अक्सर यह सवाल उठता रहता है कि पश्चिमी साम्राज्यवादी इतनी दृढ़तापूर्वक इजरायल के समर्थन में क्यों खड़े रहते हैं? क्यों वे इजरायल द्वारा फिलिस्तीन के खिलाफ हर अन्याय-अत्याचार का समर्थन करते हैं? क्यों वे ऐसा करते हुए किसी भी बेशर्मी की हद तक चले जाते हैं और इस बात की भी परवाह नहीं करते कि वे दुनिया भर की जनता की निगाह में नंगे हो रहे हैं। इस जनता में स्वयं इन साम्राज्यवादियों के देशों की जनता भी शामिल है।
इन सवालों का जवाब अक्सर यह कह कर दिया जाता है कि पश्चिम के देश अतीत में इन देशों में यहूदियों के ऊपर किये गये अत्याचार के अपराध बोध में जीते हैं, खासकर नाजी जर्मनी में जो कुछ हुआ उसे लेकर। इसीलिए वे आज इजरायल के खिलाफ नहीं जा पाते।
इस जवाब का जन्म स्वयं पश्चिमी साम्राज्यवादियों के बीच से हुआ है। इसके जरिये उनके आज के घृणित व्यवहार को जायज ठहराने की कोशिश की जाती है। इसे समझने के लिए केवल कुछ उदाहरण पर्याप्त होंगे।
जब यूरोपीय लोग उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में जाकर बसने लगे तब वहां की मूल आबादी करीब पांच करोड़ थी। कुछ सदियों के दौरान यह आबादी ज्यादातर मार दी गई। इसका बेहद जघन्य इतिहास है। पर इसे लेकर पश्चिमी साम्राज्यवादियों में कोई अपराध बोध नहीं है।
इसी दौरान इस क्षेत्र में बागानों में काम करने के लिए लाखों अश्वेत लोग अफ्रीका से गुलाम बनाकर लाये गये। यह सिलसिला सदियों तक चलता रहा। गुलामी प्रथा उन्नीसवीं सदी तक बनी रही। यह सब भी बेहद जघन्य था। पर इसे लेकर पश्चिमी साम्राज्यवादियों में कोई अपराध बोध नहीं है।
इसी काल में पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने एशिया-अफ्रीका पर कब्जा कर लूटा। लूटमार, हत्या तथा अन्य किस्म के जघन्य अपराधों का यहां भी लंबा सिलसिला चला। अफ्रीका में तो यह आज भी नंगे तरीके से जारी है। इस क्षेत्र में आजादी की लड़ाई का भी पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने क्रूर दमन किया। पर इस सबको लेकर पश्चिमी साम्राज्यवादियों में कोई अपराध बोध नहीं है।
अभी हाल में यानी नई सदी में पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, यमन को तबाह कर दिया और लाखों लोगों की हत्या कर दी। पर इन्हें लेकर पश्चिमी साम्राज्यवादियों को कोई अपराध बोध नहीं है।
स्वयं यहूदियों के मामले में पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने अपने पापों का प्रायश्चित अपने किसी देश में यहूदी देश बनाकर नहीं किया जबकि इजरायल जितना बड़ा इलाका अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी कहीं भी काटा जा सकता था। स्वयं फिलीस्तीन के बंटवारे के समय उन्होंने जिस फिलिस्तीन राष्ट्र की बात की थी वह कभी भी अस्तित्व में नहीं आ सका। उलटे उस सारे क्षेत्र पर इजरायल कब्जा करता गया है। बेगुनाह फिलिस्तीनियों के प्रति पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने जो भयंकर अपराध किया उसे लेकर उन्हें कोई अपराध बोध नहीं है। वे आज भी इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों के कब्जे को जायज ठहरा रहे हैं।
इसीलिए यह अपराध बोध का मामला नहीं है। उलटे इन साम्राज्यवादी देशों में आम जनता में इजरायल के क्रूर व्यवहार को लेकर काफी गुस्सा है। यहां तक कि स्वयं इजरायल के भीतर भी जियनवादी शासकों द्वारा फिलिस्तीनियों के नरसंहार को लेकर काफी गुस्सा है। इसीलिए तो ये सारे इस समय इतना धुंधाधार प्रचार कर रहे हैं- हर तरह के झूठ-फरेब का इस्तेमाल करते हुए।
पश्चिमी साम्राज्यवादियों का इजरायल को बेशर्म समर्थन किसी ऐतिहासिक अपराध बोध का नतीजा नहीं है। यह उसी लूटमार का नतीजा है जो साम्राज्यवादी और उनके पूर्वज हमेशा करते रहे हैं। एक जमाने में इसी साम्राज्यवादी लूटमार ने उन्हें यूरोप में यहूदियों के कत्लेआम तक पहुंचाया था (हिटलर और नाजी हवा में नहीं पैदा हो गये थे)। आज यही साम्राज्यवादी लूटमार उन्हें हत्यारे जियनवादी शासकों के पक्ष में खड़़ा कर रही है। स्वयं इजरायल के जियनवादी शासक अतीत में अपने ऊपर हुए किसी अत्याचार का बदला नहीं ले रहे हैं क्योंकि फिलिस्तीनियों ने इतिहास में ऐसा कुछ किया ही नहीं। जियनवादी शासक तो बस उसी लूटमार की नीति पर चल रहे हैं जिस पर साम्राज्यवादी चलते रहे हैं।
इस सामान्य सी सच्चाई को दरकिनार कर किसी ऐतिहासिक अपराध बोध की बात करना पश्चिमी साम्राज्यवादियों के असल मंसूबों तथा उनकी घृणित करतूतों पर परदा डालना है।
इजरायल और पश्चिमी साम्राज्यवादी
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को