मजदूर वर्ग की सामूहिक एवं साझी विरासत को आगे बढ़ाने का एक प्रयास

हरिद्वार में ‘देवभूमि श्रमिक संगठन हिंदुस्तान यूनिलीवर’ सिडकुल हरिद्वार द्वारा अपने पूरे प्लांट के 1500 मजदूरों के मध्य मजदूर वर्ग की वर्गीय एकता को मजबूत करने के लिए एक पुस्तिका ‘मकड़ा और मक्खी’ का वितरण किया गया है। 24 जून 2023 शनिवार को सभी शिफ्टों की बसों में मजदूर साथियों को यह बताते हुए पुस्तिका दी गई कि सभी मजदूरों को जाति, धर्म व क्षेत्र तथा स्थाई एवं ठेका आदि विभाजन से ऊपर उठकर एक वर्ग के बतौर एकजुट होने की आवश्यकता है। चार मजदूर विरोधी नए लेबर कोड्स के लागू होने के बाद स्थाई मजदूरों की नौकरियों पर भी संकट के बादल छाने वाले हैं। यह छोटी सी पुस्तिका मालिक और मजदूरों के मध्य शोषण के रूप को अच्छे शब्दों में व्यक्त करती है। 
    
यह पुस्तिका बताती है कि समाज के लिए सब कुछ उत्पादन करने वाले मजदूरों की संख्या करोड़ों में हैं जबकि उत्पादन के साधनों पर कब्जा चन्द उद्योगपतियों का है ये चंद उद्योगपतियों और उनकी सरकारों द्वारा देश और दुनिया के करोड़ों मजदूरों का शोषण और उत्पीड़न उसी तरह से किया जाता हैं जैसे मकड़ा शानदार जाल बनाकर असंख्य मक्खियों को अपने जाल में फंसाकर उनकी जीवन लीला समाप्त कर देता है। मजदूरों ने इस गागर में सागर पुस्तिका मकड़ा और मक्खी को खूब सराहा है। 
    
देवभूमि श्रमिक संगठन हिंदुस्तान यूनिलीवर सिडकुल हरिद्वार ने सभी मजदूरों से अपील की है कि ‘मकड़ा और मक्खी’ पुस्तिका को जरूर पढ़ें और अपने आस-पास के मजदूर साथियों को अवश्य पढ़ाएं और पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें। जिससे भविष्य में भी संगठन द्वारा ऐसे विषयों पर मजदूर वर्ग को जागरूक करने के लिए अन्य पुस्तिकाओं का वितरण किया जा सके। इससे पूर्व में भी यूनियन द्वारा 4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं पर एक पुस्तिका का प्लांट स्तर पर वितरण किया गया था।
    
मजदूर वर्ग की मुक्ति और इस शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था के स्थान पर मजदूर राज समाजवाद के निर्माण के लिए संकल्पबद्ध देवभूमि श्रमिक संगठन मजदूर वर्ग की जुझारू एकता के लिए पुनः आह्वान करता है और मजदूर यूनियनों से वृहद एकता को बनाने और वर्ग संघर्ष को तेज करने के लिए इस तरह के सामूहिक राजनीतिकरण के प्रयास बढ़ाने होंगे। 
  
इंकलाब जिंदाबाद! दुनिया के मजदूरों एक हो !! 

-हर सिंह मावड़ी, महामंत्री देव भूमि श्रमिक संगठन हिंदुस्तान यूनिलीवर सिडकुल हरिद्वार

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।