‘‘बदलता मीडिया और जन सरोकार’’ पर सेमिनार का आयोजन

/badalataa-media-aur-jan-sarokaar-par-seminaar-ka-ayojan

वाराणसी/ नागरिक द्वारा पूर्व संपादक का. नगेंद्र की स्मृति में 17 नवम्बर को उत्तर प्रदेश के बनारस में एक सेमिनार आयोजित किया गया जिसका विषय ‘‘बदलता मीडिया और जन सरोकार’’ था। सेमिनार में विभिन्न जनपक्षधर पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े लोगों, जन संगठनों के प्रतिनिधियों एवं पत्रकारों, बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। 
    
सेमिनार में नागरिक के संपादक रोहित ने सेमिनार पत्र प्रस्तुत करते हुये कहा कि मीडिया को समाज का दर्पण कहा जाता है लेकिन असल बात इसकी उलटी है। असल में वर्गीय समाज में मीडिया शासक वर्ग के वैचारिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक वर्चस्व को स्थापित करने का एक माध्यम होता है। अपने इतिहास के पिछले 300 सालों में प्रिंट से लेकर रेडियो और फिर टेलीविज़न से लेकर आज इंटरनेट के दौर में पूंजीवादी मीडिया के स्वरूप में लगातार बदलाव आता गया है लेकिन शासक पूंजीपति वर्ग के वैचारिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व को कायम करने और उसके हितों को आगे बढ़ाने का इसका मूल चरित्र जस का तस बरकरार है। आज जबकि वैश्विक स्तर पर पूंजीवाद आर्थिक-सामाजिक रूप से संकटग्रस्त है तब पूंजीवादी मीडिया भी घोर प्रतिक्रियावादी भूमिका निभा रहा है और दक्षिणपंथी, फासीवादी-नाजीवाद ताकतों को आगे बढ़ा रहा है; भारत का एकाधिकारी पूंजी से संचालित मीडिया हिंदू फासीवादी ताकतों को और उनके हितों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को आगे बढ़ा रहा है। 
    
90 के दशक से उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों की शुरुआत के साथ अब इस मीडिया ने चरम उपभोक्तावाद के साथ धार्मिक पाखंड और अन्धविश्वासों को परोसना शुरू कर दिया और पिछले 10-12 सालों से हिंदू फासीवादी संगठन आर एस एस और इजारेदार पूंजीपतियों में कायम गठजोड़ के परिणामस्वरूप अब यह समाज को फासीवाद की दिशा में ले जा रहा है।
    
सेमिनार को सम्बोधित करते हुये किसान संग्राम समिति के प्रतिनिधि एवं संयुक्त किसान मोर्चा की संयोजन समिति के सदस्य सत्यदेव पाल ने कहा कि वर्गों में बंटे समाज में मीडिया निष्पक्ष नहीं हो सकता है और कारपोरेट के मालिकाने वाला मीडिया पूंजीपति वर्ग के हितों को ही आगे बढ़ायेगा। ऐसे में पूंजीवादी लूट का भंडाफोड़ करने एवं अवाम के संघर्षों को स्वर देने का काम जनपक्षधर मीडिया ही कर सकता है। 
    
रिटायर प्रोफेसर दीपक मलिक ने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया की परिस्थिति में तेजी से हुये बदलाव ने मीडिया के चरित्र को बहुत प्रभावित किया है। जनपक्षधर मीडिया को इस बदलाव को ध्यान में रखकर काम करना होगा।
    
अखिल भारतीय किसान सभा के नेता अनुभव दास ने दर्शन के विकास क्रम को प्रस्तुत करते हुये कहा कि हमें बदलते मीडिया के चरित्र को भी द्वन्द्वात्मक तरीके से समझना होगा। हमें अपने संघर्षों और जनपक्षधर मीडिया की पहुंच को व्यापक बनाना होगा।
    
समाजवादी जन परिषद के अफलातून ने किसान आंदोलन का उदाहरण देते हुये कहा कि व्यापक एकता और जन संघर्षों के बल पर पूंजीवादी मीडिया के दुष्प्रचार को निष्प्रभावी किया जा सकता है। 
    
बिहार निर्माण एवं असंगठित श्रमिक यूनियन के उपाध्यक्ष नरेन्द्र ने आज के दौर में वित्तीय पूंजी के हमले और फासीवादी खतरे को स्पष्ट करते हुये कहा कि इनके खिलाफ संघर्ष को तेज करना होगा। 
    
