युवाओं के साथ धोखाधड़ी - पूंजीपतियों से यारी

आम बजट 2024-25

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश हो चुका है। लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को जनता ने जो झटका दिया उससे उम्मीद लगायी जा रही थी कि सरकार बीते 10 वर्षों के शासन के कुछ उलट चल जनता का खोया भरोसा जीतने का कुछ प्रयास करेगी। मोदी शासन के 10 वर्षों में देश के बड़े पूंजीपतियों के मुनाफे को बढ़ाने की खातिर जनता पर एक के बाद एक हमले बोले गये थे। मजदूरों पर श्रम संहिताओं से लेकर पूंजीपतियों को ‘रखो व निकालो’ की छूट देकर हमला बोला गया। किसानों पर उनकी भूमि लूट के लिए बड़ी पूंजी को सौंपने के उद्देश्य से काले कृषि कानूनों के जरिये हमला बोला गया। महंगाई की मार तो सभी आम जन महसूस कर रहे हैं। छोटे उद्यमों पर नोटबंदी-जीएसटी का हमला बोला गया। इन हमलों का जवाब भी जनता ने मोदी को 2024 के चुनाव में बहुमत से दूर कर दिया था। ऐसे में नये बजट में सरकार का पहले सरीखा ही बेरोजगारों-युवाओं से लेकर अन्य मेहनतकशों पर हमला बोलना कई लोगों को आश्चर्य में डाल रहा है। हालांकि 2024 के चुनाव में हुई फजीहत का बजट पर इतना असर जरूर हुआ है कि बजट में बेरोजगारों के नाम पर कई योजनायें, कृषि कल्याण की बातें करते हुए बिहार के नाम पर कई योजनायें घोषित हुई हैं। पर चालाकी यहां भी यह दिखाई देती है कि इन योजनाओं से बेरोजगारों-किसानों के बजाय भला बड़े पूंजीपतियों का ही होना है।
    
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2024-25 के लिए कुल 48.20 लाख करोड़ रु. के बजट को पेश किया। यानी केन्द्र सरकार वर्ष भर में विभिन्न करों व उधार आदि से 48.20 लाख करोड़ रु. जुटायेगी और इतना ही विभिन्न योजनाओं में खर्च करेगी। केन्द्र सरकार विभिन्न करों से 38.4 लाख करोड़ रु. (आयकर- 11.87 लाख करोड़ रु., कारपोरेट कर- 10.2 लाख करोड़ रु., कस्टम व एक्साइज- 5.56 लाख करोड़ रु., जीएसटी- 10.61 लाख करोड़ रु.) कर जुटायेगी। इसमें से राज्यों को 12.47 लाख करोड़ रु. हिस्सा देने के बाद केन्द्र के पास 25.83 लाख करोड़ रु. खर्च हेतु बचेगा। इसके अतिरिक्त 5.45 लाख करोड़ रु. केन्द्र ब्याज, लाभांश व विदेशी अनुदान से प्राप्त करेगी। इस तरह कुल 31.29 लाख करोड़ रु. केन्द्र सरकार की कुल राजस्व प्राप्ति होगी। 14.72 लाख करोड़ रु. के ऋण के साथ सरकार 15.5 लाख करोड़ रु. की पूंजीगत प्राप्ति करेगी। इसके अतिरिक्त सरकार के पास 1.40 लाख करोड़ पूर्व का नकदी शेष है। इस रूप में पूंजीगत प्राप्तियां 16.91 लाख करोड़ हो जाएगी। इस तरह सरकार कुल 48.20 लाख करोड़ रु. बजट हेतु जुटायेगी।
    
सकल घरेलू उत्पाद का 11.8 प्रतिशत सरकार कर वसूलती है जिसमें सरकार 6.8 प्रतिशत प्रत्यक्ष कर व 5.0 प्रतिशत अप्रत्यक्ष कर के जरिये जुटा रही है। भारत जैसे देश में जहां 80 करोड़ आबादी 5 किलो मुफ्त सरकारी राशन पर जिन्दा रहने को मजबूर है वहां लगभग 40 प्रतिशत अप्रत्यक्ष कर वसूलना जिसका बोझ आम जन पर सीधे पड़ता है, सरकार के चरित्र को दिखा देता है कि उसे आम गरीब आबादी की जरा भी परवाह नहीं है।
    
अब अगर खर्च की बात करें तो सरकार 48.20 लाख करोड़ रु. में 11.62 लाख करोड़ रु. पूर्व में लिये कर्ज के ब्याज भुगतान में खर्च करेगी। खर्च की विभिन्न मदों की प्राथमिकतायें देखकर यह तुरन्त अहसास हो जाता है कि सरकार अपने राजकीय तंत्र को तो मजबूत करने के लिए गम्भीर है पर मजदूरों-मेहनतकशों के दुःखों-कष्टों की उसे कोई चिंता नहीं है।
    
