बीते दिनों वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण व कुछ अन्य भाजपाई नेताओं पर इलेक्टोरल बाण्डों के जरिये जबरन वसूली के लिए मुकदमा दर्ज होने की खबर आई। कर्नाटक की एक अदालत द्वारा मुकदम दर्ज करने का निर्देश मिलने के बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के अलावा भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा व कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बी वाई विजेंद्र पर भी मुकदमा दर्ज हुआ है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि वित्तमंत्री ने ईडी की सहायता से कर्नाटक भाजपा की मदद के लिए हजारों करोड़ रु. की उगाही की। इन्होंने वेदांता व अरविंदो कंपनी से करीब 230 करोड़ व 49.5 करोड़ रु. इलेक्टोरल बाण्ड के रूप में वसूले। जिन्हें कर्नाटक भाजपा के नेताओं ने भुनाया।
मामले में धारा 384 (जबरन वसूली), 120 बी (आपराधिक साजिश) व धारा 34 (एक मकसद के लिए कई लोगों की मिलकर कार्यवाही) के तहत केस दर्ज हुआ।
आरोप यह है कि ईडी छापों को डलवाकर या उनका भय दिखाकर वित्त मंत्री ने कंपनियों को इलेक्टोरल बाण्ड के जरिये करोड़ों का चंदा देने को मजबूर किया।
दरअसल अदालत का उक्त निर्देश कर्नाटक में सत्तासीन कांग्रेस व भाजपा के बढ़ते टकराव की पृष्ठभूमि में आया है। बीते दिनों भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में राज्यपाल ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या पर मुकदमा चलाने को मंजूरी दे दी थी। इसके खिलाफ मुख्यमंत्री की अपील को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। अब वित्तमंत्री पर वसूली के मुकदमे का आदेश पारित करा कांग्रेस ने एक तरह से अपना बदला पूरा कर लिया। इन दोनों मुकदमों को लेकर कर्नाटक में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।
वित्तमंत्री भले ही कंपनियों से अपनी इच्छा से चंदे की बात कहलवाकर इस मुकदम से बच जायें। पर उक्त मुकदमे में वसूली के आरोप में सत्य का एक अंश जरूर है। भले ही बड़ी कंपनियां अपनी मर्जी से भाजपा को चंदा दे रहे हों पर तमाम छोटे-मझोले-क्षेत्रीय पूंजीपतियों पर छापे-दबाव डालकर भी भाजपा ने चंदा वसूला है और इस वसूली गैंग में शीर्ष पर बैठे मोदी-शाह ही मुख्य नेतृत्वकारी भूमिका में रहे हैं।
यह प्रकरण केन्द्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग कर रही भाजपा सरकार, राज्यपालों के जरिये अडंगा डाल रही केन्द्र सरकार को विपक्ष का संदेश भी है कि अपने राज्य वाले इलाकों में राज्य एजेंसियों का इस्तेमाल कर वे भी केन्द्र को कुछ हैरान-परेशान कर सकते हैं।