डाल्फिन के मजदूर अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन पर

डाल्फिन के मजदूरों का अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन

स्थाई मजदूरों को ठेके पर नियोजित करने के खिलाफ आंदोलनरत हैं मजदूर 

रुद्रपुर/ डाल्फिन कंपनी में स्थाई मजदूरों को ठेकेदारी के तहत नियोजित करने के गैरकानूनी कृत्य, मजदूरों की अवैधानिक गेटबंदी समाप्त करने, न्यूनतम वेतनमान का पिछला बकाया भुगतान कराने, बोनस दिलाने आदि मांगों को लेकर डाल्फिन के मजदूरों ने 28 अगस्त 2024 से कार्य बहिष्कार कर निकट पारले चौक, सिडकुल पंतनगर में अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है।
    
विदित रहे कि डाल्फिन कम्पनी  मारुति (गुड़गांव, मानेसर) के लिए सीट कवर बनाती है, इसके यहां (पंतनगर सिडकुल) 5 प्लांट हैं जिनमें करीब 3000 हजार से ज्यादा मजदूर काम करते हैं, इनमें महिला मजदूरों की संख्या काफी है। इसका मालिक दिल्ली निवासी प्रिंस धवन है। डाल्फिन के अधिकतर मजदूरों को 5000-7000 रुपए वेतन मिलता था। डाल्फिन के पांचों प्लांटों के मजदूरों ने जनवरी 2024 में एकदिवसीय धरना प्रदर्शन किया। उसके बाद मजदूरों को न्यूनतम वेतन दिया जाने लगा। जब मजदूरों ने श्रम कानूनों के तहत अन्य सुविधाओं बोनस, बकाया न्यूनतम वेतन, आदि की मांग की तब से मालिक ने मजदूरों से जबरन इस्तीफे लिखवाकर उन्हें ठेकेदारी के तहत नियोजित करना शुरू कर दिया। जिन मजदूरों ने विरोध किया उनकी गेटबंदी कर दी। मजदूरों ने इसकी शिकायत श्रम विभाग, जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, सरकार को की लेकिन मजदूरों को न्याय मिलने के स्थान पर उल्टा मालिक के साथ सांठ-गांठ कर प्रशासन ने मजदूरों व उनके सलाहकारों पर ही मुकदमे दर्ज कर दिए और गुंडा एक्ट के तहत मुकदमे लगाने की कार्रवाई कर दी।  
    
एक तरफ श्रम विभाग, जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन की अनदेखी दूसरी ओर मालिक द्वारा मजदूरों से जबरन इस्तीफे लिखवाने, कारण बताओ नोटिस जारी करने व गेटबंदी करने से मजदूरों में आक्रोश फूट गया और मजदूरों ने 28 अगस्त से कार्य बहिष्कार कर दिया और कम्पनी के पास ही (इंटरार्क के धरना स्थल) निकट पारले चौक पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन पर बैठ गए। मजदूरों की मांगों का समाधान करने के स्थान पर पुलिस प्रशासन लगातार मजदूरों को कानून व एसडीएम के आदेश का हवाला देकर सिडकुल के भीतर से धरना हटाकर गांधी पार्क में स्थानान्तरित करने को धमका रहा है।
    
धरने के तीसरे दिन 30 अगस्त दोपहर 2ः30 बजे से धरना स्थल पर श्रमिक संयुक्त मोर्चा उधमसिंह नगर से जुड़ी यूनियनों और सामजिक-मजदूर संगठनों की संयुक्त बैठक हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि सिडकुल पंतनगर में श्रमिकों के धरना प्रदर्शन करने के लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रशासन द्वारा दमन किया जा रहा है और डाल्फिन के मजदूरों का जिस तरह से उत्पीड़न किया जा रहा है उसके खिलाफ श्रमिक संयुक्त मोर्चा सामूहिक रूप से अति शीघ्र बड़ा और निर्णायक कार्यक्रम करेगा साथ ही प्रशासन को चेतावनी भी दी गई कि यदि डाल्फिन के मजदूरों के साथ प्रशासन द्वारा जोर जबरदस्ती की गई तो कम्पनियों से बाहर निकलने और सिडकुल को बंद करने में मजदूरों को चंद मिनट का ही समय लगेगा। धरना स्थल के आस-पास की कम्पनियों में ही मोर्चे से जुड़ी कई यूनियनों के मजदूर कार्यरत हैं जो हर समय मामले पर नजर बनाये हुए हैं साथ ही यह भी तय किया गया कि डाल्फिन के मजदूरों के भोजन आदि की व्यवस्था करने को मोर्चे से जुड़ी यूनियनें तन-मन-धन से सहयोग करेंगी।
    
