बनभूलपुरा में दर्जनों झोपड़ियां जलकर हुई राख

हल्द्वानी/ बीते 20 अप्रैल की रात में हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में दो दर्जन से अधिक झोपड़ियां जलकर राख हो गईं। इस अग्निकांड में बस्तीवासियों का बिस्तर, बर्तन, राशन, कपड़े, बीमारों की दवाएं, छात्र-छात्राओं की पाठ्य पुस्तकें आदि सब कुछ जलकर राख हो गया है। किसी तरह गैस सिलेंडर और कुछ सामान लोगों ने झोपड़ियों से बाहर निकाले जिससे वह फटने-जलने से बच गए। वरना आग आस-पास में और भी फैल सकती थी। आग इतनी भयंकर थी कि कुछ ही देर में दर्जनों झोपड़ियां जलकर राख हो गईं। लोगों ने बीच में दो झोपड़ियों को आग लगने से पहले हटा दिया था तब जाकर आग और झोपड़ियों में फैलने से रुक पाई। रात में ही दमकल की आधा दर्जन गाड़ियां आयीं परन्तु तब तक 2 दर्जन से अधिक झोपड़ियों में आग फैल चुकी थी। यह झोपड़ियां रेलवे पटरी के समानांतर बनाई गई थीं।
    
इन झोपड़ियों में रहने वाले मजदूर-मेहनतकश लोग थे। इनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय व 2 परिवार हिन्दू समुदाय के थे। जिनमें से कुछ राजमिस्त्री, मजदूर, घरों में काम करने वाली महिलाएं आदि कामकाजी लोग थे। इन झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बनभूलपुरा के सबसे गरीब लोगों में से थे जो सबसे कम मेहनत-मजदूरी मिलने वाले कामों में लगे थे।
    
आग लगने से इनके बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सबके निवाले का संकट पैदा हो गया। दोपहर के गर्म थपेड़ों के बीच यह लोग खुले मैदान में दिन बिताने को मजबूर हैं। सब कुछ सामान जल गया। एक घर में बेटी की शादी के लिए सामान जोड़ा था वह भी जल गया। शासन-प्रशासन के कुछ अधिकारी मौके पर पहुंचे। परंतु इनको खबर लिखे जाने तक शासन से कोई सहायता नहीं मिली है। बस्ती में समाज व पड़ोस के कुछ लोग इनके भोजन-पानी और अन्य इंतजाम कर रहे हैं। हल्द्वानी विधायक सुमित हृदेश ने इन गरीब परिवारों को पांच-पांच हजार रुपये की आर्थिक मदद की है।
    
गर्मी के मौसम में आग की घटनाएं घटती रहती हैं। गरीब मजदूर-मेहनतकश ज्यादातर लोग अपनी कम आर्थिक हैसियत के कारण झुग्गी-झोपड़ियों में ही रह पाते हैं। आग लगने की घटनाएं अलग-अलग जगह समय-समय पर घटती रहती है। जिसमें शासन-प्रशासन द्वारा कोई सुरक्षा के बंदोबस्त नहीं किए जाते हैं। अव्वल तो सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को सुरक्षित आवास उपलब्ध कराए। परंतु यहां तो उनके आवासों की सुरक्षा भी नहीं की जाती है। किसी के आवास में कोई नुकसान हो जाए तो उसकी भरपाई भी सरकार नहीं करती है।
    
गरीब मेहनतकशों को अपना आशियाना जोड़ने में वर्षों लग जाते हैं। तमाम सारी जरूरतों में कटौती के बाद घर में सामान आ पाता है। इन गरीबों का इस अग्निकांड में सब कुछ जल जाने से वर्षों तक यह इसकी भरपाई नहीं कर पाएंगे। सरकारें पूंजीपतियों, बड़े एकाधिकारी पूंजीपतियों, अमीरों के तो लाखों करोड़ों रुपये माफ कर देती हैं। उनको टैक्सों में तमाम छूट दी जाती है। जिन मेहनतकशों को स्वच्छ आवास, साफ सुथरी जगह देने की जिम्मेदारी सरकारों की बनती है, उनकी रिहायश को ‘अवैध बस्ती’ बताकर, ‘इन कामों के लिए लोग स्वयं जिम्मेदार हैं’ आदि बातें कहकर इससे अपना पल्ला झाड़ लेती है। यही लोग सबसे गन्दी बस्तियों में निवास करते हैं। जहां पर प्राथमिक नागरिक सुविधाएं भी इनको नसीब नहीं होती हैं। समाज में मजदूरों-मेहनतकशों को एकजुट होकर सरकार के इस दोहरे रवैये का भण्डाफोड़ करने की जरूरत है। अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए उसको हासिल करने की ओर बढ़ने की जरूरत है।
        -हल्द्वानी संवाददाता

आलेख

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