आप पार्टी का भविष्य

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दिल्ली चुनाव में हार के बाद आम आदमी पार्टी के भविष्य को लेकर कई कयास लगाये जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी ने तो अपना विस्तार कांग्रेस को बदनाम करते हुए तथा उसके जनाधार को हड़पते हुए किया था। उसने आधार तो कांग्रेस का हड़पा था परन्तु मुद्दे भाजपा के लिए थे। बड़ी ही चतुराई से आप पार्टी ने कांग्रेस से पहले दिल्ली और फिर पंजाब ले लिया था। इस बार भाजपा ने अपने मुद्दों को धार दी और कांग्रेस ने अपने आधार पर ध्यान दिया और नतीजा आप दिल्ली की सत्ता से बाहर हो गयी। कांग्रेस ने आप पार्टी के साथ वही किया जो आप पार्टी ने कांग्रेस के साथ पहले दिल्ली, फिर गुजरात, पंजाब आदि में किया था। ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ का नारा लगता है मोदी ने कांग्रेस और आप के लिए दिया था। 
    
आप पार्टी को पहले-पहल यह लाभ था कि वह एकदम नई पार्टी थी। उसका कोई अतीत नहीं था। उसके नेता एकदम नये थे। उसने आम लोगों को ही नहीं देश के जाने-माने बुद्धिजीवियों को भी आकर्षित किया था। लेकिन अरविन्द केजरीवाल, जो कि अपनी विचारधारा व कार्यशैली में फासीवादियों सरीखे हैं, से शीघ्र ही बुद्धिजीवियों का मोहभंग होने लगा। कुछों ने आप पार्टी छोड़ दी। कुछों को अरविन्द केजरीवाल ने बेइज्जत कर निकाल दिया। इन बुद्धिजीवियों ने आप की साख को गिराने में अपने ढंग से रोल अदा किया। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से उपजी पार्टी की साख को मिट्टी में मिलाने में उसके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप ही काम आये। और मोदी एण्ड कम्पनी ने आप पार्टी को उसी हम्माम में नंगा खड़ा कर दिया जिस हम्माम की तरफ इशारा करके आप पार्टी ने अपना वजूद खड़ा किया था। अब वह भी हम्माम में उतनी ही नंगी थी जितने अन्य थे।
    
आप पार्टी पूंजीपति वर्ग की पहली पसंदीदा पार्टी बनना चाहती थी। पूंजीपति वर्ग उसे तब ही अपनाता जब वह भाजपा या कांग्रेस की तरह की साख या आधार रखती। अभी उसके पास भाजपा-संघ के रूप में प्रथम सेवक मौजूद है। कांग्रेस तो उसकी हमेशा से अपनी दुकान रही है। उसकी अपनी खालिस भारतीय ‘ग्रांड ओल्ड पार्टी’। भारत के पूंजीपति वर्ग की इस पुराने सेवक की साख गिरी तो आज के प्रथम सेवक हाजिर थे। 
    
आप पार्टी का मुकाबला प्रथम सेवक और पुराने सेवक के साथ था। आप पार्टी ने ऐसी कोई सेवा पूंजीपति वर्ग की की नहीं कि वह उसे अपने सेवकों की फौज में पहला स्थान देता। 
    
आप का भविष्य पुराने व प्रथम सेवक के कारण फिलहाल कुछ खास नहीं है। बस वह पूंजीपतियों के सेवकों की जमात में डांट खाये, सेवक की तरह ही रह सकती है। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता