अमेरिका की तेल रिफाइनरी कम्पनी डेट्रोईट के 270 मजदूर अपने कांट्रेक्ट के नवीनीकरण के लिए 5 सितम्बर से हड़ताल पर चले गये हैं। ज्ञात हो कि इन मजदूरों का कांट्रेक्ट 31 जनवरी 2024 को समाप्त हो चुका है। ये मजदूर पिछले सात महीनों से बिना नये कांट्रेक्ट के ही काम कर रहे थे। यह हड़ताल वे टीमस्टर्स 283 के बैनर तले कर रहे हैं। हड़ताली मजदूरों की मांग यूनियन की सुरक्षा की भी है।
हड़ताली मजदूरों का कहना है कि पिछली बार जब चार साल का कांट्रेक्ट हुआ था वह 31 जनवरी 2024 को समाप्त हो चुका है। उस कांट्रेक्ट में भी जो वेतन वृद्धि 4 साल के लिए हुई थी वह मात्र 2.5 से 3 प्रतिशत के बीच ही थी। जो उस समय की महंगाई की दर से अपर्याप्त थी। इस बार हम मैराथन कम्पनी से 6 प्रतिशत की वेतन वृद्धि की मांग कर रहे हैं। हालांकि यह भी आज की महंगाई की दर के अनुरूप नहीं है लेकिन कम्पनी प्रबंधन इस मांग को भी मानने को तैयार नहीं है। और वार्ता करने के लिए तैयार नहीं है। अब हड़ताल पर जाने के अलावा इन मजदूरों के पास कोई चारा नहीं बचा है।
मजदूरों का कहना है कि हम मजदूर मैराथन तेल रिफाइनरी को अकूत मुनाफा कमाकर दे रहे हैं लेकिन कम्पनी उनके लिए कुछ भी करने को तैयार नहीं है। मजदूरों के अनुसार पिछले तीन महीनों में ही 17.1 अरब डालर का मुनाफा हुआ है। वे 12-12 घंटे की शिफ्ट में काम करते हैं। मैराथन कम्पनी ने हाल में ही कनोको फिलिप्स के अधिग्रहण करने के लिए 22.5 अरब डालर का समझौता किया है। अगर यह समझौता हो जाता है तो मैराथन कम्पनी अमेरिका की सबसे बड़ी स्वतंत्र तेल उत्पादक कम्पनी बन जाएगी।
हडताल के बारे में प्रतिक्रिया देते हुए कम्पनी के प्रबंधक ने कहा कि जो मजदूर हड़ताल पर गये हैं वे हमारी 11 कम्पनियों की कुल श्रम शक्ति का बहुत थोड़ा और किनारे का हिस्सा हैं। हमारे पास हड़ताली मजदूरों से भी ज्यादा साल का अनुभव रखने वाले मजदूर हैं। हड़ताल से कम्पनी पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
जबकि सच्चाई यह है कि जो मजदूर हड़ताल पर गये हैं वे कम्पनी में सुरक्षा व्यवस्था देखते थे। यानी कम्पनी में काम कर रहे मजदूरों और आस-पास रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए वे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। किन्हीं नये इलाके से नये मजदूरों को काम पर लगा देने से सुरक्षा व्यवस्था को गंभीर खतरा पहुंच सकता है। लेकिन कम्पनी प्रबंधन को इस सबसे कोई मतलब नहीं होता है।
अमेरिका की तेल रिफाइनरी डेट्रोईट के मजदूर हड़ताल पर
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इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए।
ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।
जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।
आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।