आज के भारत में मुसलमानों को भांति-भांति से भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। राज्य और संघ-भाजपा द्वारा प्रायोजित हिंसा इसका सबसे क्रूर रूप है। लेकिन इसके अलावा समाज में बढ़ रहा हिंदू सांप्रदायिक माहौल मुसलमानों के लिए अपने तमाम सामाजिक जीवन में ढ़ेरों अपमानजनक स्थितियों का सामना करने के लिए मजबूर कर रहा है। इन तमाम रूपों में से एक रूप है मुसलमानों द्वारा स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने के दौरान सहन किया जाने वाला अपमानजनक व्यवहार।
गर्भावस्था के दौरान फातिमा के अनुभव ऐसी ही अपमानजनक घटनाओं का गवाह बना। वह याद करती है, ‘‘मैं अक्सर अपने सांस्कृतिक और धार्मिक आचरणों के लिए अपमानजनक फब्तियां सुनती थी।... कभी-कभी अपमान से बचने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को न हासिल करना भावनात्मक परेशानियों को पैदा करता था।’’
ऐसे ही एक अन्य महिला का कहना है, ‘‘पहले बच्चे का जन्म पीड़ादायक होता है। तब भी हमारे कराहने पर वे चिल्लाते थे और हमें थप्पड़ मारते थे। वह कहते थे कि जब यह अंदर गया तब तुम्हें कोई शर्म नहीं आई। और जब यह बाहर आ रहा है तब तुम क्यों चिल्ला रही हो।... वे हमें कोई जानकारी नहीं देते थे। जब वे हम पर ध्यान नहीं देते थे, तब भी हम मजबूर थे कि चुप रहें और कुछ भी ना पूछें।...कर्मचारी हमें गालियां देते थे। गर्भनिरोधक का इस्तेमाल न करने के लिए वे हमें अपमानित करते थे। अगर एक बच्चे के जन्म के बाद कम अंतराल पर हम फिर से गर्भवती हो जाते हैं तो वे हमारे बारे में गंदी बातें करते हैं।... उनका व्यवहार अपमानजनक होता है। वे हमसे ऐसे पेश आते हैं, जैसे हम फालतू हों।’’
आज देश के मुसलमानां को शिक्षा-स्वास्थ्य समेत जीवन के तमाम क्षेत्रों में अपमान-उत्पीड़न-भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। उनका आम तौर पर गरीब होना भी इस समस्या को पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सब इस व्यवस्था के मानवद्रोही चरित्र को और भी ज्यादा क्रूरतापूर्वक उद्घाटित कर रहा है।
स्वास्थ्य ढांचे का हिंदूकरण
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