कश्मीर में भाजपा का डर

लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर है। मोदी-शाह अपने चुनाव प्रचार में कश्मीर घाटी से धारा-370 हटाने को अपनी उपलब्धि के बतौर पेश कर रहे हैं। वे पूरे देश में कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन पर धारा-370 को लेकर हमला बोल रहे हैं। मोदी-शाह दावा कर रहे हैं कि धारा-370 हटने के बाद कश्मीर में अमन-चैन कायम हुआ है। पर मोदी-शाह का झूठ और पाखण्ड तब सबके सामने आ गया जब भाजपा ने कश्मीर घाटी की 3 लोकसभा सीटों पर चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया। 
    
कश्मीर घाटी में लोकसभा की 3 सीटें अनंतनाग, श्रीनगर व बारामूला हैं। चुनाव न लड़ने पर भाजपा नेताओं ने बताया कि वे चुनाव के बजाय कश्मीर के लोगों का दिल जीतना चाहते हैं। बीते 10 वर्षों में कश्मीर घाटी के लोगों का भाजपा ने कितना दिल जीता है इसका अनुमान इसी से लग जाता है कि भाजपा वहां अपने प्रत्याशी तक खड़़े करने की हिम्मत नहीं कर पा रही है। 
    
कश्मीर के भारत में विलय का भाजपा पूरे देश में चाहे जितना ढिंढोरा पीटे वास्तविकता यही है कि धारा-370 हटने को कश्मीरी अवाम ने अपने अधिकारों पर हमले के रूप में ही लिया है। ऐसे में कश्मीर व भाजपा दोनों के लिए यह बात एकदम स्पष्ट थी कि कश्मीर की 3 सीटों पर अगर भाजपा चुनाव लड़ती है तो उसे जमानत बचा पाने लायक मत भी नहीं मिलेंगे। भाजपा को यह भी डर था कि अगर वह प्रत्याशी खड़े करेगी तो लोग इसे धारा-370 हटाने पर जनमत संग्रह में बदल उसे बुरी तरह हराने का काम करेंगे। और यह हार पूरे देश में कश्मीर की नाराजगी व गुस्से को उजागर कर देगी। 
    
हालांकि कश्मीर में चुनाव न लड़कर भाजपा ने अपने डर के साथ कश्मीर की असलियत खुद ही उजागर कर दी है। एक-एक सीट पर किसी भी हद तक जाकर जीत के लिए उतारू भाजपा का कश्मीर में प्रत्याशी न उतारना दिखा रहा है कि कश्मीरी अवाम अपने ऊपर हुए हमले से गुस्से में है। कश्मीर को शेष भारत में कितना ही अपने अभिन्न अंग होने का ढिंढोरा पीटा जाए असलियत यही है कि बीते 10 वर्षों में यह भारत से अधिकाधिक दूर होता गया है। कि उसका भारत में विलय जबरन हुआ है। 
    
हालांकि अनुमान लगाया जा रहा है कि कश्मीर में भाजपा कुछेक ‘प्राक्सी’ पार्टियों को समर्थन देकर चुनाव में भागेदारी करेगी। फिर भी यह स्पष्ट है कि भाजपा की यहां प्रत्याशी खड़े करने की भी हिम्मत नहीं बची है। भाजपा का यह व्यवहार ही दिखा रहा है कि कश्मीर शेष भारत से भिन्न है और शेष भारत में इसके नाम पर की जा रही राजनीति में कश्मीरी जनता के हित कहीं नहीं हैं। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।