बहुत ज्यादा है। यदि बेंजामिन नेतन्याहू इस युद्ध में ईरान को शामिल होने के लिए मजबूर करते हैं तो होरमुज जलडमरूमध्य के रास्ते के बंद होने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाएगा। यह अमरीकी और अन्य साम्राज्यवादियों के वैश्विक व्यापार में बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डालेगा। 
    
ऐसी स्थिति में, अमरीकी साम्राज्यवादी अपने व्यापारिक, सैनिक और पूंजी निवेश की स्थिति को खतरे में डालकर ही इस युद्ध को व्यापक करने का खतरा मोल लेंगे। 
    
बेंजामिन नेतन्याहू की हुकूमत जन संहारक हुकूमत है। वह खुद युद्ध अपराधी है। उसकी जन संहारक नीतियां खुद इजरायल के अस्तित्व को खतरे में डाल रही हैं। वह अच्छी तरह से जानता है कि जैसे ही यह युद्ध समाप्त होगा, वह इजरायल के अंदर जेल के सीकचों में होगा।
    
इतने बड़े नरसंहार और विनाश के बावजूद फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध को वह नहीं कुचल सका और न ही अपना कोई लक्ष्य हासिल कर सका।         

इसके विपरीत उसने प्रतिरोध को और ज्यादा मजबूत किया है। यदि वह इस युद्ध को व्यापक करने की ओर जाता है तो वह और ज्यादा तेजी के साथ पतन की ओर जाएगा। अमरीकी साम्राज्यवादी भी उसके इस पतन में यदि भागीदार बनते हैं तो उनका भी प्रभाव इस क्षेत्र में कमजोर से कमजोरतर होने की ओर जाएगा। 
    
लेकिन वे फिलिस्तीनी राष्ट्र की आजादी को किसी भी तरह रोक नहीं सकते। यह अवश्यम्भावी है। यह उसी तरह अवश्यम्भावी है जिस तरह सुबह के सूरज का उगना।
 

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