अयोध्या में भाजपा की हार

इस बार के लोकसभा चुनाव परिणामों में अयोध्या अथवा फैजाबाद सीट का चुनाव परिणाम  सबसे अधिक चर्चित रहा, जहां से समाजवादी पार्टी के अवधेश पासी ने भाजपा के लल्लू सिंह को पराजित कर दिया।
    
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हिंदुत्व की राजनीति का प्रतीक रहा है और कह सकते हैं कि पिछले करीब 4 दशकों में इसके बल पर भाजपा देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने में कामयाब रही है; पहले बाजपेई के नेतृत्व में गठबंधन सरकार और फिर 2014 व 2019 में मोदी के नेतृत्व में बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही है। इस लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 22 जनवरी, 2024 को मोदी ने स्वयं अपने कर कमलों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा संपन्न कर अथवा राम मंदिर का उद्घाटन कर इस बार भी राम के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की भरपूर कोशिश की। लेकिन इस बार भाजपा की नाव अधर में अटक गई और वह बहुमत से 32 सीट कम 240 पर सिमट गई; 2019 की तुलना में तो उसकी 63 सीटें कम हो गईं और वह अयोध्या तक से चुनाव हार गई।
    
लेकिन ‘‘अबकी बार 400 पार’’ का नारा लगा रहे भाजपाई और दूसरे संघी लम्पट अयोध्या की हार से बौखला गये और अयोध्या की हिंदू आबादी को ठीक उसी तरह धमकाने लगे और गाली-गलौच पर उतर आये, जैसा कि वे मुसलमानों के साथ करते हैं। वे उन्हें अहसान फरामोश, नमक हराम और जाने क्या-क्या कहने लगे। उनके आर्थिक बहिष्कार यहां तक कि उनकी नागरिकता रद्द कर देने तक की बातें होने लगीं।
    
दरअसल इस चुनाव में देश की जनता ने उत्तर भारतीय राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश में हिंदू-मुसलमान की राजनीति से एक हद तक ऊपर उठकर भयंकर रूप ले चुकी बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी के आधार पर भाजपा के विरुद्ध वोट किया और यही अयोध्या में भी हुआ। गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के दौरान नया घाट से शहादत गंज तक 14 किलोमीटर लम्बा राजपथ बनाया गया और इसके लिये सैकड़ों-हजारों की संख्या में दुकानों और घरों को तोड़ दिया गया। इस कारण पहले से ही बदहाल गरीब लोग सड़कों पर आ गये। इस दौरान की रोती-बिलखती महिलाओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आम थी। 
    
लेकिन मोदी और भाजपाइयों को इससे क्या? उनका मकसद तो राम मंदिर निर्माण कर सत्ता में आना था और अयोध्या को पर्यटन के लिहाज से एक ऐसी धार्मिक नगरी के रूप में विकसित करना था जहां कि पूंजीपतियों का व्यवसाय फले-फूले, होटल-रेस्टारेंट और माल बनें। लेकिन अयोध्या के लोगों ने इस पूंजीवादी विकास से जुड़े अपने विनाश को प्रत्यक्षतः भोग और समझ लिया। उनकी हाय ने मोदी को शापित कर दिया और अयोध्या से भाजपा हार गई।
 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।