म्यांमार में गृह युद्ध

भारत के पड़ोस में स्थित म्यांमार बीते कुछ समय से गृहयुद्ध का शिकार है। फरवरी 2021 में म्यांमार में सेना ने चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर यहां सैन्य शासन कायम कर लिया था। इस सैन्य शासन की ज्यादतियों का शिकार न केवल म्यांमार की जनता, राजनैतिक दल हो रहे थे बल्कि विभिन्न राष्ट्रीयतायें व जातीय समूह भी सैन्य शासन के क्रूर दमन का शिकार हो रहे थे। ऐसे में जहां एक ओर म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ नागरिक आंदोलन पैदा हुआ वहीं विभिन्न जातीय समूहों से जुड़े सशस्त्र संगठनों ने सेना के खिलाफ हिंसक युद्ध छेड़ दिया। वक्त के साथ नागरिक आंदोलन दमन के चलते पीछे हटा वहीं सशस्त्र युद्ध क्रमशः अपना आधार फैलाते हुए आगे बढ़ता गया। आज म्यांमार में सभी अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर सेना को सशस्त्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है और वह काफी इलाका गंवा चुकी है। सेना व सशस्त्र समूहों की यह जंग बीते 6 माह में काफी तेज हो चुकी है और इस गृहयुद्ध में एक बड़ी आबादी को विस्थापन को मजबूर होना पड़ा है। 
    
दरअसल म्यांमार भारत, थाइलैण्ड, चीन आदि के बीच में स्थित विभिन्न जातीय समूहों-राष्ट्रीयताओं वाला देश है। ये राष्ट्रीयतायें म्यांमार को एक संघीय ढांचे के तहत संगठित कर अपने लिए अधिक अधिकार चाहती रही हैं पर म्यांमार के बौद्ध राष्ट्रवादी समूह वहां वर्चस्वकारी स्थिति में हैं व सेना में भी इन्हीं का बोलबाला है। ये म्यांमार को एक केन्द्रीकृत बौद्ध वर्चस्व वाले देश में ढालना चाहते रहे हैं। रोहिंग्या मुस्लिमों का ये क्रूर दमन करते रहे हैं। बड़े पैमाने पर रोहिंग्या आबादी को यहां से पलायन कर दूसरे देशों में शरण लेनी पड़़ी है। 2021 के तख्तापलट के बाद इन राष्ट्रीयताओं का दमन और बढ़ गया। 
    
सेना के दमन के खिलाफ शान राज्य में तीन जातीय समूहों ने अक्टूबर 23 में एक गठबंधन कायम कर सेना पर मिलकर हमला बोलने की शुरूआत की। आज थाइलैण्ड से लगा कयाह राज्य, भारत से लगा राखीन प्रांत व चीन से लगे उत्तरी शान राज्य सभी में सेना को सशस्त्र युद्ध का सामना करना पड़ रहा है। ‘आपरेशन 1027’ नाम से विद्रोही समूह सेना के खिलाफ हमलों को अंजाम दे रहे हैं और कई इलाके सेना से छीनने में कामयाब हुए हैं। 
    
इस प्रतिरोध संघर्ष में उत्तरी शान राज्य में ब्रदरहुड एलायंस (म्यांमार नेशनल ट्रुथ एण्ड जस्टिस पार्टी, म्यांमार नेशनल अलांयस आर्मी व पलाउंग स्टेट लिबरेशन फ्रंट से बना संयुक्त मोर्चा) विद्रोह का नेतृत्व कर रहा है। नेशनल लिबरेशन आर्मी व अराकान आर्मी भी इसका साथ दे रहे हैं। देश के बाकी हिस्सों में काचीन इंडिपेंडेस आर्मी, करेन नेशनल लिबरेशन आर्मी, चिन नेशनल आर्मी व करेनी आर्मी सेना का मुकाबला कर रहे हैं। 
    
म्यांमार को आज गृहयुद्ध के हालातों में पहुंचाने के मुख्य दोषी म्यांमार की सेना व बौद्ध राष्ट्रवादी समूह हैं। उत्पीड़ित राष्ट्रीयतायें अपने अधिकारों को उठाने के शांतिपूर्ण प्रयासों के दमन के बाद क्रमशः हिंसक संघर्ष की ओर मुड़ी हैं। वर्तमान में गृहयुद्ध उस स्थिति में पहुंच चुका है जहां सेना संघर्षरत समूहों को नहीं हरा पा रही है और न ही संघर्षरत समूह सेना को पीछे धकेल पा रहे हैं। हां समाज में विभिन्न संघर्षरत समूहों को अलगाव में डालने के लिए सेना ने सामान्य जनता का दमन तेज कर दिया है। इस तरह गृहयुद्ध लम्बा खिंचता दिख रहा है। 
    
म्यांमार के इस गृहयुद्ध में आस-पास की बड़ी ताकतें चीनी साम्राज्यवादी व भारत जहां अपने-अपने हितों के मद्देनजर सक्रिय हैं वहीं थाइलैण्ड भी अपनी भूमिका निभा रहा है। गृहयुद्ध के लम्बा चलने के चलते सामान्य जनता को भुखमरी, पलायन से लेकर तरह-तरह के कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। 
    
इतना तय है कि सैन्य तानाशाही म्यांमार में लम्बे समय तक अब नहीं टिक सकती। देर-सबेर सैन्य तानाशाहों को पीछे हटना होगा। देखने की बात यह होगी कि सेना के शासन से मुक्ति के बाद राष्ट्रीयताओं को कितने अधिकार नये शासन के तहत प्राप्त होते हैं। पूरी संभावना है कि नये शासन के तहत भी राष्ट्रीयताओं को अपने हक-हकूक की नयी जंग छेड़नी पड़े। 

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