दुनिया भर में राजनैतिक-सामरिक उथल पुथल तेज होती जा रही है। दुनिया तेजी के साथ युद्धों को तेज करने की ओर बढ़ती जा रही है। इटली में साम्राज्यवादी देशों जिसकी अगुवाई अमरीकी साम्राज्यवादी करते हैं, की जी-7 देशों की बैठक में रूस और चीन के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किये गये हैं। रूस की 300 अरब डालर की पश्चिमी बैंकों में जमा राशि को जब्त कर यूक्रेन की मदद करने पर विचार किया गया। हालांकि इस पर सहमति नहीं बनी। अमरीकी साम्राज्यवादी चाहते हैं कि यूरोप के बैंकों में जमा रूसी धन राशि को यूक्रेन के युद्ध में झोंक दिया जाए। लेकिन यूरोप के साम्राज्यवादी इसके लिए तैयार नहीं हैं। इसका कारण यह डर है कि उनके इस कदम से यूरोपीय बैंकों में लोग पैसा जमा करने से भाग सकते हैं। इसलिए 50 अरब डालर कर्ज जुटाकर यूक्रेन को और ज्यादा हथियारबंद करने पर सहमति बनी। यूक्रेन की जमीन पर रूसी फौज आगे बढ़ रही है। यूक्रेन की फौज में निराशा व्याप्त है। अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादी यह कहते रहे हैं कि उनके आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल रूसी जमीन पर हमले के लिए यूक्रेन नहीं करेगा। लेकिन अब यूक्रेनी फौज रूसी शहरों में हमला करने में अमरीकी और अन्य साम्राज्यवादियों द्वारा दिये गये आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल नागरिकों और बच्चों पर कर रही है। अमरीकी साम्राज्यवादी अब इन हथियारों के रूस की जमीन पर इस्तेमाल करने की वकालत करने लगे हैं।
जी-7 की बैठक और नाटो की बैठकों में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल करने की संभावना पर भी विचार किया गया। यह ज्ञात हो कि 5 लाख नाटो फौजें आधुनिक हथियारों के साथ रूस के विरुद्ध तैनात हैं। अब यह भी विचार किया जा रहा है कि नाटो फौजें यूक्रेन के भीतर जाकर रूस के विरुद्ध सीधे युद्ध में खुले तौर पर उतर जायें। वैसे पहले से ही प्रशिक्षण और सहायता करने के नाम पर नाटो की फौजें यूक्रेन के भीतर मौजूद हैं।
जी-7 की बैठक में चीन के विरुद्ध भी प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में चीन पर रूस की दोहरे उपयोग वाली सामग्री बेचने का आरोप लगाया गया तथा चीन से मांग की गयी कि वह दोहरे उपयोग वाली चिप्स रूस को देना बंद करे। इससे बढ़कर चीन द्वारा सस्ते दामों में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक बिजली कारों (ई वी) का उत्पादन करके जी-7 के देशों में उनके निर्यात पर रोक लगाने के लिए भारी तटकर लगाने के कदम उठाने की बात की गयी। अमरीकी साम्राज्यवादी चीनी ई.वी. पर पहले से ही 100 प्रतिशत तटकर लगा चुके हैं।
जी-7 की बैठक में पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा रूसी और चीनी साम्राज्यवादियों की घेरेबंदी और प्रतिबंध तक ही बात सीमित नहीं है। अमरीकी साम्राज्यवादी एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपने फौजी अभ्यास और नये गठबंधन बनाते जा रहे हैं और उनका विस्तार कर रहे हैं। अमरीका का दक्षिण कोरिया के साथ फौजी अभ्यास निरंतर चल रहा है। अब अमरीका, जापान और दक्षिण कोरिया मिलकर फौजी अभ्यास कर रहे हैं। आगे चलकर इसमें ताइवान को भी अनौपचारिक तौर पर शामिल करने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादी बना रहे हैं। इन सभी जगहों पर अमरीकी फौजी अड्डे कायम हैं। आकस और क्वाड के माध्यम से अमरीकी साम्राज्यवादी एशिया प्रशांत क्षेत्र में पहले से ही फौजी गुट बनाये हुए हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियों का यह एशिया प्रशांत क्षेत्र का नाटो है। आकस में अभी आस्ट्रेलिया, यू.के. और अमरीका है। क्वाड में जापान, आस्ट्रेलिया, भारत और अमरीका शामिल हैं। इन सबका मकसद चीन को घेरना है। दक्षिण चीन सागर, ताइवान और कई टापुओं को लेकर इस क्षेत्र के देशों के बीच विवाद को हवा देकर अमरीकी साम्राज्यवादी चीनी साम्राज्यवादियों को उकसाने की कार्रवाई कर रहे हैं। फिलीपीन्स में अमरीकी साम्राज्यवादियों ने पहले से ही कई फौजी अड्डे कायम किये हुए हैं। फिलीपीन्स के साथ चीन की टकराहट को बढ़ाने में अमरीकी साम्राज्यवादियों की बड़ी भूमिका रही है।
