बीते दिनों राजस्थान सरकार ने प्लेटफार्म आधारित गिग मजदूरों के कल्याण के नाम पर एक बिल पारित किया। इसे ‘प्लेटफार्म आधारित गिग कर्मकार (पंजीकरण व वेलफेयर) बिल 2023’ नाम दिया गया है। इस बिल को विधानसभा में बगैर किसी खास चर्चा के पारित कर दिया गया।
गिग मजदूर वे मजदूर कहे जाते हैं जो किसी प्लेटफार्म या एप आधारित काम करते हैं और परम्परागत मालिक-मजदूर रिश्तों में बंधे नहीं हैं। इसके तहत ठेके पर किसी काम को लेकर करने वाले या पीस रेट पर काम करने वालों को भी शामिल किया गया है। ओला, उबेर, स्वीगी, जोमैटो सरीखे प्लेटफार्मों के तहत काम करने वाले लोग इस श्रेणी में आते हैं।
मौजूदा बिल के तहत गिग मजदूरों के कल्याण हेतु एक कल्याण बोर्ड व एक कल्याण फंड गठित किया जाना है। साथ ही इसके तहत प्लेटफार्मों व मजदूरों को खुद को पंजीकृत कराना पड़ेगा। इसके तहत हर मजदूर को एक आई डी दी जायेगी जिसकी मदद से उसे सभी सामाजिक सुरक्षा स्कीमों का लाभ मिलेगा व उसकी शिकायतें निपटारे हेतु सुनी जा सकेंगी। कल्याण बोर्ड का मुखिया राज्य का श्रम मंत्री होगा। कल्याण फंड हेतु राशि प्लेटफार्म आधारित हर सेवा व खरीद बेच पर एक लेवी आरोपित कर जुटायी जायेगी। इस बिल के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले प्लेटफार्मों पर 5 लाख रु. से 50 लाख रु. तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस कल्याण फंड से गिग मजदूरों को क्या सुविधायें हासिल होंगी यह अभी उजागर नहीं किया गया है।
इस तरह के मजदूरों के नाम पर तमाम कल्याण कोष पहले से मौजूद रहे हैं। इनमें भारी धनराशि भी एकत्र होती रही है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के नाम पर, निर्माण मजदूरों के नाम पर, खनन मजदूरों के नाम पर ऐसे कोष पहले से मौजूद रहे हैं। पर इसका नाम मात्र का फायदा ही मजदूरों को मिल पाता रहा है। अक्सर ही मिलने वाली सहायता नाम मात्र की होती रही है और उसे हासिल करने की कागजी कार्यवाही लम्बी-चौड़ी होती है। ऐसे में ज्यादातर जरूरतमंद मजदूर लाभ हासिल करने की स्थिति में ही नहीं होते हैं ऊपर से यह कोष बोर्ड कर्मचारियों-अधिकारियों के भ्रष्टाचार का भी शिकार होते रहे हैं। गिग कोष का भी हस्र इससे जुदा नहीं होना है।
गिग मजदूरों की बेहतरी ऐसे किसी भी कोष से सम्भव नहीं है। उनकी बेहतरी के लिए जरूरी है कि उन्हें मालिक-मजदूर संबंध में बंधने की मान्यता मिले। उनकी निश्चित सेवा शर्तें निर्धारित हों। उन्हें श्रम कानूनों के दायरे में लाया जाये और श्रम विभाग उनकी शिकायतों की सुनवाई करे। उन्हें स्थायी कर्मकार का दर्जा मिले।
पर आज जब केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें उदारीकरण-वैश्वीकरण के रथ को दौड़ा रही हैं, तब सरकारों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे गिग मजदूरों को ये दर्जा दिलायेंगी। सरकारें जब खुद अपने विभागों में स्थायी काम पर ठेके के तहत भर्ती कर रही हों तब उनसे गिग मजदूरों को स्थायी कर्मकार का दर्जा देने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
गिग मजदूरों के साथ बीते दिनों धोखाधड़ी, वेतन रोकने, शोषण की ढेरों घटनायें सामने आने लगी हैं। गिग मजदूर अलग-अलग संगठनों में संगठित भी होने लगे हैं। ऐसे में गिग मजदूरों का बाकी मजदूर वर्ग के साथ किया जाने वाला संघर्ष ही उनकी स्थिति में कुछ बदलाव हेतु सरकार व प्लेटफार्म मालिकों को मजबूर कर सकता है।
भारत के संगठित मजदूर आंदोलन की स्थिति पर गिग मजदूरों का भविष्य भी निर्भर करता है। सरकारों ने बीते दिनों स्थाई मजदूरों की तुलना में असंगठित-गिग मजदूरों की बुरी हालत का रोना रोते हुए एक ओर स्थाई मजदूरों से जुड़े श्रम कानूनों पर हमला बोला है दूसरी ओर दिखावे के लिए असंगठित मजदूरों-गिग मजदूरों के कल्याण हेतु कुछेक कोष गठित किये हैं। विभिन्न तरीके के एनजीओ ने इस काम में सरकार की मदद की है। पूंजीपति वर्ग श्रम कानूनों में बदलाव से खुश है।
इस तरह सरकार स्थाई संगठित मजदूरों के बरक्स अस्थाई, नीम, ट्रेनी, असंगठित, गिग मजदूरों को खड़ा करने को प्रयासरत है। वह असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को समझाना चाहती है कि उनके हित संगठित मजदूरां से अलग हैं।
वास्तविकता यही है कि संगठित मजदूर अपने संघर्ष से जो सुविधायें हासिल कर पाते हैं वह असंगठित व अन्य मजदूरों की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की राह खोलता है। जब संगठित स्थाई मजदूरों की स्थिति दयनीय की जा रही हो, उनसे 12-12 घण्टे काम कराया जा रहा हो तो असंगठित-गिग आदि मजदूरों की दुर्दशा और बढ़़ने की ओर ही जायेगी। कल्याण कोषों की नौटंकी उनका कोई भला नहीं करेगी। अतः स्थाई संगठित व असंगठित-गिग आदि मजदूरों के हित आपस में जुड़े हुए हैं व उनका एकजुट संघर्ष ही सरकारों को झुकाने की ओर ले जा सकता है। जाहिर है संगठित मजदूर ही इस संघर्ष की अगुवाई करेंगे।
राजस्थान गिग बिल : मजदूरों की भलाई के नाम पर नौटंकी
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