रक्षा खर्च यानी सेना पर खर्च बढ़ाने के मामले में सरकारें हमेशा से गम्भीर रही हैं। बीते वर्ष के 4.32 लाख करोड़ रु. से बढ़ाकर इसे इस वर्ष 4.54 लाख करोड़ रु. कर दिया गया है। इसी तरह पुलिस-प्रशासन वाले गृह विभाग का खर्च बीते वर्ष के 1.35 लाख करोड़ रु. से बढ़ाकर 1.50 लाख करोड़ रु. कर दिया गया है। यानी सरकार सेना-पुलिस का डण्डा आम जनता के ऊपर बढ़ाते जाने को पूरी तरह गम्भीर है।
    
अब अगर विभिन्न जनकल्याणकारी मदों या सब्सिड़ी की बात करें तो क्या तस्वीर उभरती है? सरकारों की प्रवृत्ति इन मदों पर खर्च को घटाते जाने की रही है। इस बजट में भी यही बात नजर आती है। (देखें - तालिका)
    
उपरोक्त तालिका बताती है कि किसान कल्याण का नारा देने वाली सरकार दरअसलbudget किसानों की पीठ में छुरा घोंपने में जुटी है। खाद पर बीते वर्ष 1.88 लाख करोड़ रु. की सब्सिडी को सरकार ने घटा कर नये बजट में 1.64 लाख करोड़ रु. कर दिया है। इसका परिणाम और महंगी खाद के रूप में किसानों को झेलना पड़ेगा जो उनकी दुर्दशा को और बढ़ायेगा।
    
सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन का खूब ढिंढोरा पीटती है पर खाद्य मद में भी वह सब्सिडी घटाने के चक्कर में है। गत वर्ष 2.12 लाख करोड़ रु. के खर्च को घटा वह इस वर्ष 2.05 लाख करोड़ रु. की सब्सिडी देने का प्रावधान करती है। पेट्रोलियम पर सब्सिडी भी वह गत वर्ष के 12,240 करोड़ रु. से घटा 11,925 करोड़ रु. करना चाहती है।
    
कृषि की मद में सरकार के ‘किसान हितैषी’ दावे की पोल इसी से खुल जाती है कि सरकार ने गत वर्ष इस हेतु आवंटित 1.44 लाख करोड़ रु. की राशि पूरी खर्च ही नहीं की। अब इस वर्ष इसे नाम मात्र का बढ़ाकर (जो मुद्रास्फीति को ध्यान में रखें तो वास्तव में कटौती ही है) 1.51 लाख करोड़ कर दिया गया है।
    
शिक्षा के क्षेत्र में भी गत वर्ष आवंटित 1.16 लाख करोड़ रु. में सरकार ने लगभग 8000 करोड़ रु. खर्च ही नहीं किये। अब इसे नाम मात्र का बढ़ाकर 1.25 लाख करोड़ इस वर्ष किया गया है। यही हाल स्वास्थ्य मद का है जहां गत वर्ष आवंटित 88,956 करोड़ रु. में लगभग 9600 करोड़ रु. सरकार ने खर्च ही नहीं किये अब आगामी वर्ष हेतु 89,287 करोड़ रु. स्वास्थ्य खर्च का बजट रखा गया है। शिक्षा-स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की बेरुखी इस कदर है कि एक ओर हर वर्ष लाखों छात्र पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं; लाखों लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं पर सरकार अपनी तय राशि भी इन मदों पर खर्च करने को तैयार नहीं है।
    
यही हाल सामाजिक कल्याण क्षेत्र का है जहां आवंटित 55,080 करोड़ रु. में लगभग 8500 करोड़ रु. सरकार ने गत वर्ष खर्च ही नहीं किये। यह दिखलाता है कि मोदी सरकार का पिछड़ों-दलितों-आदिवासियों-अल्पसंख्यकों के प्रति क्या रुख है।
    
अब अगर बात इस बजट की बहुचर्चित नये युवाओं को रोजगार देने वाली योजनाओं की करें तो सरकार ने 5 योजनाओं की घोषणायें की हैं। पहली योजना में 2.1 करोड़ युवाओं को लाभ देने का दावा किया गया है। इसके तहत किसी भी क्षेत्र में पहली बार रोजगार पाने वालों (1 लाख रु. से कम मजदूरी वाले) को सरकार 1 माह की मजदूरी (अधिकतम 15 हजार रु.) 3 किस्तों में देगी। यह सब्सिडी नियोक्ता व कर्मचारी दोनों की सहायता करेगी। नियोक्ता को इस हेतु न्यूनतम 2 वर्ष के लिए कर्मचारी को काम पर रखना होगा व 1 वर्ष से पूर्व काम से निकालने पर नियोक्ता को सब्सिडी सरकार को लौटानी होगी।
    
