डयूटी के दौरान काम करते समय एक ठेका मजदूर घायल, अस्पताल में भर्ती

पंतनगर/ 23 मार्च 2023 को पन्तनगर के शैक्षणिक डेरी फार्म के कृषि अनुभाग में कार्यरत ठेका मजदूर तुलेश्वर यादव को कृषि अनुभाग से पशुशाला पुरानी डेरी में गोबर की ट्राली भरने भेजा गया था। वहां सुबह लगभग 9ः30 बजे ट्राली भरते समय ट्राली के डाले का हुक टूटने से तुलेश्वर यादव गिर गये, उनके शरीर के दोनों पैरों के बीच अंडकोष में गहरी चोट लग गई जिससे खून बहने लगा। साथ में काम कर रहे मजदूरों ने तुरंत प्रभारी पशुशाला अनुभाग को सुचना दी और मरीज को पन्तनगर विश्वविद्यालय चिकित्सालय ले जाया गया। जहां डॉक्टर ने मरीज को मरहम-पट्टी करके विभाग डेरी में भेज दिया।

पता चलते ही प्रभारी, कृषि अनुभाग और ठेका मजदूर कल्याण समिति के कार्यकर्त्ता मरीज को ई.एस.आई. कार्ड लेकर गौतम हास्पिटल रुद्रपुर, इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया और मरीज का IPD का पर्चा बनवाया जिसकी फीस 500 रुपये लगी। मरीज का ई.एस.आई.कार्ड और आवश्यक 3 पासपोर्ट साइज के फोटो खींचकर गौतम हास्पिटल के ई.एस.आई. कार्यालय में जमा करा दिया गया है। अस्पताल में भर्ती मरीज का ई.एस.आई. से इलाज चल रहा है। साथियों को अपने ठेका मजदूर कल्याण समिति में सदस्य/कार्यकर्ता बनकर इसी तरह मिल-जुलकर एक-दूसरे की मदद करके भाईचारा कायम करने की जरूरत है। -भूपेन्द्र शर्मा, पन्तनगर

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।