साम्राज्यवादी-पूंजीवादी लुटेरों के विरोध में एकजुट होने का आह्वान

जी-20 की बैठक के समानान्तर जन सम्मेलन

हल्द्वानी/ इस बार जी-20 के शिखर सम्मेलन की मेजबानी और अध्यक्षता भारत सरकार कर रही है और यह 9-10 सितम्बर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित हो रहा है। इस दौरान देश के विभिन्न शहरों-कस्बों में अलग-अलग विषयों पर इसकी 200 तैयारी बैठकें होनी हैं। इन्हीं में से एक उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले के रामनगर कस्बे के निकट ढिकुली में 28, 29 और 30 सितम्बर को सम्पन्न हुई।

लुटेरे साम्राज्यवादी देशों की अगुवाई में सम्पन्न हुई इस बैठक व सितम्बर में होने जा रहे जी-20 के शिखर सम्मेलन एवं इसके नाम पर मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे विकास के खोखले दावों की असलियत उजागर करने के मकसद से 29 मार्च के दिन ढिकुली बैठक के समानान्तर एक जन सम्मेलन का आयोजन नैनीताल जिले के ही हल्द्वानी में किया गया।

इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन द्वारा आयोजित यह जन सम्मेलन तीन सत्र में बांटकर चलाया गया और विभिन्न प्रस्ताव भी पारित किये।

जन सम्मेलन के ‘पहले सत्र’ में मजदूरों, किसानों और कर्मचारियों पर बात हुई। वक्ताओं ने कहा कि प्रतिवर्ष कोई एक देश जी-20 के शिखर सम्मेलन की मेजबानी और अध्यक्षता करता है। भारत को इसकी मेजबानी 2020 में करनी थी लेकिन मोदी सरकार इसके लिये तैयार नहीं हुई और 2022 तक भी उसने इसके लिये हामी नहीं भरी। और अब जब सितम्बर, 2023 में वह इसका आयोजन कर रही है तब इसे अपनी विशेष उपलब्धि बताते हुये इसकी तैयारी बैठकों तक को भी अपने राजनीतिक प्रचार के साधन के रूप में इस्तेमाल कर रही है और जनता के पैसे को पानी की तरह बहा रही है और इस सबका साफ मकसद 2024 का लोकसभा चुनाव है।

वक्ताओं ने कहा कि जी-20 साम्राज्यवादी मुल्कों और बड़े पूंजीवादी मुल्कों का मंच है। इसमें अमेरिका जैसा साम्राज्यवादी मुल्क है जो कि इराक, अफगानिस्तान, यमन, सीरिया जैसे कई मुल्कों की तबाही का जिम्मेदार है और लाखों लाख नागरिकों, महिलाओं-बच्चों का हत्यारा है। रूसी साम्राज्यवादी भी जी-20 में शामिल हैं और रूसी साम्राज्यवादियों और अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी साम्राज्यवादियों के बीच जारी युद्ध ने यूक्रेन में जो तबाही मचाई है उसे विगत एक वर्ष से पूरी दुनिया देख रही है। इसी तरह ब्रिटिश साम्राज्यवादी भी जी-20 का हिस्सा हैं जिन्होंने करीब 200 साल तक भारत को अपना गुलाम बनाकर रखा था। इसी तरह चीन, जापान जैसे साम्राज्यवादी और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, तुर्की और भारत जैसे बड़े पूंजीवादी मुल्क भी जी-20 में शामिल हैं। ये सब वही देश हैं जहां कोरोना काल में कई करोड़ लोग बेमौत मारे गये थे क्योंकि पिछले चार दशक से जारी उदारीकरण-निजीकरण की खुले पूंजीवाद की नीतियों के परिणामस्वरूप इन में चिकित्सा-स्वास्थ्य की सरकारी-सार्वजनिक व्यवस्था जर्जर बनाई जा चुकी थी अथवा ध्वस्त कर दी गई थी। कोरोनो महामारी के समक्ष घुटने टेक चुके इन देशों साम्राज्यवादी-पूंजीवादी देशों की सरकारों के प्रतिनिधि आज ढिकुली (रामनगर) में बैठकर स्वास्थ्य के सवाल पर चर्चा कर रहे हैं। ढिकुली के जिस ताज रिजार्ट में इन मान्यवरों के रुकने का इंतजाम किया गया है वहां और ढिकुली के अन्य बड़े-बड़े होटलों-रिजोर्टा एवं उत्तराखंड की पूरी होटल इंडस्ट्री में न्यूनतम श्रम क़ानून भी लागू नहीं होते हैं।

वक्ताओं ने कहा कि जी-20 के माध्यम से असल में उदारीकरण-निजीकरण की लुटेरी नीतियों को ही आगे बढ़ाने की योजनायें बनाई जा रही हैं। फ्रांस में इसी दौरान दस लाख से भी अधिक मजदूर-कर्मचारी पेंशन में कटौती और रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाये जाने के विरुद्ध सड़कों पर उतरे हुये हैं जिनका साम्राज्यवादी सरकार दमन कर रही है। हमारे देश भारत में मोदी सरकार बहुत तेजी के साथ इन नीतियों को आगे बढ़ा रही है। सरकारी-सार्वजानिक संस्थानों यहां तक कि रक्षा क्षेत्र से जुड़े उद्यमों का भी तेजी से निजीकरण किया जा रहा है। देश की खेती-किसानी को बहुराष्ट्रीय निगमों और कारपोरेट पूंजीपतियों के हवाले करने के मकसद से मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि क़ानून लाये गये थे जिन्हें देश के किसानों ने अपने ऐतिहासिक आंदोलन के बल पर वापस करवा कर ही दम लिया। इसी तरह मोदी सरकार देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हितों के मद्देनजर घोर मजदूर विरोधी चार लेबर कोड्स लेकर आई है जिन्हें देश के मजदूर लगातार वापस लिये जाने की मांग कर रहे हैं।