इससे निपटने के लिए रूसी और चीनी साम्राज्यवादी अपने डैनों को फैला रहे हैं। इसी जून महीने में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने उत्तरी कोरिया और वियतनाम की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान रूस और उत्तर कोरिया के बीच सम्बन्धों को एक और नयी ऊंचाई के स्तर तक पहुंचा दिया गया। इस यात्रा के दौरान हुए समझौते के मुताबिक रूस उत्तरी कोरिया को आधुनिक तकनीक और उन्नत किस्म के हथियारों की तकनीक मुहैय्या करायेगा तथा उत्तरी कोरिया रूस को गोला बारूद तथा वहां काम करने के लिए श्रमिक मुहैय्या करायेगा। इस समझौते के अनुसार, यदि कोई देश या देशों का समूह इन दोनों में से किसी देश पर हमला करता है तो दूसरा देश इस हमले के विरोध में हर तरह की मदद करेगा। इससे दोनों देशों के बीच एक तरह का सैनिक समझौता हो गया है।
इस समझौते के बाद अमरीकी और यूरोपीय साम्राज्यवादियों के बीच खलबली और बेचैनी बढ़ गयी। अभी तक उत्तरी कोरिया को दुनिया भर के देशों से अलग-थलग करने में अमरीकी साम्राज्यवादी काफी हद तक सफल थे। लेकिन पुतिन के साथ उत्तरी कोरिया के बढ़ते सम्बन्धों ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक नये गठबंधन को आगे बढ़ाने में भूमिका निभायी है। यह गठबंधन यहीं तक सीमित नहीं रहा है।
पुतिन ने उत्तरी कोरिया की यात्रा के बाद वियतनाम की यात्रा की। वियतनाम के साथ भी रणनीतिक साझीदारी सम्बन्धी समझौते पर करार किया। अमरीकी साम्राज्यवादी वियतनाम को चीन के विरुद्ध अपने अभियान में अपने पक्ष में खड़ा करना चाहते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सितम्बर, 23 में वियतनाम के साथ रणनीतिक साझीदारी सम्बन्धी समझौता किया था। दक्षिणी चीन सागर के कुछ टापुओं को लेकर वियतनाम का चीन के साथ विवाद है। अमरीकी साम्राज्यवादी इस विवाद को हवा देकर वियतनाम को चीन के विरुद्ध खड़ा करना चाहते हैं। लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन की वियतनाम की यात्रा से रूस वियतनाम सम्बन्ध और ज्यादा मजबूत हुए हैं। वियतनाम को चीन के साथ विवादों को हल करने में भी पुतिन से मदद मिल सकती है। कम से कम अमरीकी साम्राज्यवादी अब इस विवाद का इस्तेमान कर चीन को घेरने की अपनी योजना में सफल नहीं हो पायेंगे।
इस प्रकार, अमरीकी एशियाई नाटो का मुकाबला करने के लिए रूस-उत्तरी कोरिया-वियतनाम-चीन का एक गठबंधन मजबूत होने की ओर बढ़ रहा है।
इस दौरान चीनी साम्राज्यवादी भी अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने में एशिया प्रशांत क्षेत्र पर विशेष जोर दे रहे हैं। इस क्षेत्र के देशों का चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है। चीन की बेल्ट और रोड परियोजना से इस क्षेत्र के कई देश जुड़े हुए हैं। चीनी साम्राज्यवादियों ने इसी जून महीने में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड और मलेशिया के साथ कई समझौते किये हैं। चीनी प्रधानमंत्री ने न्यूजीलैण्ड और आस्ट्रेलिया के साथ अपने व्यापारिक सम्बन्धों को और गहन करने की कोशिश की। हालांकि ये दोनों देश अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ राजनीतिक और सैनिक तौर पर गहराई से जुड़े हुए हैं। चीनी साम्राज्यवादी इससे वाकिफ हैं। वे अपने व्यापारिक सम्बन्धों के जरिए अमरीकी साम्राज्यवादियों के राजनीतिक व सैनिक प्रभाव को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। मलेशिया की चीनी प्रधानमंत्री की यात्रा चीन की दृष्टि से ज्यादा सार्थक रही। मलेशिया में बेल्ट और रोड योजना के तहत एक रेल लाइन बिछाने सम्बन्धी समझौता हुआ। मलेशिया दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में अमरीकी साम्राज्यवादियों की दखलंदाजी के विरुद्ध है, यह उसके प्रधानमंत्री ने घोषित किया।