सर्वहारा अखबार के राधेश्याम ने  फासीवाद विरोधी संगठित और व्यापक क्रांतिकारी प्रचार की जरूरत पर बल देते हुये कहा कि फासीवाद का जवाब समाजवाद है परन्तु आज के विपरीत दौर में फासीवादियों को पराजित करने के लिये तात्कालिक कार्यभारों को सूत्रित करना होगा और बड़ी पूंजी के हितों से स्वतंत्र अंतरिम सरकार का नारा देना होगा। उन्होंने क्रांतिकारी संगठनों की संयुक्त पहल पर एक क्रांतिकारी मजदूर अखबार निकाले जाने की भी वकालत की।
    
व्यक्तित्व विकास केंद्र के गिरिजेश तिवारी ने कहा कि आज जब फासीवाद हमलावर है तब जनपक्षधर मीडिया की परस्पर एकता बहुत जरूरी है। उन्होंने सामूहिक रूप से पत्रिका निकाले जाने और उसके व्यापक सामूहिक वितरण का ठोस सुझाव भी सेमिनार में प्रस्तुत किया।
    
लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान की जागृति राही ने कहा कि कार्यकर्ताओं को अपनी आवाज को मीडिया की तरह प्रयोग करना चाहिये और जहां कहीं भी हों लोगों को सही बातें बताने, उन पर बहस करनी चाहिये।
    
ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार के भोला शंकर ने सेमिनार में एक लिखित पत्र प्रस्तुत कर मीडिया के पूंजीवादी चरित्र को उजागर किया और वैकल्पिक मीडिया की आवश्यकता पर जोर दिया। 
    
सेंटर फार स्ट्रगलिंग ट्रेड यूनियन (सी एस टी यू) के अमिताभ ने नागरिक के पूर्व संपादक नगेंद्र को खो देने को पूरे क्रांतिकारी आंदोलन का नुकसान बताया। उन्होंने कहा कि हिंदू फासीवाद का मुकाबला करने के लिये जनपक्षधर पत्र-पत्रिकाओं का व्यापक प्रसार करना होगा साथ ही फासीवाद विरोधी मोर्चा गठित करना होगा। 
    
खेत मजदूर किसान संग्राम समिति के बचाऊ राम ने सेमिनार को सम्बोधित करते हुये देशी-विदेशी एकाधिकारी पूंजी और फासीवादियों के आपसी संबंधों और इनके मीडिया के चरित्र को उजागर किया और इनके विरुद्ध मजदूर-किसान जनता के संघर्षों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।
    
इनके अलावा मजदूर सहायता समिति के आकाश, जन मुक्ति मोर्चा के राजेश आजाद, क्रांतिकारी किसान यूनियन के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष रामनयन यादव, जनवादी विचार मंच और मंथन पत्रिका के हरिहर प्रसाद, पी वी एस एच आर के लेनिन रघुवंशी, प्रगतिशील लेखक संघ की वंदना, सी आर सी के सुदामा पांडेय, बार एसोसिएशन सिविल कोर्ट बलिया के उपाध्यक्ष राजेंद्र शर्मा, साझा संस्कृति मंच के एकता शेखर, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के संजय भट्टाचार्य इत्यादि ने भी सेमिनार को सम्बोधित किया। साथ ही साझा संस्कृति मंच के फादर आनंद, खेत मजदूर किसान संग्राम समिति के नंदलाल, भाकपा के सत्यप्रकाश सिंह, इफ्टू (सर्वहारा) के सिद्धांत, लोकसमिति वाराणसी के संयोजक नंदलाल, ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार के अशोक कुमार, जनवादी विमर्श मंच के राममूरत, मंथन पत्रिका के श्रीनिवास, पी यू सी एल के प्रवाल कुमार, सर्वहारा जन मोर्चा के सौजन्य, जनवादी लेखक संघ के शैलेन्द्र कुमार सिंह, पहला अभियान के मो. शाहजाद, प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव संजय श्रीवास्तव, भगतसिंह स्टूडेंट मोर्चा के संदीप एवं कात्यायनी एवं इंकलाबी मजदूर केंद्र एवं क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के मऊ, बलिया, देवरिया एवं बनारस के कार्यकर्ताओं ने भी सेमिनार में भागीदारी की। इस दौरान आंचल व रिया द्वारा गोरख पांडेय के प्रसिद्ध गीत मैना को प्रस्तुत किया गया जिसे सभी ने बहुत सराहा।  
    
सेमिनार की अध्यक्षता दीपक मलिक, अफलातून, अनुभव दास, सत्यदेव पाल एवं राधेश्याम ने की जबकि संचालन इंकलाबी मजदूर केंद्र के रामजी ने किया। सेमिनार के दौरान सर्वहारा प्रकाशन एवं गार्गी प्रकाशन द्वारा प्रगतिशील-क्रांतिकारी साहित्य का स्टाल भी लगाया गया।         -वाराणसी संवाददाता

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।