जन सम्मेलन के ‘दूसरे सत्र’ जो कि महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, धार्मिक, अल्पसंख्यकों, नागरिक अधिकारों और पर्यावरण पर केंद्रित था, में वक्ताओं ने कहा कि जब तक साम्राज्यवादी-पूंजीवादी व्यवस्था कायम है तब तक युद्ध और उसकी तबाहियों से भी लोगों को मुक्ति नहीं मिल सकती और युद्ध का कहर सबसे अधिक मजदूर-मेहनतकश परिवारों की महिलाओं पर ही टूटता है। घर-परिवार उजड़ जाते हैं और हमलावर देशों की सेनायें महिलाओं के साथ बलात्कार करती हैं। ऐसे युद्ध उन्मादी साम्राज्यवादी-पूंजीवादी देशों के प्रतिनिधियों का हमें स्वागत नहीं बल्कि विरोध करना होगा।

वक्ताओं ने कहा कि केंद्र में हिन्दू फासीवादी मोदी सरकार के कार्यकाल में दलितों एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराध भी लगातार बढ़ रहे हैं। देशी-विदेशी कारपोरेट पूंजी की खातिर आदिवासियों को उनकी जगहों से उजाड़ा जा रहा है। आज देश में नागरिक अधिकारों का घोर दमन हो रहा है और सरकार का विरोध करने वाले हर शख्स को देशद्रोही करार दिया जा रहा है। तमाम नागरिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत पत्रकारों, बुद्धिजीवियों एवं सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेलों में सड़ाया जा रहा है। राजकीय संस्थाओं-सी.बी.आई., प्रवर्तन निदेशालय, चुनाव आयोग साथ ही न्यायपालिका पर भी नियंत्रण कायम कर देश में फासीवादी निजाम कायम करने की कोशिशें की जा रही हैं। वक्ताओं ने हिंदू फासीवादी खतरे के विरुद्ध क्रांतिकारी-प्रगतिशील ताकतों की व्यापक एकजुटता कायम करने का आह्वान किया।

जन सम्मेलन का ‘तीसरा और अंतिम सत्र’ छात्रों-नौजवानों पर केंद्रित था, जिसमें बात करते हुये वक्ताओं ने कहा कि देश में बेरोजगारी भयंकर रूप धारण कर चुकी है। बड़ी संख्या में सरकारी पद रिक्त पड़े हैं लेकिन बहुत कम पदों पर ही नियुक्तियां निकल रही हैं। उसमें भी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में धांधली एवं पेपर लीक होने की घटनायें लगातार बढ़ रही हैं और जिनके विरुद्ध युवाओं का आक्रोश फूटने पर उनका भारी दमन किया जा रहा है। मोदी सरकार ने अग्निपथ योजना के तहत उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को सेना में भी विस्तार देते हुये युवाओं की उम्मीदों पर भारी तुषारापात किया है। आज भविष्य की ना उम्मीदी में प्रतिवर्ष दस हज़ार से भी अधिक नौजवान आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर रहे हैं।

वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा कोरोना काल में आपदा में अवसर खोजते हुये पारित की गई नई शिक्षा नीति असल में शिक्षा के निजीकरण और भगवाकरण का दस्तावेज है, जिसका पुरजोर विरोध होना बेहद जरूरी है।

जन सम्मेलन के दौरान सांस्कृतिक मंडलियों द्वारा विभिन्न क्रांतिकारी गीत गाये गये और अंत में कुछ प्रस्ताव भी सर्वसम्मति से पारित किये गये।

जन सम्मेलन में जी-20 की ढिकुली बैठक हेतु उजाड़े गये लोगों के पुनर्वास व मुआवजे का प्रस्ताव, श्रम संहिताओं-अग्निपथ योजना, नई शिक्षा नीति के विरोध में प्रस्ताव के साथ पूंजीवादी-साम्राज्यवादी लुटेरों के खिलाफ मजबूत एकजुटता कायम करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

जन सम्मेलन में इंकलाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, क्रांतिकारी किसान मंच, ठेका मजदूर कल्याण कल्याण समिति, भेल मजदूर ट्रेड यूनियन, राजा बिस्कुट यूनियन, फूड श्रमिक यूनियन, इंटरार्क मजदूर संगठन, बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा, नगीना कालोनी बचाओ संघर्ष समिति लालकुआं, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, प्रगतिशील भोजन माता संगठन, औद्योगिक ठेका मजदूर यूनियन, प्रगतिशील युवा संगठन, सर्व श्रमिक निर्माण कर्मकार संगठन, एवरेस्ट वर्कर्स यूनियन, सी एंडर्स यूनियन, भाकपा (माले) फ़ूड श्रमिक यूनियन, एवरेडी यूनियन, बडवे यूनियन, आटोलाइन यूनियन, भारतीय किसान यूनियन, वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति, माकपा इत्यादि संगठनों के प्रतिनिधि शामिल रहे। -विशेष संवाददाता

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।