अभी हाल ही में वियतनाम के प्रधानमंत्री ने चीन की यात्रा की और अपने सम्बन्धों को ज्यादा प्रगाढ़ करने पर जोर दिया। जुलाई महीने में सोलोमन द्वीप समूह के प्रधानमंत्री चीन आने वाले हैं। यह ज्ञात हो कि अमरीकी साम्राज्यवादियों और आस्ट्रेलिया के शासकों की तमाम धमकियों के बावजूद सोलोमन द्वीप समूह ने चीन के साथ सुरक्षा समझौतों सहित कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे। पिछले 2-3 वर्षों से सोलोमन द्वीप समूह का चीन के साथ रिश्ता मजबूत से मजबूततर होता गया है। यह स्थिति अमरीकी साम्राज्यवादियों की चीन को घेरने की योजना के विरुद्ध जारी है।
अमरीकी साम्राज्यवादी दुनिया भर में अपने फौजी अड््डे कायम किये हुए हैं। दुनिया पर प्रभुत्व कायम करने की आकांक्षा से ये फौजी अड्डे हर जगह पर अस्थिरता, हिंसा और उत्पीड़न के पर्याय बने हुए हैं। आज जब यूक्रेन में अमरीकी साम्राज्यवादियों और नाटो को पराजय दिखाई दे रही है, तब वह अब एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की घेरेबंदी की ओर आगे बढ़ रहा है। लेकिन यहां पर भी उसे एक-दूसरे गठबंधन की चुनौती मिलने की संभावना बढ़ती जा रही है।
पश्चिम एशिया में फिलिस्तीन की व्यापक तबाही के बाद भी वह प्रतिरोध की धुरी को कुचलने में नाकामयाब रहा है। हकीकत यह है कि प्रतिरोध की धुरी लगातार हमलावर होती जा रही है। इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों की तमाम मदद के बावजूद अमरीकी साम्राज्यवादी खुद अलगाव में जाने को अभिशप्त हुए हैं। वे अब इजरायली यहूदी नस्लवादी हुकूमत को लेबनान के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की ओर पहुंचा रहे हैं। ऐसी स्थिति में वे पश्चिम एशिया में और अलगाव की ओर जायेंगे।
पश्चिम एशिया से लेकर यूक्रेन तक अमरीकी साम्राज्यवादियों की फौजी-राजनीतिक-कूटनीतिक ताकत काम नहीं आ रही है। वे अब एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इस युद्ध की आग को भड़काने की ओर ले जा रहे हैं। इसमें ताइवान के मसले पर चीन को उकसाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी घोषित तौर पर ताइवान को चीन का हिस्सा मानते हैं। लेकिन वे ताइवान को आधुनिक हथियार बेच रहे हैं। ताइवान में उनके फौजी विशेषज्ञ तैनात हैं। अमरीका की खुफिया एजेन्सियां चीन की जासूसी करने के लिए ताइवान के भीतर काम कर रही हैं।
अगर अमरीकी साम्राज्यवादी ताइवान के मसले पर चीन के विरुद्ध युद्ध की ओर जाते हैं तो अमरीकी साम्राज्यवादियों को और बड़ी हार का सामना करना पड़ सकता है।
अमरीकी साम्राज्यवादियों की विश्व में प्रभुत्व स्थापित करने की क्षमता अब कमजोर हो रही है। दुनिया भर में युद्ध क्षेत्रों में फंसकर वह अपने सैन्य-औद्योगिक काम्प्लेक्स को मुनाफा पहुंचा रहे हैं। लेकिन अमरीकी जनता की हालत बद से बदतर हो रही है। अमरीकी सरकार खुद भयंकर कर्ज में फंसी हुई है। ये युद्ध अमरीकी अर्थव्यवस्था को और ज्यादा जर्जर करेंगे। यह सब दुनिया में अमरीकी प्रभुत्व का दौर खत्म होने की ओर ले जायेगा।
तरह-तरह की ताकतें दुनिया में खड़़ी हो रही हैं। कई क्षेत्रीय गठबंधन बन रहे हैं। ये सभी किसी न किसी हद तक अमरीकी प्रभुत्च को कमजोर कर रहे हैं।
अपने प्रभुत्व को बरकरार रखने की कोशिश में अमरीकी साम्राज्यवादी युद्धों की ओर जाने को विवश हैं। और ये युद्ध उसको और ज्यादा कमजोर करेंगे।
विश्व राजनीति की उथल पुथल और गठबंधनों में तेजी का दौर
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7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।