बैठक को सम्बोधित करते हुए डाल्फिन मजदूर संगठन के अध्यक्ष ललित कुमार ने बताया कि पुलिस बल की मौजूदगी में डाल्फिन कंपनी मालिक प्रिंस धवन के नेतृत्व में हर रोज सौ डेढ़ सौ स्टाफ, ठेकेदार अज्ञात गुंडों के साथ में धरना स्थल को सड़क के दोनों ओर से घेर लेते हैं और आंदोलन कर रहे मजदूरों को उकसाने, धमकाने और यहां तक कि उनसे मारपीट, गालीगलौच, धमकी देने का काम भी करते हैं। वे रोड को भी जाम कर देते हैं किन्तु वहां पर उपस्थित पुलिस बल श्रमिकों के कई बार शिकायत करने पर भी मूकदर्शक बना रहता है। वहीं यदि भूले भटके से दो चार मजदूर भी कभी रोड के किनारे भी खड़े हो जाएं तो पुलिस वाले उन्हें तुरंत डांटकर वहां से हटा देते हैं। जिससे स्पष्ट है कि पुलिस प्रशासन द्वारा किसी ऊपरी दबाव में प्रिंस धवन और उक्त गुंड़ों को गुंडागर्दी करने की खुली छूट दे रखी है।
    
इसी गुंडागर्दी के क्रम में 30 अगस्त को आंदोलन से जुड़े श्रमिक प्रमोद और रवि जब ट्रांजिट कैम्प बाजार में राशन खरीदने को जा रहे थे कि कम्पनी मालिक प्रिंस धवन के नेतृत्व में करीब सौ-डेढ़ सौ गुंडों ने उन पर हमला किया जिसमें प्रमोद के होंठ अंदर से फट गए जिससे बहुत खून बहा। उनसे पांच हजार रुपये भी छीन लिए, रवि को भी बहुत मारा और उनका मोबाइल भी छीन लिया। वो दोनों बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागे। 112 नंबर पर तत्काल शिकायत करने पर भी पुलिस नहीं पहुंची, काफ़ी समय बाद वो धरना स्थल पर पहुंचे तब जाकर पुलिस ने उन दोनों का सरकारी अस्पताल में मेडिकल कराया। लिखित तहरीर देने के बावजूद भी पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करना तो दूर की बात है तहरीर की रिसीविंग तक नहीं दी और अभी तक ना तो मोबाइल फोन दिलाया है और ना 5000 रुपये दिलाए हैं जबकि दोनों ने मोबाइल और रुपये छीनने वाले गुंडों का नाम और पहचान भी पुलिस को बता दी है फिर भी पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। जिससे स्पष्ट है कि पुलिस और उक्त गुंड़ों के बीच गहरी सांठ-गांठ है।
    
बैठक में उपस्थित सभी मजदूरों ने पुलिस प्रशासन और उक्त गुंड़ों के उपरोक्त गुंडागर्दी की तीखे स्वर में निंदा की और घोषित किया कि आज श्रमिक प्रमोद और रवि को ही गुंड़ों ने पीटने और अपमानित करने का काम नहीं किया है बल्कि श्रमिक संयुक्त मोर्चा से जुड़ी सिडकुल की सारी यूनियनों और मजदूरों के मुंह पर थप्पड़ मारा है, सबको मारा है और सबका अपमान किया है। इसलिए इसका जवाब संगठित आंदोलन के बल पर जरूर लिया जायेगा।                 -रुद्रपुर संवाददाता
 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।