मोदी जी ! मणिपुर में (गृह) युद्ध कब थमेगा

मोदी सरकार का रूस-यूक्रेन के बीच शांति कायम करने का प्रयास राजनैतिक शिगूफेबाजी

पिछले वर्ष मई माह में शुरू हुआ मैतेई तथा कूकी समुदायों के बीच खूनी संघर्ष आज तक नहीं थम सका। मोदी जी स्वयं रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रुकवाने के नाम पर दोनों देशों में जा चुके हैं और आजकल उनके बीच शांति स्थापित करने के नाम पर मोदी जी के सलाहकार डोभाल वहां गये हुए हैं। मणिपुर में शांति व सुरक्षा कायम करने में अक्षम मोदी सरकार का रूस-यूक्रेन के बीच शांति कायम करने का प्रयास राजनैतिक शिगूफेबाजी के सिवा और क्या है।

मई 2023 से अब तक मणिपुर में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। घायल और विस्थापितों की संख्या हजारों में है। साम्प्रदायिक धार्मिक व नृजातीय विभाजन अपने चरम पर है। इम्फाल घाटी से कूकी आमजनों व सरकारी कर्मचारियों को खदेड़ा जा चुका है और ऐसा ही मैतइयों के साथ पहाड़ी इलाकों में हो चुका है। केन्द्रीय सुरक्षा बल न तो मैतई उग्र हथियार बंद संगठनों और न ही कूकी हथियार बंद संगठनों के हमलों को रोक पा रहे हैं। हालात और अधिक तब खराब हो गये जब इम्फाल घाटी में आम छात्रों व पुलिस के बीच तीखा संघर्ष सड़कों पर छिड़ गया। इम्फाल में छात्र जब राजभवन को घेरने के लिए आगे बढ़ रहे थे तब पुलिस ने छात्रों पर हमले शुरू कर दिये। लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोलों से सैकड़़ों छात्र घायल हो गये। बेकाबू होते हालात को संभालने के नाम पर इम्फाल घाटी में कर्फ्यू के साथ इण्टरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यह मणिपुर की समस्या का कोई समाधान नहीं है।

मणिपुर में भाजपा सरकार एकदम नकारा साबित हो चुकी है। उसका शासन इम्फाल घाटी तक में भी कायम नहीं रह गया है। असल में जो आग उसने मणिपुर में लगायी थी अब वह आग राजभवन तक जा पहुंची है। निकम्मी भाजपा सरकार सिर्फ इसलिए वहां मौजूद है कि केन्द्र में मोदी की सरकार है अन्यथा यह भाजपा सरकार तो अब मैतइयों का भी भरोसा खो चुकी है। कूकियों और नगाओं का भरोसा इस सरकार ने कभी हासिल ही नहीं किया था।

मणिपुर में अस्थायी शांति भी तब कायम हो सकती है जब वर्तमान भाजपा सरकार वहां से हटे। मैतई समुदाय व कूकी समुदायों के बीच साम्प्रदायिक सौहार्द कायम करने के लिए आम मेहनतकश लोगों के बीच से कोई पहलकदमी शुरू हो। दोनों समुदाय के स्वार्थी खाते-पीते व राजनैतिक नेताओं के तुच्छ स्वार्थों को खत्म करने के लिए आम जन अपनी आपसी एकता व भाईचारा कायम करें। केन्द्र की मोदी सरकार व राज्य सरकार मणिपुर में ईसाई विरोधी हिन्दू फासीवादी कार्ड खेलना बंद करे। दूरगामी स्थायी समाधान तो तब ही हो सकता है जब भारत में एक ऐसी व्यवस्था हो जहां राष्ट्रीयताओं का दमन-उत्पीड़न बंद हो। और हर राष्ट्रीयता को फलने-फूलने का मौका हो। और ऐसा मजदूरों-मेहनतकशों के राज समाजवाद में ही संभव है।

 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

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पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।