आख़िरकार 15 महीनों के नरसंहार के बाद इज़राइल को हमास के साथ युद्ध विराम समझौते के लिए मज़बूर होना पड़ा। 15 महीनों तक इज़राइल ने गाजा पट्टी पर भीषण बमबारी की। हमास के नेस्तनाबूत होने तक युद्ध जारी रखने की घोषणा करने वाले इज़राइल को उसी हमास के साथ समझौता करना पड़ा। गाजा का चप्पा-चप्पा छानने के बावजूद इज़राइल बंधकों को नहीं छुड़वा पाया। और आख़िरकार उसे 1 इज़राइली बंधक के बदले 30 फिलिस्तीनी छोड़ने वाले समझौते को मानना पड़ा।
इस युद्ध विराम समझौते के तीन चरण बताये जा रहे हैं। पहले चरण में हमास और इज़राइल एक-दूसरे के बंधकों को छोड़ेंगे। यह अवधि 6 सप्ताह की होगी। उसके बाद शेष बचे बंधकों की रिहाई होगी और युद्ध का स्थायी अंत होगा। तीसरे चरण में गाजा का पुनर्निर्माण होगा। अब यह कैसे होगा इसकी कोई निश्चित रूप रेखा अभी नहीं बनी है। जब रविवार को युद्ध विराम हुआ तो हमास ने तीन महिला बंधकों को छोड़ा और इज़राइल ने 90 फिलिस्तिनियों को छोड़ा।
पिछले 15 महीनों में इज़राइल ने हमास के साथ ही आम निर्दोष फिलिस्तिनियों पर जमकर कहर बरपाया है। इन 15 महीनों में इज़राइल ने 44,000 फिलिस्तिनियों को मौत के घाट उतार दिया इनमें से 40 प्रतिशत बच्चे हैं। यह आधिकारिक आंकड़े हैं। वास्तविक आंकड़े इससे ज्यादा ही होंगे। इज़राइल ने 1 महीने तक तो फिलिस्तिनियों के पास कोई भी सहायता सामग्री नहीं पहुँचने दी जिसकी वजह से दूध, पानी, दवाओं आदि की भारी किल्लत फिलिस्तिनियों ने झेली।
इज़राइल ने भारी बमबारी कर रिहायशी इमारतों को भी काफी नुकसान पहुँचाया है। उत्तरी ग़ज़ा की 60 प्रतिशत से ज्यादा इमारते पूरी तरह नष्ट की जा चुकी हैं। शेष बची इमारतों में से कितनी रहने लायक बची हैं कहा नहीं जा सकता। अब जब युद्ध विराम हो गया है तो लोग लौटकर कहाँ रहेंगे।
गाजा के 32 अस्पतालों में से केवल 16 अस्पताल ही चल रहे हैं। इनमें भी मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है। डॉक्टरों के इस नरसंहार में मारे जाने से संकट और बढ़ गया है। अल शिफा जैसे बड़े अस्पताल पर भारी बमबारी कर उसे ध्वस्त कर दिया गया। इन भारी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में डॉक्टरों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए घायलों का इलाज किया।
इज़राइल ने गाजा के स्कूल और यूनिवर्सिटीयों पर भी बमबारी कर उन्हें तहस नहस कर दिया। लाखों बच्चों को तालीम पाने से महरूम कर दिया गया।
इज़राइल द्वारा फिलिस्तिनियों पर ढाये जा रहे कहर को दुनिया के सामने उजागर करने वाले पत्रकारों को चुन चुन कर मारा गया। सैकड़ों पत्रकार इन 15 महीनों में मारे गये हैं। लेकिन बचे हुए पत्रकारों के दिलों में फिर भी खौफ नहीं बैठा और वे लगातार रिपोर्टिंग कर इज़राइल का क्रूर चेहरा दुनिया के सामने उजागर करते रहे।
अब जब 15 महीनों बाद युद्ध विराम हुआ है तो बाइडेन जाते-जाते इसका श्रेय अपनी टीम को देने लगे। लेकिन दुनिया जानती है कि जब इज़राइल गाजा के निर्दोष लोगों पर बमबारी कर रहा था तो यही बाइडेन इज़राइल की इस क्रूरतापूर्ण कार्यवाही को उसकी आत्मरक्षा के लिए की जा रही कार्यवाही को जायज ठहरा रहे थे। इधर युद्ध विराम समझौता कराने का श्रेय अमेरिका के नये राष्ट्रपति ट्रम्प भी अपने आपको दे रहे हैं। लेकिन दुनिया यह भी जानती है कि जब इज़राइल ने जरूसलम को अपनी राजधानी घोषित किया तब इन्हीं ट्रम्प महोदय ने इसे मान्यता देकर इज़राइल का होंसला बढ़ाया था। आगे भी दुनिया देखेगी कि अमेरिका इज़राइल की दूसरी अन्यायपूर्ण कार्यवाहियों में उसी के साथ खड़ा होगा।
अमेरिका के साथ पश्चिमी साम्राज्यवादी भी इन 15 महीनों में इज़राइल के साथ खड़े होकर उसे हथियार आदि की आपूर्ति करते रहे हैं। वे भी ग़ज़ा की तबाही के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। उन्होंने इस विनाशक नरसंहार के लिए पैसा अपनी जनता की सुविधाओं को छीनकर जुटाया।
अब जब युद्ध विराम हो गया है तब हमास ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया है। हमास ने इज़राइल को यह दिखाने की कोशिश की है कि इज़राइल ने भले ही हमास के बड़े-बड़े नेताओं को मार दिया हो लेकिन संगठन के रूप में हमास अभी भी जिंदा है। लेकिन हमास के पीछे फिलिस्तीन की जनता है। बिना आम जनता के सहयोग के हमास इतनी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ सकता था। यह आम जनता की ताकत ही है कि जिसने पहले भी अमेरिकी साम्राज्यवादियों को नाकों चने चबवा दिये थे।
भारी तबाही झेलने के बाद भी जब युद्ध विराम की खबर आयी तो ग़ज़ा की जनता ने सड़कों पर निकलकर अपनी खुशी जाहिर की। कल तक जिस आसमान में बमों और मिसाइलों की गूँज थी वहां अब पटाखे और रोशनियां फूट रही थी। यह फिलिस्तीन की जनता की जीवटता को दिखाता है। फिलिस्तीन की जनता यह संदेश दे रही है कि वह अपनी आज़ादी के लिए कुर्बानियां देने में कभी भी पीछे नहीं हटेगी। अगर इज़राइल आगे भी ऐसी खूनी कार्यवाहियाँ जारी रखता है तो वह मुंहतोड़ जवाब देगी।