दूसरी योजना विनिर्माण क्षेत्र के नियोक्ताओं के लिए है। जो नियोक्ता ऐसे नये 50 मजदूर या अपने कुल कर्मचारियों के 25 प्रतिशत नये मजदूर रखेंगे (नये मजदूर से तात्पर्य जिनका ईपीएफ आफिस में नामांकन न हुआ हो), उन्हें इसका लाभ मिलेगा। सरकार इस एवज में अगले 4 वर्षों तक मजदूर के वेतन का क्रमशः 24 प्रतिशत, 24 प्रतिशत, 16 प्रतिशत, 8 प्रतिशत भुगतान नियोक्ता को करेगी। नियोक्ता को इस दौरान उक्त मजदूरों को काम पर रखे रहना होगा। मजदूरी की राशि अधिकतम 25,000 रु. मानी जायेगी।
    
तीसरी योजना ऐसे नियोक्ता हेतु है जो 2 नये (50 से कम कर्मचारी वाले नियोक्ता) या 5 नये (50 से अधिक कर्मचारी वाले नियोक्ता) कर्मचारी बढ़ायेंगे। इन्हें सरकार 3000 रु. प्रतिमाह तक के रूप में ईपीएफओ में नियोक्ता का अंशदान 2 वर्ष तक देगी।
    
चौथी योजना में सरकार 60,000 करोड़ व्यय के जरिये 1000 आईटीआई का उन्नयन कर उनमें रोजगारपरक पाठ्यक्रम पढ़ायेगी।
    
पांचवीं योजना में सरकार शीर्ष कंपनियों में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप करायेगी। यह इंटर्नशिप 5000 रु. मासिक भत्ते के साथ 1 वर्ष के लिए 21-24 वर्ष के युवाओं हेतु होगी। भत्ते का ज्यादातर हिस्सा सरकार वहन करेगी।
    
पहली योजना में 2.1 करोड़, दूसरी में 30 लाख, तीसरी में 50 लाख, चौथी में 20 लाख व पांचवीं में 1 करोड़ इस तरह कुल 4.10 करोड़ युवाओं का भला करने का सरकार ने ढिंढोरा पीटा है।
    
अब अगर इन योजनाओं के वास्तविक परिणाम क्या होंगे, इसे देखें तो सरकार की असली मंशा उजागर हो जाती है। पहली व दूसरी योजना दरअसल सेना की अग्निपथ की तरह ही युवाओं को 2 व 4 वर्ष का रोजगार देती हैं। तीसरी योजना पहले से ही लागू है जिसमें सरकार 2 वर्ष तक नये कर्मचारियों का ईपीएफओ में नियोक्ता अंशदान देती है। पांचवीं योजना दरअसल देश के पूंजीपतियों को 1 करोड़ मुफ्त के मजदूर मुहैय्या कराती है।
    
इन योजनाओं से होगा यह कि पूंजीपति एक तादाद में पुराने मजदूर हटा कर सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाने हेतु नये मजदूर नियुक्त करेंगे व अप्रेंटिस के 1 करोड़ मुफ्त मजदूरों का लाभ उठाने के लिए छंटनी करेंगे।
    
इस तरह युवाओं की बेरोजगारी का तो इन योजनाओं से कोई भला नहीं होगा, हां पहले से कार्यरत मजदूरों पर छंटनी की तलवार जरूर लटक जायेगी। हां पूंजीपतियों को जरूर फोकट के करोड़ों मजदूर मिल जायेंगे।
    
उदारीकरण-वैश्वीकरण का रथ इस बजट में भी सरपट दौड़ाया गया है। तमाम क्षेत्रों में विदेशी निवेश की छूटें बढ़ायी गयी हैं। विदेशी पूंजी के आगमन पर रोकें हटायी गयी हैं।
    
मध्यम वर्ग के आयकर के स्लैबों में वित्तमंत्री ने नाम मात्र का बदलाव कर उन्हें निराश ही किया है। उन्हें उम्मीद थी कि बढ़ती महंगाई में सरकार उन पर कर भार काफी कम करेगी। पर सरकार ने उनकी उम्मीदें नहीं पूरी कीं।
    
गठबंधन पर टिकी बैसाखी सरकार ने नीतिश, नायडू को खुश करने के लिए उनके राज्यों में रेल, सड़क, पुल, कालेजों की कई घोषणायें जरूर की हैं।
    
कुल मिलाकर यह बजट भी जनता-बेरोजगारों का नाम जपते हुए पूंजीपतियों की लूट बढ़ाने वाला बजट ही रहा। इसीलिए शेयर बाजार शुरूआती हिचकोले के बाद फिर से ऊपर चढ़ अपनी खुशी का इजहार कर रहा है।

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